- पुस्तक समीक्षा : जयप्रकाश त्रिपाठी
” भारतीय चित्रकला का सच ” जैसा इस पुस्तक का नाम है, एकदम उसी के अनुसार एक कला चिंतक के रूप में लेखक ने सिलसिलेवार ढंग से अपने विचारोत्तक लेखों को पाठकों के समक्ष रखा है। इसे लेखों का संग्रह मात्र कहना उचित नहीं जान पड़ता है। इन लेखों में उदाहरण और तर्कों के साथ प्रस्तुत विचार आधुनिक भारतीय समकालीन चित्रकला का सच दिखाने और कला लेखक के जज़्बात की ज़मीन है। यह पुस्तक अशोक भौमिक की प्रतिदिन की डायरी सी प्रतीत होती है, जो कलाप्रेमी और पाठकों को एक मौलिक कला चिंतक के रूप में अशोक भौमिक के कला जीवन व उनकी सोच के भीतर झांकने का मौका देती है । एक पाठक ही नही वरन एक कलाकार , कला लेखक और कला समीक्षक के रूप में पढ़ने पर भी यह पुस्तक आपके दिलों दिमाग़ पर गहरी छाप छोड़ जाती है। आप इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो निराश नहीं होगें, बल्कि प्रसिद्ध चित्रकार और कला चिंता अशोक भौमिक के विचारोत्तेजक लेख समकालीन भारतीय चित्रकला के प्रति आपका देखने का नजरिया भी बदल सकते हैं ।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अमृता शेरगिल और चित्तो प्रसाद आदि कई कलाकारों के साथ-साथ सादेकैन साहब और हुसैन साहब के चित्रों की प्रदर्शनी का संस्मरण बड़े खुले और स्पष्ट विचारों के साथ रोचकता से लिखा है जो इस पुस्तक के जरिये हम जान पाते हैं।
चित्रों, तर्कों और प्रमाणों के साथ यह पुस्तक चित्रकला के सच को बेहद विश्वसनीय ढंग से हमारी सोच के सीमित और संकुचित दायरे के पटल पर रखती है। भारतीय चित्रकला के सच को आइना दिखाते तर्कों के साथ लिखे गए वैचारिक लेख एवं निबंध निर्ममता के साथ समकालीन आधुनिक कला की पड़ताल करते नज़र आते हैं। लेखक व्यवस्था और समकालीन भारतीय चित्रकला की दशा- दिशा पर प्रश्न करता दिखता है; जिनके कई उदाहरण हैं, जैसे कि देश के ख्यातिप्राप्त चित्रकार कैसे अपने स्वाभाविक चित्रों के बावजूद कपोल कल्पित कला समीक्षकों के तानेबाने से अपने विचारों और प्रदर्शित कला के प्रति दिग्भ्रमित होकर उनके अनुसार अपनी कलाकृतियों की व्याख्या पेश करने लगते हैं और उसमें कला बाज़ार भी कैसे अपने बाज़ारीकरण से कलाकार को प्रभावित करता है। यह हमें पुस्तक पढ़ कर जान पड़ता है।
पुस्तक वाक़ई में पाठकों को आंखें खोलकर समकालीन आधुनिक भारतीय चित्रकला को देखने- समझने के लिए जागरूक करती है, जो कि वास्तविकता के और क़रीब जाकर जानने की कोशिश में सफल होती है। इस पुस्तक का नाम भले ही भारतीय चित्रकला का सच हो पर हमारे देश के ज़्यादातर कलाकार संवेदनाओं से दूर कला बाजार व इसी तरह की आपाधापी के बीच कला दुनिया के सच की परवाह किए बिना अपने को कलाकारों की अग्रणी भूमिका में जैसे तैसे भी बस देखना चाहता है।
कला चिंतक भौमिक ने भारतीय कला, कला बाजार, चित्रकला के सच से लेकर कला में लाइन, स्पेस और बिन्दुओं के साथ-साथ सुप्रसिद्घ कलाकार सोमनाथ होर से लेकर महात्मा गांधी की कला के प्रति सच्ची सोच और समाज के अन्य अनेकों दृश्यों को उदाहरण व तर्क के साथ समझाते हुए अपनी स्पष्ट लेखनी से दिलों और दिमाग़ पर छा जाने वाले संस्मरणों व लेखों को पिरोया है। जिसे ” भारतीय चित्रकला का सच ” के माध्यम से समझाने की कोशिश की है, और समकालीन आधुनिक कला की कड़वी सच्चाइयों को सामने रखने का प्रयास किया है। कुल मिलाकर अशोक भौमिक ने समकालीन कला के कठोर यथार्थों पर रोशनी डालने का जुझारू प्रयास किया है, जिसमें “भारतीय चित्रकला का सच” फौरी तौर पर तुरंत ही इससे जोड़ देता है। पुस्तक के विचारोत्तेजक लेख व इसकी कसक किताब पढ़ने के बाद भी बनी रहती है। एक ज़रूरी बहस पैदा करता भौमिक का यह तथ्यपरक संकलन कई ऐसे प्रश्नों को उठाता है। जिसे जानना वाक़ई एक कलाकार, कला प्रेमी और आम पाठक पसंद करेंगे।
पुस्तक : भारतीय चित्रकला का सच
लेखक: अशोक भौमिक
मूल्य : 595 रूपया
प्रकाशक : परिकल्पना
बी-7 , सरस्वती काम्पलैक्स, सुभाष चौक , लक्ष्मीनगर, दिल्ली 11009
संपर्क : bhowmick.ashok@googlemail.com
ई मेल : parikalpana.delhi2016@gmail.com
Photo: Meenu Karania