अपने शहर में कलाकार मित्रों के बीच (दूसरा भाग)

तय कार्यक्रम के तहत प्रवीण 28 तारीख के दोपहर में मेरे आवास पर उपस्थित थे I साथ ले जाने के लिए, दरअसल हाल के वर्षों में अब बाईक चलाने से परहेज करने लगा हूँ I ऐसे में कहीं आने जाने के लिए युवा मित्रों या परिजनों के भरोसे रहना पड़ता है I कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना से बीएफए एवं डॉ. बी. आर. अम्बेडकर यूनिवर्सिटी आगरा से एमएफए कर चुके प्रवीण के कलाकर्म से सोशल मीडिया की बदौलत परिचित तो था, किन्तु मुलाकात का यह पहला अवसर था I इस तरह से देखा जाए तो बिहट का यह आयोजन मेरे लिए अपने शहर के युवाओं से परिचित होने का सुअवसर बन गया I प्रवीण स्थानीय युवा हैं और इन दिनों केन्द्रीय विद्यालय, बरौनी में कला शिक्षक हैं I बिहट पहुँचने पर अन्य साथियों से मुलाकात के बाद बातचीत का सिलसिला चल निकला I
प्रवीण कुमार एवं बीके नर बहादुर
उपस्थित कलाकारों में ज्यादातर कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना के पूर्व छात्र थे, ऐसे में महाविद्यालय से जुड़ी अपनी-अपनी यादों को हम सबने साझा किया I हालाँकि हमारे बीच वर्षों और दशकों का अन्तराल था I इन्द्रमोहन जी के अलावा बाकी सभी हमारे दौर से लगभग नावाकिफ ही थे I फिर भी हर दौर की स्मृतियाँ उभरती रहीं, युवा कलाकारों को नजदीक से जानने का यह अवसर मेरे लिए कुछ ज्यादा सुखद था I क्योंकि अपने बाद की युवा पीढ़ी से आमने-सामने की यह एक तरह से पहली मुलाकात थी I औपचारिकताओं की झिझक से हम बाहर निकल चुके थे I इस क्रम में जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी वह यह कि सभी युवा अपने अनुभव सुना रहे थे तो उतनी ही तन्मयता से दूसरों की बातें सुन भी रहे थे I
जो दूसरी बात मुझे प्रभावित कर रही थी वह यह कि इन युवाओं में ज्यादातर कला- शिक्षक थे I
अपनी पीढ़ी के उन कलाकार मित्रों, सहपाठियों की याद भी आई, जो बतौर छात्र अच्छे कलाकार की सम्भावना से परिपूर्ण तो थे I किन्तु उनमें से अधिकांश ने कला शिक्षक की नौकरी तो की, किन्तु कला सृजन को प्राथमिकता नहीं दे पाए I संभवतः यही वह कारण था कि हमारी पीढ़ी के गिने-चुने छात्रों ने ही समकालीन कला के क्षेत्र में अपनी अभिव्यक्ति दी I किन्तु ये युवा उस पुरानी पीढ़ी से बिल्कुल अलग दिखे मुझे, जो बतौर कला-शिक्षक अपनी नौकरी को अंजाम देते हुए कला सृजन में भी उतनी ही तन्मयता और सक्रियता बनाये हुए हैं I समकालीन कला में कहाँ क्या हो रहा है, वे इस बात से भलीभांति अवगत दिखे I
ऐसे में अगर राज्य के संस्कृति मंत्रालय और वरिष्ठ कलाकारों का उचित सहयोग और मार्गदर्शन उन्हें मिल जाए तो अनेक संभावनाओं के द्वार आसानी से खुल सकते हैं I ऐसा मेरा मानना है, अलबत्ता इस आयोजन ने मुझे इस बात के लिए प्रोत्साहित भी किया है कि राज्य के विभिन्न शहरों में रह रहे ऐसे युवाओं से संवाद स्थापित कर सकूँ I मेरी तो राय है कि हर जिले में इस तरह के आयोजन की पहल होनी ही चाहिए I खासकर ऐसी स्थिति में जब बिहार के प्रत्येक जिले में जिला सांस्कृतिक पदाधिकारी बहाल हो चुके हैं I
28 के बाद से बिहट से दूर हूँ किन्तु सोशल मीडिया के जरिये प्रतिदिन जो जानकारी मिलती रही है, वह आनंदित करने वाला है I क्योंकि प्रत्येक दिन रंगमंच और कला से जुड़े ख्यात लोगों के साथ– साथ स्थानीय जन प्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों का आना-जाना कार्यक्रम में बना रहा है I अगर कहूं कि इतनी सक्रियता तो मुझे राजधानी पटना में होनेवाले आयोजनों में नहीं दिखती है, तो गलत नहीं होगा I एक और आम धारणा यहाँ टूटती हुयी दिखी, वह यह कि आम आदमी कला को देखना और समझना नहीं चाहता है I जिस तरह से शहर के गणमान्य जनों से लेकर आम आदमी की उपस्थिति नाटक और संगीत के कार्यक्रम से लेकर कला प्रदर्शनी के अवलोकन में दिखी, वह स्पष्ट करता है कि लोगों में अपनी कला-संस्कृति के प्रति रूचि और उत्सुकता दोनों विद्यमान है I बस जरुरत है उसके लिए उचित वातावरण और परिवेश प्रदान करने की I अगली कड़ी प्रतिभागी कलाकारों और उनकी कृतियों की चर्चा पर केन्द्रित रहेगा ….
जारी ………..
-सुमन कुमार सिंह 

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