कला में अमूर्तन (Abstraction) के आगमन के साथ ही यह प्रश्न उठता रहा है कि क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण है, या यह केवल कुछ कलाकारों की मानसिक प्रवृत्ति का परिणाम है। कलाकारों के साथ-साथ दर्शकों और समीक्षकों का एक वर्ग आरंभ से ही अमूर्त कला को नकारता आया है। आधुनिक कला के इस रूप पर जितने व्यंग्य और चुटकुले बने हैं, उनकी गिनती मुश्किल है। परंतु जब न्यूरोसाइंटिस्ट सेमिर ज़ेकी (Semir Zeki) और विलायनूर एस. रामचंद्रन (V.S. Ramachandran) जैसे वैज्ञानिक यह सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि अमूर्तन मस्तिष्क की दृश्य और संवेदन प्रक्रियाओं से गहराई से जुड़ा है, तो यह बहस एक नए मोड़ पर पहुँच जाती है। क्योंकि उनका यह हालिया शोध बताता है कि अमूर्त कला केवल कलाकार की कल्पना का परिणाम नहीं, बल्कि मानव मस्तिष्क की संरचनात्मक और संवेदी प्रतिक्रियाओं का प्रतिबिंब भी है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है अमूर्तन और मस्तिष्क के संबंध पर आधारित यह विश्लेषणात्मक आलेख, जो विज्ञान और सौंदर्यशास्त्र के इस अद्भुत संगम को समझने का प्रयास करता है।- संपादक

कला, विशेषकर अमूर्त कला (Abstract Art), सदियों से मानव चेतना और संवेदना का सबसे गहन माध्यम रही है। जब कोई कलाकार अमूर्त रूपों, रेखाओं और रंगों के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करता है, तो वह केवल बाहरी दुनिया की नकल नहीं कर रहा होता, बल्कि अपने भीतर चल रही मानसिक, भावनात्मक और बौद्धिक प्रक्रियाओं का दृश्य रूपांतरण कर रहा होता है। यह रूपांतरण मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली से गहराई से जुड़ा हुआ है।
वैज्ञानिक दृष्टि से, कलाकार का मस्तिष्क केवल देखने या चित्र बनाने का उपकरण नहीं है, बल्कि यह अनुभव, स्मृति, संवेदना और अर्थ के जटिल नेटवर्क का केंद्र है। इस दिशा में न्यूरोसाइंटिस्ट सेमिर ज़ेकी (Semir Zeki) और विलायनूर एस. रामचंद्रन (V.S. Ramachandran) के शोध विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
सेमिर ज़ेकी, जो “Neuroaesthetics” के अग्रणी माने जाते हैं, का मानना है कि जब हम किसी चित्र या कलाकृति को देखते हैं, तो मस्तिष्क के वे हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जो पैटर्न पहचान (Pattern Recognition) और सौंदर्य अनुभव (Aesthetic Experience) से संबंधित हैं। ज़ेकी के अनुसार, अमूर्त कला की सुंदरता इस बात में है कि यह मस्तिष्क को चुनौती देती है — वह अधूरी सूचनाओं से अर्थ खोजने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में मस्तिष्क सक्रिय रूप से “कल्पना” (Imagination) का प्रयोग करता है, जिससे दर्शक और कलाकार दोनों एक साझा मानसिक अनुभव में जुड़ते हैं।
उदाहरण के लिए, वसीली कैंडिंस्की (Wassily Kandinsky) की कृतियों में आकृतियाँ, रेखाएँ और रंग किसी वस्तु का प्रत्यक्ष रूप नहीं दिखाते, बल्कि वे मस्तिष्क को “भावनात्मक अनुनाद” (emotional resonance) का अनुभव कराते हैं। जब दर्शक इन रचनाओं को देखता है, तो वह उन्हें अपने अनुभव और संवेदना के आधार पर अर्थ देता है। यह अर्थ मस्तिष्क के visual cortex से लेकर limbic system तक के नेटवर्क में निर्मित होता है, जहाँ दृश्य और भावनात्मक अनुभव एकीकृत हो जाते हैं।

इसी तरह, भारतीय अमूर्त कलाकार व.स. गायतोंडे (V. S. Gaitonde) के चित्रों में मौन, शांति और आत्मनिष्ठता का जो अनुभव होता है, वह भी मस्तिष्क की इसी आंतरिक क्रिया से उत्पन्न होता है। गायतोंडे के कैनवास पर फैले रंगों और रेखाओं में कोई ठोस आकृति नहीं होती, फिर भी दर्शक उनमें गहराई, ऊर्जा और ध्यान की अनुभूति करता है। यह मस्तिष्क की pattern completion प्रक्रिया का परिणाम है — जहाँ दृश्य संकेतों से मस्तिष्क स्वयं अर्थ का निर्माण करता है।

विलायनूर रामचंद्रन ने अपने “Ten Laws of Artistic Experience” में यह बताया है कि कलाकार अक्सर अनजाने में मस्तिष्क की दृश्य प्रणाली की सीमाओं और प्रतिक्रियाओं का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, वे “पीक शिफ्ट प्रभाव” (Peak Shift Effect) का प्रयोग करते हैं — यानी किसी रूप, रंग या रेखा को इतना अतिरंजित कर देना कि वह मस्तिष्क के लिए अधिक आकर्षक बन जाए। यही कारण है कि अमूर्त कलाकृतियाँ, जो किसी ठोस आकृति को नहीं दिखातीं, फिर भी भावनात्मक रूप से शक्तिशाली लगती हैं।
रामचंद्रन के अनुसार, कलाकार का मस्तिष्क “संवेदी चयन” (Sensory Selection) की प्रक्रिया से गुजरता है। वह बाह्य जगत की अनेक आकृतियों में से केवल वे तत्व चुनता है जो उसके भीतर किसी भावनात्मक या बौद्धिक स्पंदन को जगाते हैं। अमूर्तन दरअसल उस चयन का परिणाम है — जहाँ कलाकार अपने अनुभवों को “सार” रूप में प्रस्तुत करता है।

उदाहरण के रूप में, पाब्लो पिकासो की “Les Demoiselles d’Avignon” या बाद की अमूर्त क्यूबिस्ट कृतियों को देखें। उनमें मानव आकृति का विखंडन (fragmentation) और पुनर्संयोजन (reconstruction) दर्शाता है कि कलाकार केवल दृश्य नहीं, बल्कि बौद्धिक अनुभव को भी चित्र में समाहित कर रहा है।
इस दृष्टि से, अमूर्तन केवल किसी सामाजिक या सांस्कृतिक प्रभाव का परिणाम नहीं, बल्कि मानव मस्तिष्क की अंतर्निहित संरचना का भी विस्तार है। जब कलाकार अमूर्त रूपों का चयन करता है, तो वह मस्तिष्क की उसी जिज्ञासा और रचनात्मकता को दृश्य रूप में मूर्त करता है, जो उसे निरंतर नए अर्थ खोजने के लिए प्रेरित करती है।
अंततः कहा जा सकता है कि अमूर्त कला विज्ञान और सौंदर्य के संगम पर स्थित है। यह न केवल कलाकार के मस्तिष्क की रचनात्मक प्रक्रिया का परिणाम है, बल्कि दर्शक के मस्तिष्क में भी एक नया संवेदी संसार निर्मित करती है। इसीलिए, अमूर्तन का अनुभव एक “मानसिक संवाद” है — जहाँ रंग, रूप और रेखाएँ शब्दों से परे जाकर हमारे मस्तिष्क की गहराई में उतरती हैं और सौंदर्य के शुद्धतम रूप का अनुभव कराती हैं।
स्रोत _chatgpt एंड others
