कला बिंबो का सृजन कर अभिव्यक्ति का एक बेहद सशक्त माध्यमहै। कला के इस बिम्ब निरूपण की परंपरा में प्रतीकात्मक बिंबों को माध्यम बना कर अपनी बात कहने का अंदाज ही उसे अनूठा बना देता है। इससे दर्शक के मन में एक रहस्यात्मक उत्सुकता बढ़ जाती है। दर्शक चित्र के बिंबानुरूप प्रतीकात्मक आकारों से जुड़ एक कथात्मक अनुभूति में लीन हो जाता है। और उस चित्र के रस भाव से तरंगित एक भावनात्मक यात्रा करने लगता है। ऐसी ही विधा एवं तकनीक के एक कुशल चित्रकार है, लखनऊ के श्री भूपेंद्र कुमार अस्थाना। इन्होंने लखनऊ स्थित ‘कला एवं शिल्प महाविद्यालय’ से स्नातक तथा स्नातकोत्तर डिग्री ‘छापा कला’ विषय में प्राप्त की है।
भूपेंद्र मूलतः आजमगढ़ के निवासी हैं। परंतु संप्रति लखनऊ में रहते हुये अपनी कलाकृतियों का सृजन कर रहें हैं। भूपेंद्र से मैं काफी समय से परिचित हूँ। उनकी कई कृतियों को सृजन के समय भी देखी है। भूपेन्द्र के आरंभिक दौर के कार्यों में आकारो का उद्भव एवं छापा कला के प्रभाव वाले स्याह रंग में तकनीक एवं संयोजन का प्रभाव ज्यादा दिखाई देता है। लेकिन कालांतर में स्याह रंगों के तान धीरे धीरे अलंकरण युक्त रेखाओं का रूप लेते गए और भाव का निरूपण अधिक प्रबल होता गया। सुंदर रेखाओं द्वारा विषयानुरूप भावपूर्ण आकारों का सृजन दिखाई देता है। विषय अभी भी प्रतीकात्मक रूप से संवाद करते दिखाई देते हैं।
भूपेंद्र ने कृतियों में विषय के रूप में समाज के दोहरे चरित्र वाले को मुखौटों में छुप कर अधिपत्य जमाए बैठी शक्तियों को उद्घाटित एवं प्रस्तुत करना ही चुना है। इनके चित्रों में एक आकार सर्वाधिक दिखाई देता है वो है बिल्ली का जो यहाँ एक मुखौटे का प्रतीकात्मक रूप है। शेष शरीर मानवाकृति के समान होती है। उनकी आकृतियाँ अलग-अलग भाव भंगिमाओं को धारण किए, खड़े, बैठे या बिल्ली की तरह चौपाये बन चलते हुये दिखाई देते है। भूपेन्द्र का स्वयं कहना है कि बिल्ली जो मुंह के अंदर मछली पकड़े हुये है। यह उसका सहज स्वाभाव है। और समाज में बिल्लियाँ एक सरल, अहिंसक एक सुंदर पालतू जानवर के रूप में पाली जाती है। परंतु वहीं एक दूसरा व्यवहार भी है जहां बिल्लियाँ अपना भोजन एक हिंसक व्यवहार से भी प्राप्त करती हैं। यह उनका प्राकृतिक स्वाभाव है।
ऐसे में बिल्लियों का दोहरा चरित्र, जो उनके स्वाभाव का हिस्सा है, कभी कभी दिखाई देता रहता है। समाज के बहुत से लोग ऐसे मुखौटो को धारण किए दिखते हैं। परंतु उनका मूल चरित्र कहीं न कही प्रगट हो ही जाता है। ऐसे विषम स्वभाव वाले हिंसक शक्तियों का विरूपण अक्सर भूपेंद्र के चित्रों का विषय बनती रहती हैं। साथ ही अलंकृत रेखाओं का एक सुंदर संयोजन कौतूहल के रूप में सृजित होती रहती हैं। चित्रकार भूपेंद्र कि रचना में चल रही विसंगतियो का प्रतीकात्मक अंकन दिखता है। समाज के दोहरे चरित्र को धारण किए लोगों के मुखौटो के पीछे छिपे मनोभावों का एक सुंदर प्रस्तुतिकरण देखने को मिलता है।
भूपेंद्र की कृतियों की रचनात्मकता की बात करे तो रंगीन सुसज्जित रेखाएँ कभी काली रेखाएँ छापा कला के संरचनात्मक संयोजन से विषय को एक उत्सुकता प्रदान करती है। साथ अलंकृत रेखांकन की रंजकता समकालीन कला में एक नवीनता प्रदान करती है।
भूपेन्द्र का कलाकार होने के साथ साथ कला लेखन, प्रोत्साहन एवं अन्य कला गतिविधियों में सहयोग तथा सहभागी करना उनके दैनिक चर्या का हिस्सा है।
-गिरीश पाण्डेय (मूर्तिकार)
सहायक प्राध्यापक,
वास्तु कला एवं योजना संकाय, अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय, उ. प्र.