अगर आप पटना के निवासी हैं तो हो सकता है कि गोविन्द मित्रा रोड स्थित इस भवन को कभी देखा हो। या यह भी हो सकता है कि कभी ठीक से देखा नहीं हो, लेकिन इसके सामने से आपका गुजरना हुआ हो। अगर हम आपको बताएं कि मौजूदा समय में दवा की दुकान के तौर पर पहचाने जाने वाले इस भवन का बहुत पुराना रिश्ता बिहार के कला-इतिहास से रहा है। तो शायद सहज तौर पर बहुतों को विश्वास न हो, या कुछ अटपटा सा लगे। तो आपको बता दूँ कि मौजूदा समय में विद्यापति मार्ग स्थित जिस कला महाविद्यालय को आप आज देख रहे हैं। उसकी शुरुआत इसी भवन से हुयी थी। कहा तो यह भी जा सकता है कि अगर यह भवन नहीं होता तो शायद कला संस्थान के शुरुआत का वो सपना, जिसे राधामोहन प्रसाद जैसे कलाकार ने देखा था। और इस सपने में रंग भरा था उस दौर के समाज के चंद सुधि कला प्रेमियों ने। ऐसे में जब पहली और सबसे बड़ी समस्या यह सामने आयी कि आखिर उस कला विद्यालय की शुरुआत कहाँ की जाए? तो उसके समाधान के तौर पर मिली थी यह जगह। और 25 जनवरी 1939 को सरस्वती पूजा के अवसर पर कला विद्यालय की स्थापना यहीं पर हुयी। जिसके बाद यह संस्थान वर्तमान पीएमसीएच के एक हिस्से से होते हुए बन्दर बगीचा स्थित व्हाइट हाउस जा पहुंचा।

कला महाविद्यालय, पटना के जिस मौजूदा ईमारत को आज हम देख रहे हैं वहां यह पहुंचा वर्ष 1957 में। यह भी बताते चलें कि इस कला विद्यालय की शुरुआत तो 1939 में हुयी अवश्य, लेकिन गवर्नमेंट डिप्लोमा मिलने की शुरुआत 1949 से हो पायी। बहरहाल अपने छात्र जीवन से हम यह तो जानते रहे कि कला महाविद्यालय की शुरुआत गोविन्द मित्रा रोड स्थित किसी भवन से हुयी थी। किन्तु इस बात से वाकिफ कुछ चंद लोग ही थे, कि वह भवन था कौन सा। ऐसे ही चंद लोगों में से एक हैं अपने कलाकार मित्र शांतनु मित्रा। बताते चलें कि शांतनु उन्हीं गोविन्द मित्रा जी के पौत्र हैं, जिनके नाम से आज यह सड़क जानी जाती है। पिछले दिनों अपने पारिवारिक कारणों से शांतनु पटना में थे। ऐसे में यह उचित अवसर था कि इस भवन की पहचान कर इसकी फोटोग्राफी करा ली जाए। हालाँकि तब सर्दियाँ अपने चरम पर थीं, किन्तु इन सबके बावजूद शैलेन्द्र कुमार यानी अपने शैलेन्द्र भईया सुबह-सुबह वहां जाकर इसकी फोटोग्राफी कर लाये थे। हालाँकि किसी कारण से ये फोटोग्राफ कुछ देर से मिल पाया। बहरहाल कलाकारों, कला-प्रेमियों व बिहार के इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए प्रस्तुत है इसका चित्र।
