‘विश्वरंग’ के ‘पूर्वरंग’ की गतिविधियों के निमित्त रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में आयोजित आर्टिस्ट कैम्प में सुप्रतिष्ठित चित्रकार एवं कला चिंतक श्री अशोक भौमिक ने कहा कि चित्रकला को पुनर्स्थापित करने के लिये कलाकारों को ही साझा प्रयास करने होंगे। आज के समय में आम जनता चित्रकला प्रदर्शनी में उस तरह से अपनी आमद नहीं दर्ज कराती है जिस प्रकार से कुछ वर्षों पहले हुआ करती थी। यह हमारे लिये विचारणीय प्रश्न है। और इसका समाधान हमें मिलकर खोजना होगा। दरअसल चित्रकला को सही संदर्भों में देखने की जरुरत है। कलाकारों को मिलकर छोटे शहरों, कस्बों और गांवों की ओर रुख करना होना होगा ताकि आम जनता को चित्रकला से रुबरु कराया जा सके।
इस अवसर पर एक रचनात्मक संवाद सुप्रसिद्ध चित्रकार जी. आर. संतोष की तांत्रिक चित्रकला के संबंध में वरिष्ठ चित्रकार डॉ. राखी कुमार ने किया। उन्होंने विस्तृत रुप से जे. आर. संतोष जी की कला यात्रा के विभिन्न पड़ावों को याद किया और उनके सृजनात्मक प्रायोजन पर प्रकाश डाला। टैगोर विश्वकला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक एवं कला आलोचक श्री विनय उपाध्याय ने कहा कि तमाम कलाओं में आवाजाही के माध्यम से कई नई संभावनाओं का जन्म होता है। राष्ट्रीय शिविर के संयोजक श्री संजय सिंह राठौर ने कहा कि आज चित्रकला को आमजन तक पहुंचाने के लिये कलाकारों को मिलकर ठेठ अंचलों तक कला यात्राओं का आयोजन करना चाहिए। इसके माध्यम से वे अपनी कला को आमजन तक न सिर्फ ले जा पाएंगे बल्कि अंचलों के लोक जीवन को आत्मसात करते हुए अपनी कला में भी नई चीजों को रेखांकित कर पाएंगे। आज शहर से सैकड़ों कला प्रेमियों एवं एमएलबी गर्ल्स कॉलेज भोपाल की फैकल्टी और छात्राओं ने नेशनल आर्टिस्ट कैम्प में महिला चित्रकारों के चित्रों को देखा। चित्रकारों के साथ विचार विमर्श भी किया।
विश्वरंग के पूर्वरंग के अंतर्गत रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में आयोजित टैगोर नेशनल आर्टिस्ट कैम्प में प्रस्तुतीकरण के दौरान आर्टिस्ट तसलीम जमाल, बांसवाड़ा, राजस्थान, संजू दास, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, मीनू रानी, नई दिल्ली, मुक्ता गुप्ता, जमशेदपुर, झारखंड, वंदना कुमारी, पटना, बिहार ने अपनी कला यात्रा साझा की। वंदना कुमारी ने बताया कि वूमेन इम्पावरमेंट थीम को लेकर पेंटिंग बनाती हैं। नारी कोमल जरुर है पर जरुरत पड़ने पर शक्ति का रुप धारण कर लेती है। वहीं मीनू रानी ने कहा कि हमारी सोच हमारा व्यक्तित्व दर्शाती है। मैं अपने आसपास की खुश रहने वाली चीजों को अपनी पेंटिंग में दर्शाती हूँ। संजू दास, गाजियाबाद ने बताया कि मेरा जन्म मिथलांचल बिहार में हुआ है। मिथला की हर बेटी कलाकार होती है। मैंने गांव की महिलाओं को बहुत करीब से देखा है। खेत-खलिहान, पशु-पक्षियों, प्रकृति के साथ उनका एक नायाब सा रिश्ता होता है। वे जब गांव से शहर आती हैं तो उनका एक छोटा सा सपना साथ लेकर आती हैं। अपना एक छोटा सा घर शहर में हो। महिलाओं में आसमां को छूने की चाहत होती है। मैं महिलाओं की इन्हीं आशाओं को रंगो और कूची के माध्यम से कैनवास पर उकेरती हूं। तसलीम जमाल, बांसवाड़ा ने कहा कि मैं बहुत छोटे से आदिवासी गांव से आती हूं। आदिवासी बहुत गरीबी में अपना जीवन गुजर बसर करते हैं। उनका जीवन बहुत संघर्षों और दुखों से भरा होता हैं मैने वहीं जन जीवन को बहुत करीब से देखा है। आदिवासी लोगों और पशुओं के बीच एक मोहब्बत का रिश्ता होता है। उनके यहां पशु परिवार का सदस्य होता है। मेरे घर में भी गाय है। वह मेरे परिवार की महत्वपूर्ण सदस्य है। तसलीम जमाल ने कहा कि कला मेरी पूजा है, इबादत है, नमाज है। चित्रकला मेरी सांसे मेरी धड़कन हैं। मैं इसे बनाती नहीं जीती हूं। देवास की डॉ. सोनाली पिथावे ने बताया कि जीवन में हर रंग का महत्व है। उन्हें प्रकृति के रंगों से जीवन में प्रेरणा मिलती है। वहीं भारती प्रजापति मुंबई ने कहा कि वे कबीर और बुद्ध से प्रेरित हैं। उनकी पेंटिंग भी देवी-देवताओं, कबीर और बुद्ध के आस पास रहती है। बबली केसरी, कोलकाता ने प्रकृति से लगाव की बात कही।
नोट: रबीन्द्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी, भोपाल द्वारा भेजी गयी प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित.
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