पुस्तक चर्चा: नाज-ए-मिथिला

नि:संदेह मिथिला चित्रकला आज किसी औपचारिक परिचय का मोहताज नहीं है। स्थिति तो यह है कि किसी क्षेत्र विशेष के घर आंगन की यह कला अब दुनिया भर में रह रहे मैथिल समाज की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। इतना ही नहीं पड़ोसी देश नेपाल के मिथिलांचल वाला हिस्सा भी अब इससे अछूता नहीं रहा। और तो और अपने देश के विभिन्न हिस्सों में भी इस शैली को जानने और सीखने की ललक दिख रही है। वास्तव में अगर यह कहा जाए कि अपने इस विशाल देश की तमाम लोक-कला परंपराओं में आज मिथिला कला अग्रणी मानी जा रही है तो कत्तई अतिश्योक्ति नहीं होगी। अपने देश की यह एकमात्र ज्ञात लोककला शैली है जिसके कलाकारों में से सात, देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। इतना ही नहीं इस कला के उन्नायकों में से एक उपेन्द्र महारथी, जिनके नाम पर बिहार का उपेन्द्र महारथी संस्थान है; भी पद्म पुरस्कार से सम्मानित महानायकों की सूची में शामिल हैं। सात समंदर पार की बात करें तो जापान में बने मिथिला संग्रहालय और उसके संस्थापक टोकियो हासेगावा को आज कौन नहीं जानता।

दूसरी तरफ इस कला शैली को घर आंगन से निकालकर पहले राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहुंचाने वाले विलक्षण कलाकार और कलाविद भास्कर कुलकर्णी की चर्चा के बगैर, मिथिला चित्रकला पर बात तक करना भी अक्षम्य अपराध ही समझा जाएगा। लेकिन इन सबके बावजूद कुछ ऐसी कटु सच्चाईयां भी हैं, जिसकी चर्चा अति आवश्यक है। उनमें से एक तो यह कि इन सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए समग्रता से कोई पुस्तक इससे पहले सामने नहीं आई। इतना ही नहीं इसके उन्नयन का भगीरथ जिन्हें कहा जाना चाहिए; उन भास्कर कुलकर्णी के बारे में कोई विशेष जानकारी बिहार-वासियों तो क्या मिथिला चित्रकला से जुड़े कलाकारों तक के पास नहीं है। यहां बात उन कलाकारों की भी मैं कर रहा हूं जिनके बीच भास्कर कुलकर्णी आजीवन सक्रिय रहे, जिन्हें घर की दहलीज से बाहर निकालकर राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फलक तक पहुंचाने में अपने जीवन तक को दाव पर लगा दिया। विदित हो कि उनकी मृत्यु मिथिला की भूमि पर ही हुई। अलबत्ता आज मिथिला के कला समाज के एक वर्ग ने उन्हें देवता तक का दर्जा देते हुए; उनकी प्रतिमा तक स्थापित कर रखी है।

वैसे जिस महाराष्ट्र की धरती पर उनका जन्म और शिक्षा-दीक्षा हुई, वहां के उनके मित्रों व शुभचिंतकों ने उनसे संबंधित संस्मरण व अन्य सामग्री भी रची। जिनमें से कुछ लेखों को ललित कला अकादमी, नई दिल्ली ने अपने प्रकाशन में प्रमुखता से जगह दी। फिर भी बहुत सारे लोग आज भी इस तथ्य से अनजान ही होंगे कि इंडियन एयरलाइंस की पहचान बन चुके महाराजा की परिकल्पना और उसकी चित्रात्मक प्रस्तुति इन्हीं भास्कर कुलकर्णी की देन है। जिन लोगों की स्मृति में फिल्म ‘आक्रोश’ के पात्र भास्कर कुलकर्णी हैं, उन्हें यह तो पता होगा ही कि यह भूमिका नसीरुद्दीन शाह ने निभाई थी। किन्तु इस नामकरण के पीछे की बात को बयां करते हुए अपने भास्कर कुलकर्णी शीर्षक आलेख में दिलीप चित्रे लिखते हैं- यह बात बिल्कुल स्पष्ट है, इसे संयोग मात्र नहीं कहा जा सकता, प्रसिद्ध नाटककार विजय तेंदुलकर ने जो आक्रोश फिल्म की पटकथा लिखी थी, उसके प्रमुख पात्र का नाम भास्कर कुलकर्णी ही क्यों रखा? आज इस बारे में तेंदुलकर मौन हैं, इसका कोई स्पष्टीकरण उनकी तरफ से नहीं आया। पर मुझे ठीक-ठाक पता है तेंदुलकर भास्कर के जीवन से पूरी तरह से परिचित थे।

बहरहाल यहां अभी हम बात अगर सिर्फ मिथिला चित्रकला पर ही केन्द्रित रखें तो, समग्रता में मिथिला चित्रकला के उन्नायकों एवं महत्वपूर्ण कलाकारों की जिंदगी और उनके योगदान की पर केन्द्रित पुस्तक आज हमारे सामने है ‘नाज-ए-मिथिला’ शीर्षक से। पुस्तक के लेखक अशोक कुमार सिन्हा बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है। अशोक जी साहित्यानुरागी तो हैं ही बाल साहित्य से लेकर कथा, कविता, संस्मरण और महापुरुषों की जीवनी तक लिख चुके है। किन्तु एक कलाकार के नाते मेरी व्यक्तिगत राय है कि विगत एक डेढ़ दशक में अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाने के क्रम में जब उनका परिचय बिहार की लोक-कलाओं से हुआ; तब से लेकर आज तक उनकी प्राथमिकता इससे जुड़े कलाकारों व उनकी कला के विकास की ही है। यहं तक कि लगभग प्रत्येक कलाकार से अपना व्यक्तिगत नाता-रिश्ता भी उन्होंने जोड़ रखा है। अत: ऐसे में जैसी कि अपेक्षा थी, प्रस्तुत पुस्तक में विस्तार से मिथिला कला के सभी संबंधित पक्षों को सामने रखा गया है। इस पुस्तक में जहां कला व कलाकारों से संबंधित अनसुनी कहानियां हैं, तो दर्जनों दुर्लभ छायाचित्रों का संग्रह भी यहां मौजूद है। जो इस कला की विकास यात्रा को बखूबी सामने लाता है। मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक मिथिला कला के सामान्य प्रेमियों से लेकर गहन शोध के इच्छुक शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी रहेगी। क्योंकि इसमें संग्रहित आलेखों को हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में एक ही जिल्द में समाहित किया गया है।

पुस्तक का नाम: नाज-ए-मिथिला
लेखक: अशोक कुमार सिन्हा
प्रकाशक: उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना।

-सुमन कुमार सिंह

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