आधुनिक कला में संवाद की आवश्यकता को देखते हुए बिहार की संस्था “रंग-विकल्प” ने दो वर्ष पूर्व ‘मूर्तिकला और बिहार’ विषय पर बातचीत श्रृंखला का आयोजन किया था। बिहार म्यूजियम के तत्कालीन निदेशक व वरिष्ठ कलाकार युसूफ से इस बातचीत का संचालन किया था संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने । प्रस्तुत है उस बातचीत के प्रमुख अंश अनीश अंकुर की कलम से…
Anish Ankur
पटना , 6 अप्रैल 2019। आज बिहार संग्रहालय और रंग विकल्प के द्वारा पटना संग्रहालय सभागार में ‘ मूर्तिकला और बिहार’ पर बातचीत का आयोजित की गई। जिसमें बिहार संग्रहालय के निदेशक श्री युसुफ ने अपने विचार प्रकट किए। प्रारंभिक वक्तव्य में श्री युसूफ ने कहा की सफल ” कलाकार वहीं है जो मटेरियल का उचित इस्तमाल करता हैं । कला पर कलाकारों का अधिकार नहीं होता है। जैसे प्रसिद्ध मूर्तिकार हिम्मत साह ने मिट्टी को 10 से 15 साल तक अपने अनुरुप ढाला है। लेकिन उसके बाद भी इस कला पर ऊनका साधिकार नहीं बन पाया हैं। हिम्मत साह ने चीजों को जैसा को तैसा नहीं देखा , उसे बहुत आगे देखा। बिहार में रजत घोष का काम फोक तत्व को लेकर बहुत ही शानदार है। अब कोई कला भारतीय नहीं रही । “
Mr. Yusuf
श्री युसुफ ने आगे बताया “अब कला वैश्विक हो चुकी है। इस कारण अब दुनिया में भारत की कला की जगह कहा जाता है की यह भारत के कलाकारों की कला हैं । कला पर लोकल चीजों का प्रभाव है इसे हम बुद्ध की मुर्ति से देख सकते है। भारत मे गौतम बुद्ध की मूर्ति भारतीय परिवेश में बनाई जाती है वही चीन में चीनी परिवेश में बनाई जाती है जिसमे गौतम बुद्ध की मोक्ष चीनी लोगों जैसी होती है।”
बिहार सरकार के कला व संस्कृति संबंधी हस्तक्षेप पर यूसुफ ने अपनी राय प्रकट करते हुए कहा ” बिहार संग्रहालय में प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं । बिहार की कला का प्रचार प्रसार और बिक्री के लिए बिहार म्युजियम उपेन्द्र महारथी शिल्प संस्थान के माध्यम से आर्ट की बिक्री होगी। जिससे कलाकारों को उनकी कलाओं का उचित दाम मिलेगा। ” कला मे देखना आने के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा “मूर्तिकला व चित्रकला मे सबसे महत्वपूर्ण है की आपको देखना आना चाहिए।यदि आपने देखना न्हीं सीखा तो आप कुछ नहीं जान सकते । कलाकृति का समाजिक महत्व से ज्यादा कलात्मक महत्व होता हैं । “
इस दौरान मधुबनी पेंटिंग, पिकासो की युद्ध विरोधी गुयेर्निका, हेनरी मूर, ब्रान्कुसी, रजत घोष आदि कलाकारों के महत्व व योगदान के विषय में चर्चा हई। इस बात को आगे बढ़ाते हुए यूसुफ ने सवाल के लहजे में कहा ” क्या पिकासो की युद्ध विरोधी पेंटिंग गुयेर्निका बनाने से क्या युद्ध रुक गया? कला का कलात्मक महत्व होता है, सामाजिक नहीं।”
बातचीत के समापन में मॉडरेटर ने कहा “कला का आनंद लेने के लिए आपको कलात्मक तौर प्रशिक्षित होना होगा”श्रोताओं ने कला के सामाजिक प्रभाव के संबंध में कई प्रश्न पूछे। रंग विकल्प के द्वारा आयोजित इस सेमिनार में साहित्यकार अरुण सिंह, रंगकर्मी जय प्रकाश, सन्यासी रेड, गोपाल शर्मा, कैलाशचंद झा, आभा झा, अमरनाथ झा,शरद, अरुण सिंह, अशोक कुमार सिन्हा,आनन्दी बादल, गौतम गुलाल , मुकेश, मनीष, नीतू सिन्हा , मज़हर इलाही, कामिनी, दीपक, सहित कई लोग उपस्थित थे।