पिछले दिनों भोपाल में विश्वरंग-2022 का आयोजन किया गया। यूं तो इस आयोजन में कला-साहित्य एवं संगीत से जुड़े कई कार्यक्रम हुए, किन्तु यहाँ प्रस्तुत है युवा कलाकार/कला लेखक भूपेंद्र अस्थाना की कलम से कला से जुड़े आयोजनों की आँखों देखी ….
रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल इस प्रकार के कला साहित्य और संस्कृति का वैश्विक स्तर पर आयोजन करने वाला पहला विश्वविद्यालय है इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकता। मै स्वयं इस बात का साक्षी हूँ क्योंकि मैंने विश्वरंग के पहले आयोजन में भी हिस्सा लिया और इस बार भी भाग लेने का अवसर बना। आँखों देखी यदि बयां करू तो यहाँ कोई भी इस आयोजन की प्रशंसा किये बिना नहीं रहा। जहाँ देश ही नहीं बल्कि विदेशों के भी कलाकार, साहित्यकार, संस्कृति कर्मी और सबसे खास कला- साहित्य – संस्कृति प्रेमियों का एक बड़ा जमावड़ा हुआ। साथ ही यह भी बताएं कि इस आयोजन में बच्चे ,युवा और वरिष्ठ एक साथ एक मंच पर उपस्थित रहे और अपनी-अपनी अभिव्यक्तियों को व्यक्त करते दिखे। कुल मिला कर यह एक शानदार आयोजन रहा। अद्भुत और अकल्पनीय आयोजन रहा। विश्वरंग 2022 में अनेक वैचारिक और मनोरंजक सत्र आयोजित हुए। इन तमाम सत्रों में श्रोताओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया खूब आनंद भी लिया। इस सफल और शानदार आयोजन के सूत्रधार श्री संतोष चौबे जी और इनके साथ श्री लीलाधर मंडलोई, श्री मुकेश वर्मा ,श्री अशोक भौमिक जी जोकि इस सफल आयोजन को सार्थक और यथार्थ रूप देने के लिए अमूल्य योगदान दिया। इसी कड़ी में उन सभी लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की जानी चाहिए जिन्होने कार्यक्रम की सफलता में यथासंभव सहयोग और योगदान दिया। ये सभी लोग बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं।
“कला समीक्षा की चुनौतियाँ ” पर एक संवाद –
मैं विश्वरंग २०२२ के कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए 15 नवम्बर को भोपाल पहुँचा। उसी दिन शाम को रविंद्र भवन में चल रहे रामलीला कार्यक्रम का आनंद लिया। 16 नवम्बर को भोपाल के गौरांजनी सेमिनार हॉल, रवीन्द्र भवन में विश्वरंग के गतिविधियों में सर्वप्रथम विषय ” कला समीक्षा की चुनौतियाँ ” पर एक संवाद का कार्यक्रम हुआ। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में रवीन्द्र त्रिपाठी / प्रयाग शुक्ल / विनोद भारद्वाज / सुदीप सोहनी / अशोक भौमिक रहे। सभी ने अपने अपने विचार उक्त विषय पर प्रकट किया। इस दौरान सभागार में तमाम युवा और वरिष्ठ कलाकारों, लेखकों और श्रोताओं की उपस्थिति रही। हालांकि इस कार्यक्रम से कोई विशेष हल नहीं निकला लेकिन इस प्रकार के संवाद की एक शुरुआत हुई यह बहुत बड़ी बात है। जहां लोग आपसी संवाद, समीक्षा, टिप्पणी आदि करने से कतराते हैं वहीं इस प्रकार के कार्यक्रम ने एक नया मार्ग प्रशस्त किया है। इसके लिए इस कार्यक्रम में प्रमुख वक्ताओं के रूप में सम्मिलित हुए लोगों का धन्यवाद और विशेष रूप से अशोक भौमिक जी को आभार कि इस प्रकार के सत्र का आयोजन किया। साथ ही अपने भाव इस कार्यक्रम के विषयानुसार बड़े ज्वलंत रूप में प्रस्तुत भी किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रवींद्र त्रिपाठी ने कहा कि आलोचक को स्वयं से भी संवाद करने की आवश्यकता है। आलोचक का धर्म है बुनियादी जिम्मेदारी को निभाये। सतही सोच से परे होने की भी जरूरत है। कला और कलाकारों के साथ संवाद करने के साथ साथ आत्मसंवाद भी बहुत जरूरी है। अपनी धारणाओं से बाहर और वाह्य व्याप्त धारणाओं से जो मुक्त होता है – वही एक अच्छा आलोचक है । आलोचकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस नज़र से आप दुनियां को देख रहे होते हैं उसी नज़र से स्वयं को भी देखने की विशेष जरूरत है। आज के संवाद से हम सभी को आत्ममंथन करने की जरूरत है। और इसी प्रकार कला, समीक्षा की चुनौतियों पर निरंतर संवाद की आवश्यकता है। तभी वास्तव में कला सृजन और कला लेखन में सार्थक जीवन जिया जा सकता है। ऐसे आयोजन हर कला आयोजन के साथ हमेशा होनी चाहिए। साथ ही एक बात और ध्यान देना चाहिए की जब बड़े बड़े लेखक, समीक्षक और कलाकार-श्रोता उपस्थित हों तो प्रश्नोत्तरी भी होनी चाहिए। ताकि श्रोता और वक्ता के बीच एक सार्थक संवाद और वास्तविक हल निकल कर आए। इस बात की एक कमी इस कार्यक्रम मे रही जबकि अच्छे वक्ता और अच्छे श्रोता दोनों ही यहाँ मौजूद हैं । आगे अवश्य इस बात की याद हो ऐसा मेरा मानना है ।
टैगोर राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी –
दूसरे दिन शाम को एक राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का भव्य उदघाटन हुआ । जिसका उदघाटन लखनऊ के वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल सहित अन्य गणमान्य लोगों ने किया। साथ ही चयनित कलाकारों को पुरस्कृत भी किया गया पुरस्कृत कलाकार : पेंटिंग प्रदर्शनी के लिए पाँच कलाकारों को पुरस्कार भी दिया गया, इन कलाकारों में ज्योति बिरवाल, चार्नदास जाधव, शुभजीत, लक्ष्मण सुरधन चव्हाण और भानु श्रीवास्तव जैसे कलाकारों को बधाई। प्रत्येक कलाकार को विश्वरंग के तरफ से 50,000 रुपये नकद पुरस्कार, प्रतीक चिन्ह, प्रमाण पत्र दिया गया। इस कला प्रदर्शनी में पेंटिंग्स , प्रिण्ट्मेकिंग, रेखांकन आदि शामिल किए गए थे। युवाकलाकारों के प्रयोग साक्षात दिखलाई पड़े । इस प्रदर्शनी का थोड़ा और विस्तार करने की जरूरत दिख रही थी जैसे की अन्य विधाओं को भी सम्मिलित करने की जरूरत है। और थोड़ा डिस्प्ले पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत दिखी। हालांकि कुल मिलाकर इस प्रकार यह प्रदर्शनी अच्छी लगी। अतिथियों और कला प्रेमियों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया और उपस्थित कलाकारों से संवाद भी किया। तत्पश्चात ए. रामचंद्रन के मोनोग्राफ (लेखक : विनोद भारद्वाज) का लोकार्पण किया गया एवं चित्रकार नैनसुख के द्वारा निर्मित चित्रों पर आधारित फिल्म को भी दिखाया गया।
विभिन्न विधाओं में कार्यशाला –
इस कला समागम में सभी के लिए कुछ न कुछ अवश्य शामिल किया गया। इसी कड़ी में बच्चों के लिए प्रिंटमेकिंग, क्ले मॉडलिंग, पेपर मैसी और जलरंग की कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। जिसमें काफी संख्या में बच्चों ने भाग लिया और अपने विचारों को मूर्त रूप दिया हालांकि इस कार्यशाला में सभी विधाओं के विषय विशेषज्ञ रहे, जिनकी देखरेख और उनके बताए गए तरीको पर बच्चों ने सुंदर- सुंदर कलाकृतियों के निर्माण किए। इसके लिए बच्चों को प्रमाण पत्र और प्रतीक चिन्ह भी प्रदान किए गए। बच्चों मे एक उत्साह और उल्लास का भी भाव देखा गया ।
मोनोग्राफ विमोचन –
कार्यक्रम के तीसरे दिन कुछ महत्वपूर्ण कलाकारों के जीवन और कला यात्रा पर आधारित तीन मोनोग्राफ का विमोचन किया गया। जिसमे सर्वप्रथम श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय द्वारा लिखित “नैनसुख” की कला पर आधारित, श्री सुमन सिंह द्वारा लिखित “कलागुरु बीरेश्वर भट्टाचार्य” पर केंद्रित एवं महावीर द्वारा लिखित “अमूर्तन कलाकार अफजल की कला” पर आधारित मोनोग्राफ का विमोचन और पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेशन द्वारा विस्तृत व्याख्यान लेखकों द्वारा किया गया ।
कला सेमिनार –
भारतीय चित्रकला – चित्र और चित्रण पर एक सेमिनार भी हुआ जिसमे तीन युवाओं ने अपने अपने लेखों को पढ़ा और इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इस विषय पर मै यह कहना चाहूँगा की टैगोर फेस्टिवल के इस आयोजन मे युवाओं को खास तौर पर अवसर प्रदान किया गया है । जहां वरिष्ठ के सम्मान और युवाओं को प्रोत्साहन का दृश्य साफ देखा जा सकता है। श्री अशोक भौमिक जी का यह विशेष ध्यान रहता है की सुदूर जगहों पर बैठा कलाकार या लेखक चाहे वह युवा हो या वरिष्ठ उसे अवश्य अवसर मिलना चाहिए। प्रथम विश्व रंग महोत्सव मे मुझे भी लेख पढ़ने का मौका मिला था ।
इस महोत्सव में सभी के लिए कुछ न कुछ जरूर रहा। एक और महत्वपूर्ण बात इस आयोजन मे समकालीन के साथ साथ तमाम पारंपरिक एवं लोक कलाओं का भी प्रदर्शन देखने को मिला। खैर इस मामले में मध्यप्रदेश धनी है । गोंड और भील जनजातीय कला प्रदर्शनी भी लगाई गई थी । पारंपरिक लोक नृत्य ,गायन, पेंटिंग ,क्राफ्ट आदि को भी विशेष स्थान दिया गया।
कुल मिलाकर यदि कहा जाए तो ऐसा आयोजन अभी तक कहीं देखने में नहीं आया की एक ही मंच पर कला, साहित्य, संगीत जैसे तमाम विधाओं को प्रस्तुत किया गया हो। और सभी को भलीभाँति विशेष स्थान भी दिया गया हो। कलाकार,साहित्यकार, कवि, कला-साहित्य प्रेमी सभी को ध्यान में रखते हुए एक कला साहित्य समागम का रूप स्थापित किया गया। वास्तव में यह पहला विश्वविद्यालय है जो ऐसे महत्वपूर्ण आयोजन को पिछले कई वर्षो से निर्बाधित आयोजित कर रहा है। और हिन्दी भाषा को विशेष प्राथमिकता के साथ किया जा रहा है यह वास्तव मे महत्वपूर्ण आयोजन है। आयोजकों को बधाई एवं शुभकामनायें ….
-भूपेंद्र कुमार अस्थाना
लखनऊ