पर्सी ब्राउन (Percy Brown) की पुस्तक Indian Painting

पर्सी ब्राउन (Percy Brown, 1872–1955) ब्रिटिश कला इतिहासकार, पुरातत्वविद् और लेखक थे, जिन्होंने भारतीय कला और वास्तुकला के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) में कार्यरत रहे और कोलकाता के स्कूल ऑफ आर्ट के प्राचार्य भी रहे। उनका प्रमुख कार्य Indian Architecture (दो खंडों में) और Indian Painting है, जो भारतीय कला के औपनिवेशिक कालीन अध्ययन की आधारभूत पुस्तकों में गिनी जाती हैं। ब्राउन ने भारतीय कला को एक संगठित ऐतिहासिक क्रम में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। यद्यपि उनकी दृष्टि पश्चिमी और औपनिवेशिक रही, पर उन्होंने भारतीय चित्रकला और स्थापत्य की कलात्मक श्रेष्ठता को स्वीकार किया और उसे वैश्विक कला इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान देने का प्रयास किया।

पर्सी ब्राउन (Percy Brown) की पुस्तक Indian Painting भारतीय कला इतिहास के अध्ययन में एक क्लासिक ग्रंथ मानी जाती है। यह पुस्तक औपनिवेशिक काल के उन महत्त्वपूर्ण प्रयासों में से है जिनके माध्यम से पश्चिमी कला इतिहासकारों ने भारत की चित्रकला परंपरा को सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया। पहली बार 1920 के दशक में प्रकाशित इस ग्रंथ का उद्देश्य भारतीय चित्रकला के विकास को ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में समझाना था।

ब्राउन ने इस पुस्तक में भारतीय चित्रकला को कालक्रमानुसार विभाजित करते हुए चार प्रमुख धाराओं में बाँटा है—अजंता की भित्तिचित्र परंपरा, मध्यकालीन बौद्ध और जैन पांडुलिपि चित्रण, मुग़ल और राजस्थानी लघु चित्रशैलियाँ, तथा आधुनिक युग की प्रारंभिक प्रवृत्तियाँ। उनका विश्लेषण मुख्यतः कला के औपचारिक पक्ष — जैसे रेखा, रंग, संयोजन, और शिल्प की परिष्कृतता — पर आधारित है। अजंता चित्रों को उन्होंने “Indian genius for colour and composition” का सर्वोच्च उदाहरण बताया है।

हालाँकि Indian Painting अपने समय में अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हुई, परंतु आज इसकी आलोचनात्मक समीक्षा कई दृष्टियों से आवश्यक है। पर्सी ब्राउन औपनिवेशिक दृष्टिकोण के प्रतिनिधि इतिहासकार थे, इसलिए उनके विश्लेषण में भारतीय कला की आध्यात्मिक, दार्शनिक और लोक-सांस्कृतिक गहराइयों की अपेक्षाकृत उपेक्षा दिखाई देती है। उन्होंने भारतीय कला को यूरोपीय तुलनात्मक कसौटियों पर परखा—जहाँ कला को “शैलीगत विकास” (stylistic evolution) और “प्रभाव-सिद्धांत” के ढांचे में देखा गया। परिणामस्वरूप, भारतीय चित्रकला को अक्सर “पर्सियन इन्फ्लुएंस” या “क्लासिकल डिके” जैसी श्रेणियों में बाँधा गया।

इसके बावजूद, यह पुस्तक कला इतिहास के अनुशासन में भारत की दृश्य संस्कृति के लिए एक आधारभूत दस्तावेज सिद्ध हुई। इसमें दिए गए चित्र-फोटोग्राफ, स्थलों का क्रमवार विवरण, और संग्रहालयीय संदर्भ उस समय के लिए अत्यंत मूल्यवान थे। पर्सी ब्राउन ने भारतीय चित्रकला को केवल “धार्मिक सज्जा” नहीं, बल्कि “सांस्कृतिक साक्ष्य” के रूप में स्थापित किया—यह एक महत्वपूर्ण बौद्धिक योगदान था।

ब्राउन का दृष्टिकोण हालांकि औपनिवेशिक था, पर उन्होंने भारतीय कलाकारों की रचनात्मकता और तकनीकी निपुणता की खुलकर प्रशंसा की। वे अजंता, बघ, सिगिरिया, और मुग़ल मिनिएचर की एक निरंतर “कलात्मक परंपरा” की बात करते हैं। यह परंपरा उनके अनुसार भारतीय आत्मा की “शांति, आध्यात्मिकता और प्रतीकात्मकता” से भरी हुई है।

आलोचनात्मक रूप से देखें तो, Indian Painting भारतीय कला इतिहास की एक प्रारंभिक पश्चिमी व्याख्या है — जिसमें वस्तुगत डेटा प्रचुर है, पर सांस्कृतिक आत्मा की गहराई नहीं। बाद के भारतीय कला इतिहासकार — जैसे नंदलाल बोस, अनुपम सेन, रतन पारिमू, कपिला वात्स्यायन और सी. शिवराममूर्ति — ने इसी ढांचे को भारतीय दृष्टि से पुनर्परिभाषित किया।

अतः कहा जा सकता है कि पर्सी ब्राउन की Indian Painting भारतीय चित्रकला के अध्ययन की एक “प्रारंभिक ईंट” है — जिसने दिशा तो दिखाई, पर दृष्टि को पश्चिमी दृष्टिकोण तक सीमित रखा। आज भी यह पुस्तक भारतीय चित्रकला इतिहास की समझ के लिए एक आवश्यक संदर्भ है — किंतु इसे पढ़ते हुए उस पर औपनिवेशिक व्याख्याओं की सीमाओं और पूर्वाग्रहों को समझना भी उतना ही ज़रूरी है।

स्रोत : chatgpt

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