“जो कुछ हो रहा है वह एक कलंक है। इतने सारे लोग मारे जा रहे हैं। अधिकारी जनता में देशभक्ति की भावना जगाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह सब एक धोखा है। और कई लोग उस प्रचार से धोखा खा जाते हैं जो वर्षों से चला आ रहा है और जिसने लोगों की सोच को बदल दिया है। यह भयंकर है।-:येलेना ओसिपोवा
रूस यूक्रेन युद्ध के बीच शांति बहाली के लिए आवाजें भी उठ रही हैं। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में युद्ध विरोधी प्रदर्शन जारी हैं, इन प्रदर्शनकारियों में एक नाम हैं येलेना ओसिपोवा। येलेना (जन्म 1945) सेंट पीटर्सबर्ग की एक कलाकार और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। 2 मार्च 2022 को, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के विरोध में सेंट पीटर्सबर्ग में गिरफ्तार किए गए लोगों में ओसिपोवा भी शामिल थी। येलेना इन दिनों “शांति वाली दादी” के रूप में लोकप्रिय हो गईं, क्योंकि उन्हें यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। ओसिपोवा के माता-पिता लेनिनग्राद पर कब्जे की लड़ाई में बच गए थे, लेकिन तब इसमें उनके परिवार के बाकी सदस्यों की मृत्यु हो गई थी। ओसिपोवा को सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए जाना जाता है, अपने विरोध प्रदर्शनों के लिए कलात्मक तख्तियां वे स्वयं बनाती हैं। उनकी अपनी एक विशिष्ट कलात्मक शैली है, जिसके माध्यम से वे अक्सर राज्य की हिंसा से हुई भूतिया भयावहता को दर्शाती है। उनकी एक प्रदर्शनी का शीर्षक था “असुविधाजनक छवियों के साथ एक आरामदायक तहखाने में ” (“a cozy basement with uncomfortable images”)। इस प्रदर्शनी में वह पोस्टर भी शामिल था, जिसमें एक मां को उसके मृत शिशु के साथ दिखाया गया था। पेंटिंग उमराली नज़रोव नाम के एक ताजिक लड़के के बारे में थी, जो सेंट पीटर्सबर्ग में अपनी मां से जबरन अलग कर दिए जाने की वजह से मर गया था।
2 मार्च 2022 को उनकी गिरफ्तारी का फुटेज सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया गया था। जिसे दुनिया भर से सराहना भी मिली । 24 मार्च 2022 को बीबीसी के रूस संपादक स्टीव रोसेनबर्ग को येलेना ने बताया, कि “रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद, वह इतनी हैरान थी कि उसने तीन दिनों तक खाना नहीं खाया। फिर, गुस्से से भरकर, वह विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आई”।
वैसे युद्ध के विरुद्ध किसी कलाकार द्वारा कलात्मक प्रतिक्रिया का यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले दिनों एक अन्य महिला कलाकार तब चर्चा में आयी थी जब उसने अफ़ग़ानिस्तान के हालत पर अपनी प्रतिक्रिया सार्वजानिक की थी। यह महिला कलाकार थी 1988 में जन्मी शम्सिया हसनी उर्फ़ ओममोलबनिन हसनी। शम्सिया एक अफगान भित्तिचित्र कलाकार हैं जो काबुल विश्वविद्यालय में ड्राइंग और एनाटॉमी ड्राइंग के एसोसिएट प्रोफेसर थीं। वर्तमान तालिबानी हुकूमत से पहले उसने काबुल की गलियों में “स्ट्रीट आर्ट” को लोकप्रिय बनाया और भारत, ईरान, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड, वियतनाम, नॉर्वे, डेनमार्क, तुर्की, इटली, कनाडा और राजनयिक मिशनों सहित कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। हसनी ने अफ़ग़ान युद्ध के प्रति जागरूकता लाने के लिए काबुल में इन भित्तिचित्रों को चित्रित किया था । तब इन्ही कारणों से 2014 में, हसनी को एफपी के शीर्ष 100 वैश्विक विचारकों में से एक नामित किया गया था।
हसनी का जन्म 1988 में हुआ था और उन्होंने अपना बचपन ईरान में बिताया; जहाँ उसके माता-पिता युद्ध के दौरान अफगानिस्तान के कंधार से आकर अस्थायी रूप से बस गए थे। हसनी ने छोटी उम्र से ही पेंटिंग में रुचि दिखाई। किन्तु नौवीं कक्षा तक कला की शिक्षा ले पाना इसलिए संभव नहीं था, क्योंकि तब के अफ़ग़ानिस्तान में किसी तरह के कला शिक्षा की गुंजाइश नहीं थी। किन्तु 2005 में काबुल लौटने पर, उन्होंने कला में काबुल विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की। उन्होंने अफगानिस्तान में काबुल विश्वविद्यालय से पेंटिंग में बीए और विजुअल आर्ट्स में मास्टर डिग्री हासिल की। बाद में वह उसी काबुल विश्वविद्यालय में ड्राइंग और एनाटॉमी ड्रॉइंग की एसोसिएट प्रोफेसर बन गईं। और उसके बाद उसने एक समकालीन कला समूह, “बेरंग आर्ट्स” की स्थापना की। अपने रंगीन भित्तिचित्रों का निर्माण करते हुए हसनी युद्ध से उपजी नकारात्मकता के प्रभाव को धूमिल करने का प्रयास करती है। उनका मानना है कि, “किसी चित्र का शब्दों से अधिक प्रभाव है, और यह अपनी बात को सामने रखने का उचित तरीका है।” वह महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई के लिए अपनी कला का उपयोग करती है, इस क्रम में वह लोगों को उन त्रासदियों की याद दिलाती है जिनका महिलाओं ने सामना किया है और आज भी कर रही हैं।
हालाँकि भित्तिचित्रण के प्रति उनके इस रुझान की शुरुआत तब हुयी जब हसनी ने दिसंबर 2010 में यूनाइटेड किंगडम के एक भित्तिचित्र कलाकार चू द्वारा काबुल में आयोजित एक कार्यशाला के दौरान भित्तिचित्रण का अध्ययन किया । इस कार्यशाला के बाद, हसनी ने काबुल के गलियों की दीवारों पर स्ट्रीट आर्ट का अपना अभ्यास करना शुरू किया। क्योंकि पारंपरिक कला रूपों की तुलना में भित्तिचित्रों का यह अंकन अपेक्षाकृत कम खर्चीला भी था। उनकी एक चर्चित कलाकृति काबुल के सांस्कृतिक केंद्र की दीवारों पर है, जिसमें बुर्का पहने एक महिला एक सीढ़ी के नीचे बैठी हुई है। इसके नीचे अंग्रेजी में लिखा है, “एक सूखी हुई नदी में वापस पानी आ सकता है, लेकिन उस मछली का क्या जो मर गई?”
2013 में अपने एक बयान में उसने कहा : “मैं दीवारों पर अपने चित्रों के माध्यम से युद्ध की बुरी यादों के ऊपर रंग बिखेरना चाहती हूँ , और अगर मैं उनके जेहन से इन बुरी यादों को हटा देती हूं, तो मैं लोगों के दिमाग से युद्ध मिटा देती हूं। मैं अफगानिस्तान को अपनी कला के लिए प्रसिद्धि देना चाहती हूँ, युद्ध के लिए नहीं ।”
हालाँकि बात जब युद्ध के विरुद्ध किसी कलाकार की अभिव्यक्ति की आती है तो सर्वकालिक महान कलाकार पाब्लो पिकासो की कलाकृति “गुएर्निका ” को भला कौन भूल सकता है। नीले रंग से बने इस विशाल चित्र को उन्होंने वर्ष 1937 में पेरिस की प्रदर्शनी के लिए बनाया था। इस चित्र में जर्मन सेना द्वारा स्पेन के सीमावर्ती गाँव गुएर्निका के विनाशक ध्वंस को दर्शाया था। इस चित्र में घनवादी रूपाकारों के माध्यम से बैल, रोती हुयी स्त्री और घोड़े वगैरह की आकृति दर्शायी गयी है। इन आकारों के प्रतीकात्मक महत्व के सन्दर्भ में पिकासो ने कहा था -: ” यहाँ बैल का चित्रण तानाशाही के प्रतीक-रूप में नहीं किया है बल्कि वह पाशवी अत्याचार व अन्याय का प्रतीक है .. घोडा जनता का प्रतीक है… गुएर्निका का यह चित्रण प्रतीकात्मक है।”
-सुमन कुमार सिंह