ज़रा सोचो अशोक भौमिक ……

गुलज़ार साहब इंद्रधनुषी रंगों में लिखते हैं और सोचते हैं। जहाँ रूमी से लेकर पाब्लो नेरुदा और जीबानंद दास जैसे कई लोगों ने उन्हें कई रंगों में रंगा है। वहीँ गुलज़ार साहब ने बिरजू महाराज, मेहदी हसन, पंचम, आशा भोसले जैसी हस्तियों को अपने शब्दों में पिरोया है। इन हस्तियों की  मौजूदगी, सोच और शब्द गुलज़ार साहब के वजूद में बसे हैं। फिर ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने उनके जीवन को प्यार, स्नेह और ढेरों भावनाओं से भर दिया है: मेघना, राखी जी, विशाल भारद्वाज और जावेद अख्तर साहब, जैसे कुछ नाम। और, अब्बू से अनकहे शब्द, उनकी मां को उनके वजूद में तलाशते हैं, वो जीवन के रेशमी बंधन हैं। गुलज़ार साहब ने उन्हें अपने दिल की गहराई में कैद कर लिया है। और अपनी पुस्तक “caged : memories have names” में उन्होंने अपने शब्दों से इन्हें याद किया है I इन तमाम यादों में एक याद है चित्रकार, लेखक अशोक भौमिक के चित्रों से जुड़ी, जिसे हम यहाँ सादर साभार प्रस्तुत कर रहे हैं ……

अशोक भौमिक

ज़रा सोचो अशोक भौमिक ……

ख़ुदायी तुमको देते और कहते,

ज़रा अपनी तरह से पेंट कर के तो दिखाओ ज़िंदगी को

तो ब्लैक एंड व्हाईट (black & white) से तुम रँग भरते,

सियाही से लिखे होते सभी लम्हों के चेहरे

झपकती पलकों में दिन रात कितने साफ दिखते

बड़ा आसान होता आँखें सूरज से मिलाना !

 

ज़मीं पर गोल, चौरस कैनवास पहने हुजूम आते

इरादे, मसले कुछ ज़िंदगी के

तिकोनी शक्ल लेकर,

उलझते, भीड़ में भिड़ते हुए कुछ लोग होते

तुम अपने आप ही में इक ज़माना होते उसमें !

 

कहीं फुटपाथ पर, इक बादशाह अर्चिन (urchin) बिठा रखा है तुमने

उड़ाता है पतंगे रात दिन की

नहीं है फ़र्क दोनों की सियाही में !

 

तुम्हारे कोल माईनर्ज़ (coal miners),

न जाने कौन सी कोयेलों की खानों से

निकाले हैं वो तुमने

 

वो पत्थराये हुए चेहरे,

किसी चूल्हे में झोंके जायेंगे तो लाल होंगे !

 

नुकीली, तीखी आँखों में,

कमाने दर्द की खींचे हुए चलते हैं जब,

अशोक भौमिक ……..

तुम्हारी पेन्टिंज़ (paintings) में मुझको हिंदुस्तान दिखता है !

 

-गुलज़ार

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