अपने शहर में कलाकार मित्रों के बीच-1

यूं तो स्कूली दिनों में ही संस्कृत की कक्षा में सुभाषितानि के तहत हम रट चुके होते हैं- “अयं निजः परोवेती गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥“  वैसे यह श्लोक महोपनिषद से लिया गया है, यह जानने में दशकों लग गए I विगत चार दशक से अधिक समय में देश के विभिन्न हिस्सों में निरंतर आना जाना लगा रहा है, इनमें से चंद यात्राएँ अपनी नौकरी के सिलसिले में रही I किन्तु अधिकांश यात्राएँ कला कर्म या कहें कि कला लेखन के सिलसिले में होती रहीं हैं I मार्च 2023 में हुयी सेवानिवृति के बाद यह तो लगभग लगातार जैसा हो चला है I सौभाग्य से जहाँ भी गया या रहा कलाकार मित्रों और आयोजकों से भरपूर अपनापन मिलता रहा I इन सबके बावजूद अपने शहर यानी बेगुसराय के किसी कला आयोजन से न जुड़ पाने का अफ़सोस बना रहा I

पहली बार वर्ष 1981 में अपने गाँव शहर से बाहर निकला था I कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में चित्रकला की पढाई के लिए, तब यह उम्मीद नहीं थी कि घर के बाहर का यह पहला कदम आगे चलकर घर से बहुत दूर हो जाने की शुरुआत भर है I उस समय स्थानीय गणेश दत्त महाविद्यालय से बी कॉम की पढाई कर रहा था, फाइनल सत्र की शुरुआत हो चुकी थी I ऐसे में उहापोह भी था किन्तु अंततः पटना जाना ही तय हुआ I वहां जाकर पता चला कि मुंगेर के कुछ छात्र तो पहले से थे किन्तु बेगुसराय से वहां जानेवाला मैं एक तरह से पहला छात्र ही था I अगले सत्र में एक चिर-परिचित चेहरा दिखा, जो स्कूली दिनों में मेरे बड़े भाई के सहपाठी थे I इस नाते बड़े भाई ही थे, किन्तु कॉलेज की परंपरा थी कि अगर आप एक सत्र भी सीनियर हैं तो आपकी भूमिका अग्रज की हो जाती थी I रिश्तों का यह बदलाव मेरे लिए जितना कठिन था उन्होंने यानी इंद्रमोहन जी ने इसे उतनी ही सहजता से लिया I मेरे अनेक बार मना करने के बावजूद, उसके बाद आगमन हुआ मनोज कुमार बच्चन का I फिर तो बरस दर बरस अनेक छात्र आते गए I किन्तु अपनी स्मृतियों में स्थायी जगह इंद्रमोहन जी और मनोज की ही बनी रही I

देखते-देखते बरसों बरस और दशक भी बीतते रहे, नौकरी और अन्य कारणों से पटना से भी नाते की डोर छुटती चली गयी I अपने शहर में आना जाना लगा रहा लेकिन पुराने यार-दोस्तों से मिलने का समय यदा कदा ही निकल पाता था I जब भी आता था तो यह अहसास बढ़ता चला जाता था कि “ये शहर भुला मुझे …” I किन्तु इसकी अगली पंक्ति मेरे लिए तो यही बनती थी कि “ मैं इसे नहीं भूल सका I लगभग चार दशक तक यह अहसास बना रहा, अपनी पहचान अब सिर्फ परिजनों तक सीमित हो चली थी I इस बीच अचानक लगभग दो बरस पहले एक सज्जन मेरा पता पूछते हुए आये, बातचीत हुयी तो पता चला कि आप हैं कुंदन जी; जो बीहट के निवासी हैं और गणेश दत्त महाविद्यालय में प्राध्यापक हैं I इससे पूर्व एक बार बेगुसराय से पटना जाने के क्रम में एक सज्जन मिले और मेरा नाम जानना चाहा I मेरे लिया थोडा आश्चर्य वाली बात थी कि क्योंकि न तो वे मेरे हमउम्र थे और न तो ग्रामीण I पता चला वे यानि अनिल कुमार पुराविद हैं और उनदिनों नालंदा या नवादा के किसी म्यूजियम में पदस्थापित हैं, उनसे अपने शहर के पुरा-इतिहास की ढेर सारी जानकारी मिली I जो मेरे रूचि की थी और मेरे लिए बिल्कुल नयी थी I क्योंकि बाद के दिनों में कला इतिहास में मेरी विशेष रूचि जागी थी, अलबत्ता  बेगुसराय में रहने के दौरान ऐसा कोई संयोग नहीं बन पाया था I यूं ही बरस बीतते रहे, फिर 2023 में बीहट निवासी एक युवा कलाकार मनीष से फोन पर बात हुयी I जानकारी मिली कि वे एक कला प्रदर्शनी का आयोजन कर रहे हैं, और उनकी अपेक्षा है कि मैं उसे देखने आ सकूँ I लेकिन चाहकर भी मैं उसमें शामिल नहीं हो सका I लेकिन इस बार जब पटना आया तो मनीष का आमंत्रण मिला कि 27 से 31 तक के लिए नाट्य समारोह और कला प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है I

कलाकार मित्रों से बातचीत

और फिर 27 तारीख तक जानकारी मिल चुकी थी कि पटना से नरेन्द्र कुमार नेचर और रीना सिंह भी इस कार्यक्रम में शिरकत के लिए पहुँच रहे हैं I संयोग से ये दोनों भी पटना कला महाविद्यालय के पूर्ववर्ती छात्र हैं I बहरहाल कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए 26 को ही अपने गाँव चला आया I 27 को मंच पर मुलाकात होती है पूर्व परिचित संजय उपाध्याय से, संयोग से हम पटना विश्वविद्यालय के समय से परिचित थे I श्रद्धेय राम नारायण पाण्डेय ने हमारे छात्र रहते PUSCUS नाम से एक संस्था बनायीं थी, जिसमें कला महाविद्यालय के प्रतिनधि के तौर पर मुझे शामिल किया था I जहाँ तक याद आता है तब पटना महाविद्यालय में कला एवं संस्कृति की गतिविधियाँ उरूज पर थीं I उस दौर में अंतर-विश्वविद्यालय युवा महोत्सव में पटना यूनिवर्सिटी की भागीदारी का मतलब होता था राष्ट्रीय स्तर तक चैम्पियन का ख़िताब हासिल करना I और इसमें कला महाविद्यालय की भागीदारी से पुरस्कारों में इजाफा तय था I हालाँकि मुझे इसमें भाग लेने का अवसर उस दौर में तो नहीं मिला, लेकिन हमारे समकालीन शैलेन्द्र कुमार, शाम्भवी सिंह, चुनाराम हेम्ब्रम, नीरद और सुबोध गुप्ता इसमें प्रतिभाग करते रहे I उद्घाटन के लिए आमंत्रित विशिष्ट अतिथि थीं आदरणीय सुधा वर्गीज जी, जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व से पूरा देश परिचित है I अपने लिए उन्हें देखने और प्रणाम करने का यह पहला अवसर था I सुधा जी के कर-कमलों से ही वहां आयोजित कला प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ, इस प्रदर्शनी में देश के विभिन्न हिस्सों और नेपाल से आये कलाकार जिन कलाकारों की कृतियाँ शामिल हैं, वे हैं इंद्र मोहन प्रसाद, गोपाल शर्मा, रीना सिंह, नरेंद्र कुमार नेचर, रणवीर कुमार, प्रदीप थारू, बी.के. नर बहादुर, मनोज शाह, वीरेंद्र कुमार नागर, राजीव कुमार, अमर कुमार, अश्वनी आनंद, अंकित कुमार, इंद्रावती पाठक, सुजीत कुमार, चंदन शर्मा, रोशन कुमार, देव प्रिया सिंह, प्रवीण कुमार, मनीष कुमार कौशिक, भरत कुमार, मेघा कुमारी, अर्चना कुमारी, अरुण कुमार, अमन कुमार, विशेंदर नारायण सिंह, परमीत सीट एवं मनीष कुमार I

सुधा वर्गीज जी को अपनी कलाकृतियाँ दिखाती रीना सिंह

इन कलाकारों में इंद्रमोहन जी और मनोज से वर्षों के अंतराल पर मिलना हुआ तो मनीष द्वय, प्रवीण कुमार, अश्वनी आनंद, वीरेंद्र जैसे युवाओं से पहली बार मिल पाया I प्रदर्शनी देखने के दौरान कुछ कला चर्चा हुयी और रात्रि भोजन सत्र में अंततः तय हुआ कि कल यानी 28 को एक बार फिर से मिला जाए, ताकि कुछ ज्यादा देर तक बातचीत हो सके I चूँकि मैं किसी औपचारिक व्याख्यान के पक्ष में नहीं था, इसलिए तय हुआ कि कल दोपहर के बाद मिला जाए I यहाँ शामिल हैं उद्घाटन सत्र और उसके बाद की कुछ तस्वीरें आयोजक कलाकार मनीष कुमार के सौजन्य से …

-सुमन कुमार सिंह 

 

जारी …..

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