–सुमन कुमार सिंह
आज की कला की जब बात आती है तो आधुनिक और समकालीन कला जैसे शब्द सामने आते हैं। अक्सर कलाकार ही नहीं कला लेखक भी इन दोनों को एक दूसरे का पर्याय मान लेते हैं, किन्तु क्या सच में ऐसा ही है ? बात पश्चिम के नज़रिये से ही करें तो सवाल है कि आधुनिक और समकालीन कला के बीच क्या कोई अंतर है, और अगर है तो वह अंतर क्या है ? इस सवाल का जवाब मिलता है एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका की सहायक संपादक नाओमी ब्लमबर्ग के इन शब्दों में – “क्या आपने आधुनिक और समकालीन कला के बीच के अंतर के बारे में कभी सोचा है? या आपको भी आश्चर्य है कि इन दोनों के बीच कोई अंतर भी है? बहरहाल सबसे पहले इतना तो जान लीजिये कि ये शब्द आपस में एक दूसरे के पर्याय नहीं हैं। विभिन्न कला इतिहासकारों, कला आलोचकों से लेकर क्यूरेटरों का मानना है कि यह अंतर अपने-अपने विशेष काल खंड को दर्शाता है या उस पर आधारित है। जिसके आधार पर आधुनिकता के अंत और समकालीनता की शुरुआत को चिह्नित करने का प्रयास पहली बार किया गया । इस मान्यता के अनुसार आधुनिक कला वह है जिसकी शुरुआत 1860 के दशक (जिसे कुछ लोग 1880 के दशक से) में हुयी और 1960 के दशक (कुछ इसे 1950 तक ही मानते हैं) के उत्तरार्ध तक यह जारी रहा। उसके बाद की कला धारा में आये विभिन्न्न बदलावों यथा – वैचारिक, मिनिमलिस्ट, उत्तर आधुनिक और नारीवादी जैसे नजरिये से उत्पन्न कला को समकालीन कला से चिन्हित किया गया।”
समय की इस सीमा से परे हटकर अगर बात करें तो इस आधुनिक और समकालीन के बीच वैचारिक और सौंदर्य बोध दोनों ही स्तरों पर कुछ अंतर दृष्टिगत है। दरअसल जिस कला को आधुनिक नाम से चिन्हित किया गया वह सिर्फ कला के अकादमिक मानकों पर निर्भर नहीं रह गया था। यानि जो कुछ कला संस्थानों या अकादमियों में बताया जाता था, उससे अलग हटने में भी यहाँ गुरेज नहीं था । अधिकतर कला इतिहासकार खासकर कला समीक्षक क्लेमेंट ग्रीनबर्ग, एद्वार माने को पहला आधुनिक कलाकार मानते हैं । इसका कारण सिर्फ इतना भर नहीं था कि वह आधुनिक जीवन के दृश्यों को चित्रित कर रहे थे, बल्कि इसलिए भी कि वह परंपरा से बिलकुल अलग हटकर अपने नए नजरिये के साथ सामने थे। उनके चित्रों में आसपास की वास्तविक दुनिया की नकल की प्राथमिकता नहीं थी। इस नए नज़रिये ने यह भी स्थापित किया कि कलाकार को अपने व्यक्तिगत विचारों के अनुसार कलाकृति बनाने का अधिकार है। देखा जाये तो एक तरह से यह सर्जन स्वातंत्र्य की लड़ाई थी। उनकी कृति ‘तृण पर भोजन ‘ की बात करें तो शायद दुनिया के कला इतिहास में सबसे ज्यादा आलोचना इसी एक चित्र को झेलना पड़ा। उनके चित्रों को समझने में सहायक हो सकती है भारतीय कला इतिहासकार र. वि. साखलकर की यह टिप्पणी- “माने की रंगांकन पद्धति में एक नवीनता थी। वे रंगों के हलके व गहरे रंगों के क्षेत्रों को स्पष्टता से पृथक अंकित करते। हलके क्षेत्र को क्रमशः गहरे क्षेत्र में परिवर्तित करने की परंपरागत पद्धति को उन्होंने तोड़ दिया। अतः उनके चित्रों में माध्यम छटा के क्षेत्र जहाँ आवश्यक हो वहीं अंकित किये गए। उनके चित्रों में पुनर्जागरण काल से प्रचलित घनत्व के प्रभाव का स्थान नहीं है और वे जापानी चित्रों के सामान समतल दिखाई देते हैं ।”
बहरहाल इस आधुनिक कला के विकास में पश्चिम के जिन कला आंदोलनों की भूमिका चिन्हित की जाती है, उनमें महत्वपूर्ण हैं – प्रभाववाद, घनवाद, अतियथार्थवाद, और अमूर्त अभिव्यक्तिवाद आदि। इस तरह से हम कह सकते हैं कि आधुनिक कला का मूल लक्ष्य पुराने रीति-रिवाजों के बजाय दुनिया को देखने के नवीनतम दृष्टिकोण के साथ -साथ अभिनव प्रयोग की प्राथमिकता को सुनिश्चित करना भी था। देखा जाये तो इस आधुनिकतावाद के विकास ने कला के क्षेत्र में कई नए विचार प्रस्तुत किए। जिसके तहत कलाकारों ने अपने चित्रों में यथार्थ और कल्पना को समावेशित कर अनूठे दृश्य बिम्ब भी रचे। यहाँ तक कि प्रयोगों की इस परंपरा ने आगे चलकर छायांकन से लेकर कई अन्य गैर-प्रथागत सामग्रियों और माध्यमों को भी अपनाया।
वहीँ समकालीन या समसामयिक कला की बात करें तो माना जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की कला एक नए रास्ते पर चल पड़ी, हालाँकि इसकी जड़ें कहीं न कहीं आधुनिकता में ही निहित रहीं। इसलिए कहा जा सकता है कि इस नई शताब्दी की नयी कला के अगुआ वही पुराने चिर परिचित आधुनिकतावादी कलाकार थे। लेकिन इस दौर तक आते आते उनकी कला में विद्रोह का जो स्वर जुड़ता चला गया उसने इसे परंपरागत स्वरुप से अलग कर नयापन प्रदान किया। यहाँ आकर उसी कला को स्वीकार किया गया, जिसमें परंपरा से अलग हटकर चौंकाने वाले तत्व शामिल थे। इस दौर में आकृतिमूलक कला में, पिकासो और मातिस जैसे कुछ आधुनिकतावादी अवांगार्द द्वारा अपनाये गए तरीकों और नवाचारों ने डबफेट और डी कुनिग जैसे कलाकारों को नई कलात्मक भाषा की राह दिखाई। युद्ध के दौर के पहले से ही चली आ रही कला परंपरा और एक्शन पेंटिंग की महान परंपरा के मेल से एक नयी शैली आकार लेती है। दादावाद और अतियथार्थवाद से प्रेरणा लेते हुए इन पॉप-कला कलाकारों ने एक बिलकुल नए अध्याय की शुरुआत की। इस वैचारिक कला का आधारबिंदु बना विचार और उसकी सार्थक अभिव्यक्ति, कलाकृति की रचनात्मक प्रक्रिया यहाँ गौण हो चली थी।
इस समसामयिक या समकालीन कला को निरंतर बदलाव और यथार्थ से जुड़े नए प्रयोगों में विशेष दिलचस्पी होती चली गयी। यहाँ तक कि कलाकृति के निर्माण में नए तौर-तरीकों मसलन फोटोमॉन्टेज, कोलाज, ऑडियो- वीडियो इंस्टॉलेशन से लेकर आर्ट परफॉरमेंस को भी अपनाया जाने लगा। इतना ही नहीं अब कलाकार अपनी कलाकृति के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर चोट करने से लेकर पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर सामाजिक जागरूकता को अपने अभियान का आवश्यक हिस्सा मानने लगा। यानी कला हमारे जीवन व सामाजिक सरोकार से जुड़ती चली गयी, अब कला में कला सिर्फ कला के लिए वाली धारणा की कोई गुंजाइश नहीं रह गयी। देखा जाये तो यहाँ तक आते -आते पहले से चले आ रहे कला के सभी मानकों और प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया गया। पेंटिंग और मूर्तिकला में वह सब कुछ होना शुरू हो गया जो हो सकता है। मसलन किसी पेंटिंग के साथ किसी मूर्तिशिल्प को मिलाकर भी कलाकृति बनायीं जा सकती है, यहाँ तक कि उसे पार्श्व में रखकर आप किसी तरह का ऑडियो- वीडियो इंस्टालेशन भी रच सकते हैं। आप कह सकते हैं कि पिछली सदी के 70 का दशक जहाँ आधुनिक कला का अंतिम दौर था, वहीँ इस दौर को समसामयिक कला की पूर्वपीठिका भी माना जा सकता है। समकालीन कला में आकर कला किसी एक लक्ष्य या दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रह गयी है। यह अपने आप में उतनी ही विषम और अस्पष्ट है, जितनी कि आज की हमारी समकालीन दुनिया। इस तरह से हम कह सकते हैं कि व्यावहारिक रूप से कलात्मक अभिव्यक्ति में अब किसी तरह के सौंदर्य या नैतिक सीमाओं का कोई खास बंधन नहीं रह गया है। कला के इस वैश्विक आंदोलन के अगुआ के तौर पर हम एंडी वारहोल, जैक्सन पोलक, रॉय लिचेंस्टीन, विक्टर वासरेली, यवेस क्लेन जैसे नामों को रख सकते हैं।
आधुनिक कला और समकालीन कला के महत्वपूर्ण अंतर को हम इस तरह से समझें कि आधुनिक कला का आशय वह कला है जिसकी शुरुआत 1880 के दशक में हुई थी। जबकि समकालीन कला में आज यानि वर्तमान के कलाकारों की कलाकृतियों के निर्माण का वर्णन है। आधुनिक कला जहाँ अपने मूल क्रांतिकारी-विरोधी स्वर के लिहाज़ से क्रांतिकारी है, वहीँ समकालीन कला कलाकारों द्वारा प्रयोग की स्वतंत्रता और परिमाण के नज़रिये से क्रांतिकारी है। आधुनिक कला जहाँ अधिक आत्म-अभिव्यंजक या आत्म केंद्रित है, वहीँ समकालीन कला का सारा फोकस समाज है, उसे इसी सामाजिक प्रभाव के लिए जाना भी जाता है। आधुनिक कला जहाँ मुख्य रूप से कैनवस पर रची जाती रही है, वहीँ समकालीन कला हर उस माध्यम पर रची जा सकती है जिसके बारे में आप सोच सकते हैं – ऑडियो-वीडियो कला, किसी विशेष तकनीक के उपयोग से बनी कलाकृतियाँ, ऑब्जेक्ट डिज़ाइन, यांत्रिक मूर्तिशिल्प से लेकर एनिमेटेड चित्रमय कला आदि। आधुनिक कला जहाँ किसी खास व्यक्ति, विषय या कथावस्तु तक केंद्रित रह सकती है, वहीँ समकालीन कला दुनिया भर के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर अपना एक मजबूत रुख अपनाती है।