बेमिसाल कलागुरु प्रोफेसर सी. बरतारिया

वरिष्ठ कलाकार/ कला लेखक अखिलेश निगम जी इन दिनों आजादी के बाद देश में कला और कला शिक्षा के विकास में योगदान करने वाले कलाकारों, कला गुरुओं पर काम कर रहे हैं। अपने इस अभियान की शुरुआत उन्होंने उत्तर प्रदेश से ही की है। जिसकी पहली कड़ी के रुप में बरतारिया जी को लिया है, आज 10 दिसम्बर को उनका 104 वां जन्मदिन है। इस क्रम में बरतारिया जी के शिष्यों की तलाश कर उनसे लेख लिखवाएं हैं, जिनमें से प्रेमा मिश्रा जी का यह आलेख उन्होंने विशेष तौर पर आलेखन डॉट इन के लिए भेजा है। वस्तुतः इस माध्यम से अखिलेश जी यह भी संदेश देना चाहते हैं कि विभिन्न प्रांतों/क्षेत्रों के कला समालोचक, लेखक आदि अपने अपने क्षेत्र से जुड़े वरिष्ठ कलाकारों के विषय में जानकारी जुटाकर उनकी कला यात्रा को सामने लाएं।

Dr. Prema Mishra

डॉ.प्रेमा मिश्रा जी देश की सुपरिचित वरिष्ठ कलाकार, कला इतिहासकार व शिक्षाविद हैं। वर्ष 1935 में नवाबों की नगरी लखनऊ में पैदा हुईं प्रेमा जी ने चित्रकला व हिंदी दो विषय से मास्टर डिग्री हासिल की है। इसके अलावा वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान से म्यूरल एवं फ्रेस्को चित्रण का विशेष प्रशिक्षण भी प्राप्त किया । ‘सौंदर्य शास्त्र एवं ललित कलाएं ‘, ‘सौंदर्य शास्त्र ‘ तथा ‘भारतीय लोककला का चित्रण वैशिष्ट्य ‘जैसे पुस्तकों की रचयिता भी हैं । कानपुर के जुहारी देवी गर्ल्स डिग्री कॉलेज में अध्यापन से भी जुडी रहीं । इतना ही नहीं एक कलाकार के तौर पर दर्जनों कला प्रदर्शनियों में भागीदारी भी निभाती रहीं हैं, यहाँ प्रस्तुत है अपने गुरु प्रोफेसर सी. बरतारिया जी से जुड़े उनके अनुभव …

 

Prof. C. Bartariya

बचपन से ही मुझे चित्रण का शौक था। हमारे परिवार में कन्याओं को ‘लिखने’, ‘रखने’ और ‘चौक पूरने” आदि का अभ्यास कराया जाता था। हाईस्कूल तक चित्रकला से जुड़ाव रहा। इण्टर की पढ़ाई के लिये घर के पास ही कॉलेज (ज्वाला देवी इण्टर कॉलेज) ज्वाइन किया। वहाँ ड्राइंग सब्जेक्ट नहीं था। यह मेरे लिये अत्यन्त दुखद था। इण्टर के बाद ग्रेजुएशन के लिये ड्राइंग सब्जेक्ट केवल डी.ए.वी. कॉलेज में था। बहुतों ने असहमति जताई – ‘लड़कोंं का कॉलेज है।’ पर मेरे पिता जी ने इन बातों की परवाह न करते हुये मुझे डी.ए.वी. भेजा। यह मेरे लिये स्वर्णिम अवसर था। बरतारिया जी से मिलकर पहले तो डर लगा क्योंकि वह बच्चों को डाँट रहे थे। धीरे धीरे डर पर विजय पाई। वे एक सहृदय किन्तु कठोर शिक्षक थे। जे.जे स्कूल ऑफ आर्ट्स बॉम्बे से पढ़कर आये थे। क्लास में हम दो लड़कियाँ और सात लड़के थे। उनका अनुशासन क्लास को बाँधे रखता। ज़रा सी गलती पर ‘सर’ की जोरदार डाँट भूलती न थी। वास्तव में बरतारिया जी मेरे प्रथम और अन्तिम गुरु थे। एक एक रेखा-विन्यास, रंग योजना, ब्रश की पकड़, कहाँ हल्का, कहाँ गहरा उन्हीं से सीखा। ग्रेजुएशन कर लेने के बाद सर ने मुझसे कहा – ‘तुम्हारा काम अच्छा है, तुम जे.जे. स्कूल बॉम्बे ज्वाइन करो।’ मैंने बताया सर, मेरे फादर नहीं भेजेंगे। इस बात का उनको दु:ख था, कि मैं बॉम्बे जाकर नहीं पढ़ सकी। लेकिन पूरी लगन से उन्होंने मुझे एक- एक बारीकी बताई। मेरे बनाए चित्र, वह पूरी क्लास को दिखाते और बोर्ड पर लगा देते।

Painting by C. Bartariya

कला में एम.ए. की कक्षाएं तब थी नहीं, अत: मैंने हिन्दी साहित्य में ज्वाइन कर लिया। उसके बाद एक छोटे से स्कूल में सर्विस भी कर ली। एक दिन सर ने मुझे बुलवाया और पूछा कि ‘मुस्लिम जुबली गर्ल्स इण्टर कॉलेज” में ‘आर्ट टीचर” की जगह खाली है, चाहो तो ज्वाइन कर लो। घर में काफ़ी बहस और विचार के बाद मैंने अपने गुरु के निर्देशानुसार कॉलेज ज्वाइन कर लिया, जो मेरे लिये एक नई दिशा थी। दो वर्ष बाद मुझे अपने बीमार पिता के इलाज के लिए बाहर जाना पड़ा और नौकरी छोड़नी पड़ी। एक साल बाद वापस आकर फिर खाली के खालीे, कि अचानक जुहारी देवी इण्टर कॉलेज से ‘लीव वैकेन्सी’ का ऑफर आ गया जो वास्तव में स्वर्णिम अवसर था।

Painting by C. Bartariya

अगले वर्ष स्थायी रूप से अप्वाइंटमेण्ट हो गया। ज्वाइन करने के दो वर्ष बाद एम.ए. ड्राइंग की कक्षाएं प्रारम्भ हो गईं। मेरी शादी हो चुकी थी। बरतारिया सर ने बुला भेजा। उन्होंने मेरे श्वसुर जी से बात की और मैंने एम.ए. ज्वाइन कर लिया। मेरी सफलता के गुरु दोनों ही लोग रहे। मुझे कॉलेज से भी परमीसन मिल गई। पढ़ाते हुये मैनें एम.ए. की शिक्षा प्रथम स्थान पाकर पूरी की। जो कुछ मैनें किया और पाया उसमें मेरे गुरु का आशीर्वाद है। पेन्सिल वर्क, स्केचेज और रंगों की भाषा का ज्ञान जो मैंने बरतारिया जी से पाया वह मेरी कर्मशीलता का आधार है।

Painting by C. Bartariya

उनका चित्र ‘नक्खास’ और ‘शमा चिरागे सहर हो रही है…..’ मुझे बहुत पसन्द है। एम.ए. के बाद जब ‘पी.एच.डी.” करने का मन बनाया, तो सर ने बनारस में ‘आनन्दकृष्ण जी’ का नाम बताया। उन्होंने ‘हाँ’ तो की पर वह दो साल तक किसी प्रोजेक्ट में व्यस्त थे। अन्तत: मैने बरतारिया जी का ही नाम एनरोल्ड कराया। वह कहने लगे – मैं तो पी.एच.डी. नहीं हूँ। तब सर्विस देखी जाती थी, अत: अन्त में मेरी पी.एच.डी. के भी वही गुरु बने। उनकी पत्नी भी कला में रुचि रखती थीं। दोनों बेटियों में बड़ी बेटी तो कला में पारंगत थी। उन्होंने मेरी तरह के कई विद्यार्थियों की सहायता की। उनके प्रति मैं आज भी श्रद्धावनत हूँं।

Painting by C. Bartariya

डॉ. प्रेमा मिश्रा, (डी.लिट्.)
कलाकार, शिक्षाविद्

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *