
हम जानते हैं कि हमारा राष्ट्रीय प्रतीक उस अशोक स्तम्भ का शीर्ष है, जो सारनाथ में अवस्थित था। वर्ष 1904-5 में जर्मन मूल के पेशे से सिविल इंजीनियर फ्रेडरिक ऑस्कर ओर्टेल को इसे दुबारा दुनिया के सामने लाने का श्रेय जाता है। इस अशोक स्तंभ के भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक बनने से पहले की बात है, वर्ष 1938 में बिहार की राजधानी पटना में आर्ट स्कूल के स्थापना के प्रयास की शुरूआत हो चुकी थी। अंतत: 25 जनवरी 1939 को एक किराए के भवन में विधिवत इसकी स्थापना के साथ कलाकार राधामोहन प्रसाद और इस अभियान से जुड़े शहर और राज्य के गणमान्य नागरिकों का सपना साकार हो चला।इसी बीच बिहार में कला गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए शिल्प कला परिषद नामक संस्था का गठन भी हो चला । इस पूरे अभियान में शामिल नामचीन शख्सियतों में एक नाम डा. राजेन्द्र प्रसाद का भी था। इतना ही नहीं आजादी के बाद तो राज्य में राजकीय कला दीर्घा के स्थाापना की भी पहल सामने आ गयी। जिसका शिलान्यास डा. राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा ही किया गया, यह अलग बात है कि बाद के वर्षों में उस शिलान्यास पत्थर को उखाड़ कर उस स्थान पर अन्य निर्माण कर दिया गया।
पिछले दिनों पटना कला महाविद्यालय के इतिहास से संबंधित जानकारी जुटाने के क्रम में अपने वरिष्ठ सुधांशु रंजन श्रीवास्तव जी और अनिल कुमार सिन्हा जी से बातचीत में कुछ नई जानकारियां सामने आयीं। इसी क्रम में यह बात भी आई कि पहले शिल्प कला परिषद और पटना कला महाविद्यालय के प्रतीक चिन्ह के तौर पर इसी अशोक स्तम्भ को अपनाया गया। साथ ही तब इस अशोक स्तंभ का रिप्लिका भी तैयार किया गया। उपेंद्र महारथी संस्थान के मौजूदा निदेशक अशोक सिन्हा जी के अनुसार इस रिप्लिका को तैयार किया था कलाकार उपेंद्र महारथी जी ने। महाविद्यालय के वर्तमान प्राचार्य अजय पाण्डेय जी के अनुसार यह रिप्लिका अभी भी महाविद्यालय के पास सुरक्षित है।
किन्तु बाद में आजादी के बाद जब अशोक स्तम्भ को भारत सरकार का राजचिन्ह का दर्जा दिया गया तब शिल्प कला परिषद ने और कला महाविद्यालय ने अपने प्रतीक चिन्ह में बदलाव कर लिया। दरअसल बिहार के कला जगत की विडंबना रही कि कला महाविद्यालय से संबंधित जानकारियों तक का दस्तावेजीकरण आज तक नहीं हो पाया। अपने कुछ मित्रों और वरिष्ठों के सहयोग से इस अभियान की शुरुआत का इरादा बन रहा है। ऐसे में अपने इस महाविद्यालय के तमाम पूर्ववर्ती छात्रों व प्राध्यापकों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि अपनी जानकारियों को हमसे साझा करें। ताकि हम इस महाविद्यालय और बिहार के आधुनिक कला इतिहास के पन्नों को सहेजने के अपने अभियान को आगे बढ़ा सकें। मौजूदा समय में हमारी स्थिति तो यह है कि हम अपने पूर्ववर्ती छात्रों क्या प्राध्यापक के तौर पर यहां सेवा दे चुके वरिष्ठ कलाकारों तक से लगभग अपरिचित ही हैं। ऐसे में सोशल मीडिया के इस मौजूदा दौर में हम सभी बिहारी कलाकार अगर चाह लें तो बिहार के आधुनिक कला इतिहास के दस्तावेजीकरण को साकार कर सकते हैं। सादर धन्यवाद……

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नोट : युवा कलाकार अक्षय कुमार ने इस पोस्ट की प्रतिक्रिया में पुराने प्रॉस्पेक्टस का कवर भेजा है, जिस पर प्रतीक चिन्ह के तौर पर अशोक स्तम्भ है। बकौल अक्षय उन्हें यह चित्र हमारे अग्रज अजय चौधरी जी ने उपलब्ध कराया था। धन्यवाद भाई अक्षय ..