किसी लेखक और उसकी कृति की सफलता इस बात में है कि पाठक उसकी कृति से कुछ ऐसा ले सकें जो पढने के पश्चात उसके साथ रह जाये। कृति उनके लिये शेष हो जाये पर उसके अंश उनके लिये अशेष रहे. वे कुछ गह रहें, साथ ले जा सकें, याद रहे. कुछ ऐसा हो जो हसिले मुताला हो…. अध्ययन अथवा पठन की सार्थकता का सत्व साबित हो। इस निकष पर अशोक कुमार सिन्हा का कहानी संग्रह पूरी तरह खरा उतरा है।
इसमें कुल सोलह कहानियां हैं जिसमें से कम से कम आधा दर्जन कहानियां ऐसी है जिनका कुछ न कुछ अंश पाठकों के जेहन में जरूर जिंदा रहेगा। इस संग्रह की सभी कहानियां पठनीय है। कहानियों में जबरदस्त कथातत्व है और अधिकतर का निर्वहन उत्तम तरीके से हुआ है, पठनीयता के पैमाने पर इनका स्तर बेहतर है। “एक नेता की आत्म कथा”, “बटोही”, “मोहरे”, “अन्नदाता” जैसी कहानियों को देश की शासन व्यवस्था, सर्वकालिक बनाये रखेगी. दशकों बाद इसे पढकर लगेगा यह अभी कल की ही बात है, वर्तमान का विवरण है।
“पहला प्यार”, “आत्मा की आवाज” जैसी कहानियां हर दौर में रहेंगी, इसे इंसानी फितरत का समर्थन हमेशा हासिल होता रहेगा। यही नहीं “पुनर्जन्म” जैसे उदाहरण भी समाज में अमूमन मिलते ही रहेंगे. कालजयी कहानियां ऐसे ही जन्मती हैं. “मवाली की बेटियां”, जिस कथा शीर्षक पर पुस्तक का नाम है , वाकई बहुत सुंदर कहानी है।
लेखक ने जहां से भी कथा तंतु ग्रहण किये हैं और उन जीवंत तंतुओं से कथा बुनी है वह बहुत जीवंत हैं इसलिये ये कथाएं सदैव जीवित रहने वाली हैं। वे वायवीय और कोरी कल्पनाशीलता से निसृत नहीं है वरन स्पंदनशील हैं। देश, समाज, शासन, प्रशासन, व्यवस्था, मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के इन तंतुओं के ताने बाने का पैटर्न किंचित बदलावों के बावजूद कभी पुराना नहीं पड़ने वाला।
लेखक ने एक प्रगतिशील सामजिक सोच के प्रति प्रतिबद्धता दिखाई है। वे पात्र जो उपेक्षित, शोषित, प्रताडित और संघर्षशील हैं, लेखक उनके हक में खड़ा नजर आता है। उनकी बात मजबूती से कहता है। वह अपनी सोच में बहुत स्पष्ट है चाहे “एक नेता की आत्मकथा” जैसी कहानी में नेता द्वारा लिया गया फैसला हो अथवा डायन जैसी कहानी की अंतिम निष्पत्त। साहित्य में कला, लोक और आदिवासियों के साथ साथ उनके लोक व्यवहार, लोकगीतों का समावेश मुश्किल से दिखता है, अशोक सिन्हा ने इस मामले में नई जमीन भले न तोड़ी हो पर नई कहानियों में इस दुर्लभ होते जा रहे तत्व का समावेश कर इस दौर में एक नया प्रयास तो किया ही है। इसके लिये उन्हें पाठकों का साधुवाद मिल सकता है।
इस सोलह कहानियों के संग्रह की अधिकतर कहानियां राजनीति और प्रशासन के गिर्द घूमती हैं। लेखक का संबंध प्रशासन से है और जाहिर है राजनीति से उसका पाला किसी सामान्य व्यक्ति अथवा लेखक से ज्यादा ही पड़ता है। ऐसे में इस विषय के कथानकों में उसकी सिद्धहस्तता दिखती है। इस तरह की छोटी छोटी कहानियों में भी बड़ी बड़ी बात सहजता के साथ कह जाना यह बताता है कि लेखक इस क्षेत्र में अनुभव के स्तर पर कितना सांद्र है। इससे यह भी पता चलता है कि यह कि लेखकीय प्रतिभा इस तरह के विवरण को किस कदर तरलता के साथ प्रस्तुत कर सकती है।
अशोक कुमार सिन्हा की प्रकाशित किताबों की संख्या तकरीबन तीस तक पहुंचने वाली है। उनका उपन्यास “सूरज नया, पुरानी धरती” और कई जीवनियां तथा यात्रा संग्रह खासे चर्चित रहे हैं। उन्होंने भोजपुरी चंपू काव्य रचा है तो उनके कई कविता संग्रह निबंध आलोचना, रिपोर्ताज, संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं। विभिन्न विधाओं में विपुल लेखन के बावजूद उनका साहित्य के सबसे लोकप्रिय विधाओं में से एक कहानी के क्षेत्र में यह महज दूसरा कहानी संग्रह है। पर इसकी कहानियां पढ कर लगता है कि लेखक को इस विधा में और ज्यादा अवदान देना चाहिये।
अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के लिये अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार पा चुके अशोक कुमार सिन्हा के इस कहानी संग्रह मवाली की बेटियां की ज्यादातर कहानियां सरल सहज और संप्रेषणीय हैं परंतु कुछ कहानियों के साथ शिल्पगत न्याय नहीं हो सका है । निस्संदेह इन कहानियों में अधिक संभावना थीं, कहानी के तत्व भरपूर थे, उन का विस्तार और विकास और बेहतर हो सकता था पर नहीं हुआ। ये कथायें जिस तरह का विस्तार और आकार मांगती हैं लेखक ने नहीं दिया उनके साथ हकतलफी की. कोताही बरती। उन्हें शब्दों की जो साज सज्जा चाहिये थी मुहैया नहीं कराई गई। शायद शब्द सीमा तय कर रखी हो।
इस तरह संग्रह की कुछ कहानियों के अल्पपोषित और अविकसित रह जाने का बोध होता है। मौजूदा दौर के कुछ उपन्यासों में यदि थोड़ा बचा भी हो तो कहानियों में वर्णनात्मकता का बहुत ह्रास हुआ है। निस्संदेह जिस तरह से हमारे चारों और विजुअलिटी बढी है उससे यह होना ही था परंतु कई बार यह रचनात्मकता की कमी के तौर पर उभरती है। कुछ कहानियों को इस से बरी नहीं किया जा सकता. एक बात और कहीं कहीं शब्द चयन और बेहतर हो सकता था।
कुल मिलाकर पुस्तक पाठकों को निराश नहीं करेगी, जैसा पहले कहा, उन्हें अपने साथ रखने के लिये कुछ न कुछ धराऊँ सोच, विचार, यादगार मिल जायेगा। बेशक पाठन का समय सार्थक होगा। पुस्तक का आवरण चित्र ख्यात कलाकार श्याम शर्मा का है।छपाई और जिल्द बेहतर है, लोकमित्र प्रकाशन के इस सजिल्द संस्करण की प्रस्तुति का मूल्य 250 रुपये है।104 पेज को देखते हुए यह थोड़ा ज्यादा नहीं है क्या? पर एक विविध आस्वाद वाली कहानियों की इस पठनीय पुस्तक को पढने के बाद यह भाव दूर हो जाता है।
पुस्तक : मवाली की बेटियां
लेखक: अशोक कुमार सिन्हा
प्रकाशक: लोक मित्र प्रकाशन,पटना
पृष्ठ संख्या : 104
मूल्य : रू. 250
-संजय कुमार श्रीवास्तव