मैं लिखती क्यों हूँ ?

मैं कोई इतिहासकार नहीं हूँ, लेकिन मैं इस ग्रह पर मानव इतिहास का बहुत छोटा हिस्सा हूँ I मैं कोई राजनेता नहीं हूँ, लेकिन मेरे चारों तरफ जो धोखाधड़ी और आक्रामकता फैली हुई है और हिंसा का जो रास्ता अपने जहरीले दांतों से मेरा और मेरे साथी इंसानों का गला घोंटने की कोशिश कर रहा है, मैं उसके बारे में जागरूक होने से खुद को रोक नहीं पाती हूँ I
मैं कोई दार्शनिक नहीं हूँ, लेकिन मैं खुद को ये महसूस करने से रोक नहीं सकती कि केवल अनिश्चितता का ज्ञान ही एकमात्र निश्चितता है I
इस युग और राक्षसी प्रवृति के वक्त में जब इंसान अपने साथियों के साथ इस तरह का क्रूर व्यवहार करना जारी रखता है, ऐसी स्थिति में शब्दों के सिवाय मेरे पास विरोध करने का कोई दूसरा हथियार नहीं है I
मैं लिखती हूँ, चाहे मैं इनकी तलाश और इनकी जीवन्तता का इस्तेमाल कर सकने के काबिल हूँ या नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता I
मैं शब्दों की ताकत से वाकिफ हूँ, और मैं इसके अनुनाद, इनकी झंकार, इनके अर्थ के कई रंगों, रंगों इनके शाश्वत और अन्तर्निहित सत्य, इनकी बनावट, इनकी ध्वनि, इनके लय-ताल से प्रेम करती हूँ I
मुझे शब्दों की शक्ति पता है, और मुझे इसकी प्रतिध्वनि, इसकी चंचलता, इसके विभिन्न रंगों के अर्थ, इसके शाश्वत और निहित सत्य, इसकी बनावट, ध्वनि. इसकी लय से प्यार है I जो शब्द ढलान और धूसर रंगों के साथ चमकते हैं, शब्द जो सूखी धरती पर पहली बारिश की तरह गिरते हैं, शब्द जो चक्रवात की तरह गर्जना करते हैं और काले बादलों की गड़गड़ाहट होती है, जो शब्द मेरे मन के क्षितिज में बिजली की तरह चमकते हैं, वे शब्द जो नरम और स्पंदित होते हैं, वे शब्द जिनमें धातु के प्रतिध्वनि होती है, शब्द जो गड़गड़ाहट और गर्जन करते हैं ! मुझे शब्दों से प्यार है I
यही वजह है कि मैं लिखती हूँ, शब्दों के छिपे हुए मिजाज़ और स्वभाव का पता लगाने के लिए, मैं उनके साथ खेलती हूँ, मैं उन्हें तराशती हूँ, जब ये शब्द मायावी और रहस्यमय हो जाते हैं तो मैं उनका पीछा भी करती हूँ I
-अजीत कौर
प्रस्तुत पंक्तियाँ उनकी पुस्तक “इधर-उधर” में संकलित निबंध “मैं लिखती क्यों हूँ ?” से सादर साभार

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