पुरातत्वविदों ने मिस्र के लाल सागर बंदरगाह शहर बेरेनिके में पत्थर से बनी एक प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का पता लगाया है। भूमध्यसागरीय संगमरमर से बनी यह प्रतिमा, जिसे अफगानिस्तान के पश्चिम में मिले इस तरह की पहली प्रतिमा मानी जा रही है। जो उस दौर में मिस्र और भारत के बीच व्यापार और संबंधों पर नई रोशनी डालती है। मिस्र की सुप्रीम काउंसिल ऑफ एंटिक्विटीज (एससीए) के प्रमुख मुस्तफा अल-वजीरी के हवाले से कहा गया है कि “इस खोज से रोमन युग के दौरान मिस्र और भारत के बीच व्यापारिक संबंधों की मौजूदगी के महत्वपूर्ण संकेत मिले हैं।”
मिस्र के पर्यटन और पुरावशेष मंत्रालय द्वारा पिछले सप्ताह जारी एक बयान ने पुष्टि की कि पोलिश-अमेरिकी टीम ने “बेर्निस में प्राचीन मंदिर में खुदाई करते समय रोमन काल की इस मूर्ति की खोज की, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका निर्माण काल दूसरी शताब्दी ईस्वी रहा होगा। मूर्ति के सिर के चारों ओर एक प्रभामंडल है जो सूरज की किरणों से ढका हुआ है।” इसके बगल में एक प्रतीकात्मक कमल का फूल भी दर्शाया गया है। मंत्रालय ने कहा कि इस खोज से मिस्र द्वारा निभाई गई अनूठी भूमिका पर प्रकाश डालने में मदद मिलेगी, जो “रोमन साम्राज्य को प्राचीन दुनिया के कई हिस्सों से जोड़ने वाले व्यापार मार्ग के केंद्र में स्थित था।”
इस खबर की जानकारी सबसे पहले न्यूयॉर्क रिव्यू में विलियम डेलरिम्पल द्वारा पिछले सप्ताह दी गई थी। अभी तक माना जा रहा है कि बरामद प्रतिमा को भारतीय-गांधार शैली में बेहतरीन भूमध्यसागरीय संगमरमर पर उकेरी गई थी।
मिशन के अमेरिकी पक्ष के निदेशक स्टीवन साइडबॉथम ने कहा कि इस मूर्ति के अलावा, पुरातत्वविदों को रोमन सम्राट फिलिप द अरब (244-249 सीई) से संबंधित संस्कृत में एक शिलालेख भी मिला है। उन्होंने कहा कि यह शिलालेख बुद्ध की प्रतिमा (जो बहुत पहले के युग की है) से भिन्न युग का प्रतीत होता है। इसके अलावा पुरातत्वविदों को उसी मंदिर में अन्य शिलालेख भी मिले हैं। जो ग्रीक में हैं, इसका काल पहली शताब्दी सीई से 305 सीई तक हो सकता है। साइडबॉथम के अनुसार, उन्हें मंदिर के अंदर सातवाहनों के मध्य भारतीय साम्राज्य के दूसरी शताब्दी के दो सिक्के भी मिले हैं।
इस अमेरिकी-पोलिश पुरातात्विक मिशन को बेरेनिके में मुख्य प्रारंभिक रोमन काल के देवी आइसिस को समर्पित मंदिर की खुदाई करते हुए मंदिर के प्रांगण में बुद्ध की यह संगमरमर मूर्ति मिली। मिस्र के प्राचीन वस्तुओं की सर्वोच्च परिषद के महासचिव मुस्तफा वज़ीरी ने जोर देकर कहा कि नई खोजी गई मूर्ति रोमन साम्राज्य के दौरान मिस्र और भारत के बीच व्यापार का एक सबूत है। उन्होंने कहा कि मिस्र उस प्राचीन व्यापार मार्ग के केंद्र में था जो भारत सहित प्राचीन दुनिया के कई क्षेत्रों से तत्कालीन रोमन साम्राज्य को जोड़ता था। वज़ीरी ने कहा कि मिस्र के लाल सागर तट पर कई रोमन युग के बंदरगाह के जरिये यह व्यापार जारी था, इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक केंद्र बेरेनिके भी था ।
उनके अनुसार भारत से जहाज काली मिर्च, कीमती पत्थर, कपड़ा और हाथी दांत जैसे उत्पादों के साथ पहुंचते थे और उन्हें बेरेनिके बंदरगाह पर उतारा जाता था। उसके बाद इन सामग्रियों को ऊँटों के जरिये रेगिस्तान के पार नील नदी तक पहुंचाया था। अन्य जहाजों द्वारा तब इन सामग्रियों को अलेक्जेंड्रिया और वहां से रोमन साम्राज्य के बाकी हिस्सों में पहुँचाया जाता था।
इस अंतर्राष्ट्रीय मिशन के पोलिश पक्ष के निदेशक मारियस ग्विआज़दा ने बताया कि 71 सेंटीमीटर ऊंची प्रतिमा में बुद्ध को खड़ा दिखाया गया है जो अपने बाएं हाथ में अपने कपड़ों का हिस्सा पकड़े हुए है। उन्होंने प्रतिमा की कारीगरी को भी उत्कृष्ट बताया, यह कहते हुए कि यह मिस्र में अब तक की खुदाई में बौद्ध धर्म का सबसे अच्छा प्रमाण माना जाता है I उन्होंने कहा, “बुद्ध की मूर्ति शायद आधुनिक इस्तांबुल (तुर्की) के दक्षिण में क्षेत्र से उत्खनित पत्थर से बनाई गई थी और इसे स्थानीय रूप से बेरेनिके में बनाया गया होगा और भारत के एक या एक से अधिक अमीर व्यापारियों द्वारा मंदिर को समर्पित किया गया होगा।”
स्रोत : गूगल