वर्ष 2018 में नयी दिल्ली स्थित किरण नादर म्यूजियम ऑफ़ आर्ट में 9 फ़रवरी से 20 जुलाई तक के लिए विवान सुंदरम की रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी आयोजित की गयी थी। इस प्रदर्शनी का शीर्षक दिया गया था – स्टेप इनसाइड एंड यू आर नो लौंगर ए स्ट्रेन्जर।
आज जब विवान सुंदरम इस दुनिया को अलविदा कर गए तो उनकी उस महत्वपूर्ण प्रदर्शनी से जुडी कुछ बाते यहाँ प्रस्तुत हैं- अमूमन कला प्रदर्शनियों में एक आभासी दुनिया या किसी कल्पनालोक की सुंदर परिकल्पना हम देखते रहते हैं। जहां यथार्थ से परे हटकर सबकुछ सुंदर या प्रीतिकर दिखाने की प्राथमिकता होती है। हालांकि इस परंपरा या विचारधारा के भी कला में अपने तथ्य और तर्क हैं, जिसे आप असहमत भले ही हो सकते हों परन्तु पूरी तरह खारिज नहीं कर सकते हैं। किन्तु विवान सुंदरम के विगत 50 वर्षों के कलाकर्म पर आधारित यह प्रदर्शनी हमें किसी कल्पनालोक के बजाय यथार्थ से रूबरू कराती है। वर्ष 1943 में जन्मे विवान सुंदरम ने कला की औपचारिक शिक्षा बड़ौदा के कला संकाय व लंदन के स्लेड स्कूल से ली। लंदन में अपने अध्ययन के क्रम में उन्हें आर. बी. किटाज जैसे कलागुरू का मार्गदर्शन मिला। पारिवारिक वातावरण की बात की जाए तो ज्ञात हो कि महान कलाकार अमृता शेरगिल उनकी मौसी थीं। लेकिन अपनी इस विरासत के बावजूद विवान ने कला के किसी खास शैली को अपनाए रखने या मूर्तन व अमूर्तन में से किसी एक को चुनने की बजाए, आवश्यकतानुसार शैलियों और माध्यमों को अपनाना या बरतना जारी रखा।
यहां तक कि 60 के दशक से लेकर अबतक समय समय पर जो भी विचार या बदलाव कला की दुनिया में आए, उसे उन्होंने सफलतापूर्वक अपनाया व आजमाया। वह चाहे अपने छात्र जीवन में पॉप आर्ट मूवमेंट से जुड़ने का मामला हो या न्यू मीडिया व इंस्टालेशन को अपनाने का, देखा जाए तो विवान बजाय अनुसरण करने के पहल करने वालों में अग्रणी रहे। यही नहीं वर्ष 2015 में इंदिरा गांधी कला केन्द्र, नई दिल्ली में वरिष्ठ कलाकार रामकिंकर को याद करते हुए मूर्तिशिल्प, इंस्टालेशन व परफॉर्मेंस के माध्यम से दी गई उनकी प्रस्तुति अपने तरह के पहले सफल प्रयोग के तौर पर याद रखा जाएगा। उस प्रदर्शनी के कुछ मूर्तिशिल्पों को भी यहां शामिल किया गया है। साथ ही इस प्रदर्शनी में 2016 में उनके द्वारा 1946 के नौसैनिक विद्रोह की स्मृतियों को आडियो- वीडियो इंस्टालेशन व संग्रहित संबंधित दस्तावेजों को संयोजित कर तैयार किए गए कार्यक्रम को भी शामिल किया गया है। दरअसल विवान उन कलाकारों में से है जो अपने समय के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक विषयों के साथ साथ ऐतिहासिक घटनाओं- परिघटनाओं को भी अपने तरह से रूपायित और व्याख्यायित करते हैं। उनके लिए कला गतिविधि सिर्फ स्टुडियो तक सीमित नहीं है वरन उनका कैनवस भी विशाल व विस्तृत है, जिसमें सबकुछ या बहुत कुछ समाहित करने की अनंत संभावना है। इस प्रदर्शनी के लिए आयोजकों को उन 42 संस्थानों, व्यक्तियों व संग्रहकर्ताओं की भी मदद लेनी पड़ी हैै जिनके पास इस कलाकार की कृतियां संग्रहित थीं। यहां अमृता शेरगिल से संबंधित उन छायाचित्रों को भी प्रदर्शित किया गया है जिसे विवान ने पुर्नसंयोजित किया है। कुल मिलाकर कहा जाए तो एक अप्रतिम कलाकार की कला यात्रा के इस समग्र दस्तावेज को देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है।
विनम्र श्रद्धांजलि …