अनीश अंकुर मूलतः संस्कृतिकर्मी हैं, किन्तु अपनी राजनैतिक व सामाजिक अभिव्यक्ति के लिए भी जाने जाते हैं। उनके नियमित लेखन में राजनीति से लेकर समाज, कला, नाटक और इतिहास के लिए भी भरपूर गुंजाइश रहती है । बिहार के मौजूदा कला लेखन की बात करें तो जो थोड़े से नाम इस विधा में देखने को मिलते हैं उनमें से एक महत्वपूर्ण नाम अनीश अंकुर जी का भी है। आलेखन डॉट इन के मंच से उनके पूर्व प्रकाशित कला विषयक आलेखों को पुनर्प्रकाशित करने का उद्देश्य है बिहार से बाहर के कला जगत से बिहार की कला गतिविधियों को रूबरू कराना। इसी कड़ी में प्रस्तुत है विगत वर्षों में आयोजित एक समूह प्रदर्शनी की समीक्षा ….
Anish Ankur
पटना की चर्चित कला संस्था अपनी कला के क्षेत्र में अपनी अनूठी पहलकदमियों के लिए जानी जाती है। इस दफे बिहार के कई चित्रकारों-मूर्तिकारों को लेकर ‘बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर’ नृत्य कला मंदिर में आयोजित किया गया। पांच दिवसीय इस प्रदर्शनी में भिन्न- भिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले आठ कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित की गई थी। इन आठ लोगों में छह चित्रकार तथा दो मूर्तिकार थे।चित्रकला में निशि सिंह, दिनेश कुमार, सत्या सार्थ , सुधीर पंडित, रंजीत कृष्ण,संगीता तथा स्मिता पराशर थी जबकि मूर्तिकारों में रामकुमार व सुनील की कृतियां लगायी गई थीं।
निशि सिंह की एक कलाकृति
पटना आर्ट कालेज की 1997 की छात्रा रही निशि सिंह ने लगभग दो दशकों के पश्चात किसी प्रदर्शनी में शिरकत की थी। इतने लंबे अंतराल के बावजूद निशि सिंह का काम आकर्षित करता है। उनके द्वारा बनाई गई चित्र ‘ ड्रीमगर्ल’ ब्लू पृष्ठभूमि में हल्के सुर्ख कपड़ों में ग्रामीण लड़की की स्वप्निल आंखें उसकी भावी आकांक्षा को अभिव्यक्त करती मालूम होती है। निशि सिंह ने इसे चित्र में गोंड शैली का प्रयोग करने के साथ साथ मधुबनी पेंटिंग और डूडल का प्रभाव एक पट्टी देकर सृजित करती हैं। गोंड छत्तीसगढ़ी शैली है ब्लू पृष्ठभूमि वहीं से ली गई है। गोंड, मधुबनी दोनों का सम्मिश्रण कर एक ‘ फोक’ प्रभाव करने का प्रयास किया जाता है। खुद उनके अनुसार ये मैंने ” फोक फ्यूजन’ करने का प्रयास किया है। हालांकि ‘ड्रीम गर्ल ‘ की आंखों में ख्वाब के साथ साथ हल्की उदासी का भाव होना इसे विशिष्ट बनाता है। निशि सिंह की अन्य कृतियों में ‘ राधा कृष्ण ‘ का मूंदी आंखों वाले आनंदमय प्रेम, ट्राइबल लेडी, आदि तस्वीरों में एक सी तकनीक अपनाई गई है वही गोंद, मधुबनी शैली और ब्लू रंग की पृष्ठभूमि। इस रंग से चित्रकार का विशेष अनुराग प्रतीत होता है। निशि सिंह का सभी काम एक्रिलिक में किया गया है।
सुधीर पंडित की एक कलाकृति
दिनेश कुमार की भी कई कृतियां लगी हैं। चटख रंगों का इस्तेमाल करने वाले दिनेश कुमार की एक पेंटिंग थोड़ा ध्यान खींचती है जिसमें बुद्ध, गांधी व चिड़ियों को लेकर एक कृति बनाई गई है। नीले रंग में गांधी का चेहरा बुद्ध की धरती पर आकर उनकी प्राचीन मंशाओं को नए ढंग से व्याख्यायित करते नज़र आते हैं। दिनेश कुमार की एक कृति में स्त्री का घोड़े को हांकने वाली मुद्रा में अपनी मुक्ति का एहसास कराती है। गाढ़े व चटख रंग दिनेश कुमार की ख़यास पहचान हैं। गाय, स्त्री आदि की पारम्परिक दुनिया दिनेश कुमार की सृजनात्मकता के केंद्र में रहे हैं।
सुधीर पंडित की तस्वीरें अपनी अलग टेक्सचर की वजह से ध्यान खींचती है। कैनवास पर बनायीं कृतियां बालुई टेक्सचर का प्रभाव पैदा करती है। सुधीर पंडित ने इसके लिए कैनवास को ख़यास तरीके से डिज़ायन किया है। कैनवास को बालू, गोंद आदि कई सामग्रियों की सहायता से चिपका कर तैयार करते हैं। उसपर खल्ली से आकृति निर्मित कर फिर उसमें रंग भरते हैं जिससे उभरने वाली तस्वीर में सैंड इफेक्ट उसे एक किस्म का पुरानी स्मृतियों सरीखा अहसास कराता है। सुधीर पंडित ने सैंड प्रभावों वाली तस्वीरों के साथ अन्य काम एक्रिलिक पर किया है। सबसे ख़ास बात है कि ब्रश का स्ट्रोक कैनवास पर एकदम नज़र नहीं आता। बुद्ध की कई छवियां इनके यहां उभरती है। ‘लाफिंग बुद्धा’ अलग से आकृष्ट करती है। बुद्ध के जीवन के विभिन्न पहलुओं व मुद्राओं को सुधीर पंडित ने कैनवास ओर लाने का प्रयास किया है। बुद्ध के अतिरिक्त ‘राधाकृष्ण ‘ भी सुधीर पंडित के प्रिय विषय हैं। ‘राधाकृष्ण’ में प्रेम को जैसे आभ्यंत्रीकृत किया गया अहसास दिखता है। सुधीर पंडित तकनीकी रूप से काफी सुदृद्ध चित्रकार हैं। उनके काम में एक सफाई भी नज़र आती है जो दर्शक को बरबस अपनी इर आकृष्ट करती है।
रंजीत कृष्ण भी अन्य चित्रकारों की तरह पटना आर्ट कालेज के छात्र रहे हैं। उनके तीन चार प्रदर्शित कामों में उद्योग व शहरीकरण की प्रक्रिया जिस प्रकार हमारे नैसर्गिक वातावरण को प्रदूषित कर रही है इसकी प्रभावी अभिव्यक्ति उनकी पत्ते वाले काम में होती है। रंजीत कृष्ण ने हरे पत्ते के नीचे डंठल के पास लाल -काला प्रभाव पैदा कर प्रकृति के संकटग्रस्त होने को प्रभावी ढंग से प्रकट किया है। पारंपरिक विषयवस्तु वाली चित्रों की प्रदर्शनी में समकालीन समय रंजीत कृष्ण के काम में खुद को सामने लाता दिखाई पड़ता है। रंजीत कृष्ण के अन्य कामों में प्रमुख है ‘गोचर ‘ । इसमें भी घोड़े की नाल, नींबू, मिर्च आदि का रंजीत कृष्ण ने रचनात्मक इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। एक्रिलिक में काम करने वाले रंजीत कृष्ण में कुछ अलग हटकर करने की अंदरूनी प्रेरणा से प्रभावित दिखते हैं और कुछ चित्रों में सफल होते भी नज़र आते हैं।
स्मिता पराशर लंबे वक्त से पटना की कला दुनिया में जानी पहचानी शख्सियत हैं। इधर कुछ वर्षों से उन्होंने कला पर और ध्यान देना शुरू किया है। औरतें व प्रकृति इनका पसंदीदा विषय है। विभिन्न किस्म के फूल, मछली, मशरूम आदि की सहायता से स्मिता प्राकृतिक माहौल रचती हैं। अधिकांश चित्रों में औरतें प्रकृति का हिस्सा होने के साथ-साथ उसी का विस्तार है भी है। इस केंद्रीय भाव को सामने लाने का प्रयास स्मिता की पेंटिंग्स में दिखता है। एक चित्र में स्त्री के मुखड़े के कुछ शेड्स सामने लाकर उसे थोड़ा समकालीन टच दिया गया है। ये चित्र अलग से ध्यान खींचती है । स्त्री की दूसरी पारम्परिक चित्रों से इतर एक थोड़ा अलग करने की जद्दोजहद से गुजरती मालूम पड़ती हैं। यदि स्मिता खुद को इस दिशा में आगे बढ़ती हैं तो खुद के भीतर नई सम्भावना को तलाश कर सकती हैं। मुख्यतः एक्रिलिक में काम करने वाली स्मिता के पेन और इंक के काम में भी एक पैनापन झलकता है।
संगीता ने वाटर कलर और तैल चित्र बनाये हैं। वाटर कलर में ” डिफरेंट मूड्स ऑफ नेचर” ने बनाये हैं। संगीता ने पेड़ों व जंगलों की सघन बसावट में चित्रित मानवाकृतियों को कुछ इस अंदाज में चित्रित किया है कि अलग-अलग मनःस्थितियों को सामने लाती हैं। जंगलों के बीच बादल, पगडंडी, पानी का बहता सोता , समुद्र , पहाड़ी इलाके कुछ इस अंदाज में चित्रित किये गए हैं कि पुरानी स्मृतियों को कुरेदती हुई एकाकीपन का भाव देखनेवाले के अंदर पैदा करता है। संगीता ने वाटर कलर में बहुत छोटे-छोटे चित्र बनाकर बेहद चुनौतीपूर्ण काम संगीता ने किया है। संगीता के तैल चित्रों में “मदर एंड चाइल्ड प्लेइंग’ में मां, बच्चा व गेंद उनके बीच के नैसर्गिक लगाव को बड़े सृजनात्मक तरीके से उकेरा गया है। गेंद, मां खुद भी बच्चों सरीखी हरकतें करती हैं । वाटर कलर माध्यम के चित्रों से एकदम अलग तकनीक से संगीता ने पकड़ने का प्रयास किया है। यंत्रों की दुनिया से इतर मां व बच्चे का प्राचीन लगाव चित्रों में दर्शाया गया है।
सत्या सार्थ की छह कृतियां ‘ एम्बिशन’, ‘पास्ट व्यू’, ‘ कल्चरल जर्नी’, ‘ साधना’ और ‘ मन के दरवाजे ‘ प्रदर्शनी में रखी गई थी। सत्या रथ अपने चित्रों में आने भीतरी मनोभावों को कैनवास पर उकेरने का प्रयास कर रही हैं। उनकी अधिकांश कृतियों में तितली कई जगह उभरती हैं। अपनी आकांक्षा उस तितली की मानिंद है जिसे छूने पर उसका महत्व जाता रहता है उसका महत्व छूने के बजाय एक दूरी से उसे देखने में है। ‘ पास्ट व्यू ‘अपने व्यतीत अतीत को सत्या बड़ी शिद्दत से याद रखती हैं।अपने पुराने घर की खिड़की, तुलसी का पौधा, अपनी ही देह की मुद्राएं सब कुछ उनकी स्मृतियों में बसी है। ‘कल्चरल जर्नी ‘ में वे दिल्ली में रह रहे बंगाल के लोगों द्वारा अपनी सांस्कृतिक पहचान को बचाये रखने की कोशिश नज़र आती है। इंडिया गेट, मां दुर्गा उनकी सवारी सिं , और यात्रा के लिए पांवों की छाप जैसी छवियों का प्रयोग करती हैं। जबकि ‘मन के दरवाज़े ‘ के पीछे भाव ये है कि अपने मन के भीतर प्रवेश उन चंद लोगों को ही है जो आपके बेहद करीब हैं व जिनके साथ अच्छा महसूस होता है। बाकियों के लिए दरवाजा ओर लटका ताला है जिसे खोलना सबके लिए आसान नहीं है। सत्या सार्थ के यहां अधिकांश अपनी भीतरी संसार व उसके अंदर उमड़ते भावों को अभिव्यक्त करने की कोशिश करती हैं । सत्या के रंग संयोजन में एक उलझन सी भी नज़र आती है। वे चटख रंगों का धड़ल्ले से प्रयोग करती हैं।
सुनील कुमार की एक कलाकृति
मूर्तिकार सुनील कुमार की चार प्रदर्शित कृतियां फाइबर में बनाई गई थी। चार रंगों सफेद, पीला, लाल व नीले रंग की इन कृतियों के नाम थे क्रमशः सूफी, मां-बेटा, पिता पुत्र और राधा कृष्ण। सुनील ने इन कृतियों में बगैर ब्यौरे में गए बस एक इम्प्रेशन पैदा करने का प्रयास किया है। सबसे प्रभावी मां व बेटे के वात्सलय भाव पैदा करने वाली ‘मदर एंड चाइल्ड ‘ है। सुनील ने कृतियों को कर्व कर दिया है भावों को सृजित करते हैं। मां ने अपने कंधे पर उत्साहित बेटे की ओर जो मुद्रा अपनाई है यही एक कलाकार की सबसे बड़ी चुनौती होती है। सुनील कुमार ने बखूबी ये काम किया है। फाइबर पर चटख रंग की चिकनाहट देखने वाले आंखों को एक मखमली अहसास कराती है। लाल रंग वाली मूर्ति में बच्चा मां जी गोद में है जबकि पीली कलाकृति में बच्चा आने पिता के कंधे पर है। माँ और पिता दोनों जे साथ बच्चे का जो अलग-अलग रिश्ता है उसका आभास सुनील कुमार बखूबी करा देते हैं। यही उनकी सबसे बडी खूबी है। राधा कृष्ण को नीले रंग में बांसुरी के साथ-साथ दोनों की मुद्राओं व भंगिमाओं के सहारे सुनील कुमार दोनों के मध्य के रागात्मक संबंध को लाने का प्रयास किया है।
बिहार में गांधी से संबंधित मूर्तियां बनाने वाले रामु कुमार की प्रमुख कृतियां ‘ मदर व चाइल्ड प्लेइंग’ ‘ ट्रैवेल, ‘ट्रायम्फ ‘और ‘ रेस्ट ‘ संयम प्रदर्शनी का हिसा बनी। रामु कुमार की दो कलाकृति ‘ ट्रेवल’ और ‘ मदर एंड चाइल्ड प्लेइंग’ टेराकोटा माध्यम में जबकि शेष दो फाइबर माध्यम में है। ‘ ट्रैवेल’ में एक बच्चा अपने पिता के कंधे के एक हिस्से पर दोनों पैर लटकाकर बलिष्ठ पिता के माथे पर अपना नन्हा सर रखकर सुकून से सो गया है। बच्चे अपना हाथ और मुख का एक भाग जिस निश्चिंत भाव से पिता के सर पर रखा है वो इस कृति की खास विशेषता है। उसके पिता को अपने पुत्र के कोमल स्पर्श की अनुभति है। रामु कुमार ने अपने बच्चे की गर्दन, कंधे से जुड़ने वाला हाथ और कलाई वाले जोड़ को रिक्त छोड़ दिया है। ये कार्य बड़े सृजनात्मक ढंग से किया गया है। राम कुमार के इस सचेत सृजनात्मक चुनाव ने कलाकृति को विशिष्ट बनाती है।
टेराकोटा में ठीक इसी प्रकार अपने बच्चे और मां की रागात्मक संबंधो वाली कलाकृति है ” मदर व चाइल्ड प्लेइंग ‘ उसी नाम से संगीता जी भी तैल चित्र भी इस प्रदर्शनी में शामिल है। रामु कुमार ने अपनी छोटी कलाकृति में बच्चा मां जी पीठ पर अन्यमनस्क भाव से लेटकर उसकी मुड़ी हुई तलवे से अपने नन्हे तलवे का जोड़ मिलाता है। माँ व बच्चे की खेलने की इस प्रचलित छवि को रामकुमार ने पकड़ने की कोशिश की है। इस कलाकृति को देखते हुये दर्शक के मन में अपनी बचपन की यादों को कुरेदने लगती है। ग्रामीण माँ ब बच्चे के इस आदिम लगाव को अभिव्यक्त करती यह कलाकृति में रामू की रचनात्मक हस्तक्षेप नज़र आता है। फाइबर में ‘ ट्रायम्फ’ बड़े सादे ढंग से बनाई गई है। जीत, उत्साह व उम्मीद को प्रकट करने वाली यह कलाकृति उस भावपूर्ण क्षणों को पकड़ने का प्रयास करती है जब हम उसे महसूस करते हैं। बड़े सादे व अमूर्त ढंग से रामू ने इन भावों जो सामने लाने का प्रयास किया है।
रामू की कलाकृति ‘रेस्ट’ एक आराम की भंगिमा को थोड़े अमूर्त तरीके से फाइबर में अभिव्यक्त करती है। भागदौड़ भरे व्यस्ततम समय में आराम की ख्वाहिश सबों की इच्छा रहती है जो बड़ी मुश्किल से मिलती है। जब हम तनावमुक्त होकर लेट रहते हैं उस मनःस्थिति में देह जिस ढंग से रहता है रामू की कलाकृति उसे अमूर्तन में रखने का प्रयास करती है। किसी चीज को अमूर्त तरीक़े से अभिव्यक्त करना बड़ी रचनात्मक कौशल की मांग करता है। राम कुमार को उस दिशा में अभी और प्रयास करना है।अमूर्तन में एक अंदरूनी ताकत भी रहती है। कहा भी जाता है ‘पावर लाइज इन एब्स्ट्रेक्शन’।
‘रंगविकल्प ‘ द्वारा आयोजित सामूहिक प्रदर्शनी ‘संयम’ में इन आठों कलाकारों की के कृतियों में कुछ प्रवृत्ति समान नज़र आती है। राधा कृष्ण, बुद्ध, परंपरा, स्त्री, प्रकृत्ति , बच्चे आदि प्रिय विषय है। सभी कलाकर परम्परा व प्रकृत्ति से मुठभेड़ करते नज़र आते हैं। सबों ने अपनी कृतियों के माध्यम से अपनी निजी छाप छोड़ी है। कई दफे ये लगता है हमारा बदलता समय व समाज की समकालीन दुनिया इस प्रदर्शनी से अनुपस्थित है। लेकिन इन कलाकारों ने स्थायी महत्व के भावों को अपनी कृतियों में स्थान देने की कोशिश की है। नए समय मां-पिता- बच्चे के सबसे प्राथमिक सम्बन्ध संकट में हैं कइयों ने इसे अपनी कृतियों का विषय बनाया है। साथ ही ‘राधा कृष्ण’ के माध्यम से प्रेम के पुराने भावों को बचाने की जद्दोजहद दिखती है। प्यार को उत्पाद बनाने के विरुद्ध उसका विकल्प राधाकृष्ण के प्रेम का पारम्परिक स्वरूप नज़र आता है।
ये बात भी सही है कि एक कलाकार जैसा सोच कर चित्र बनाना चाहता है उस भाव को कलात्मक रूप से अभिव्यक्त करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। ये काम बहुत कलात्मक व तकनीकी तैयारी की मांग करता है। अधिकांश कलाकार तकनीकी रूप से प्रयोगधर्मी नज़र आये लेकिन अवधारणा के स्तर पर अभी भी पुरानी रूढ़ियों व छवियों के प्रभाव में हैं। विषयवस्तु के स्तर पर प्रयोगधर्मिता खास किस्म की सामाजिक सजगता जी मांग करता है। एक कलाकार को कलात्मक व वैचारिक रूप से एक संतुलन स्थापित करना होता है।