‘बुद्धि का काम हमें सुनिश्चित करना होना चाहिए; वहीँ कला का काम है कि हमें अनिश्चित बनाये।’
‘मेरे लिए खंडहर या मलबा एक शुरुआत है। मलबे से आप नए विचारों का निर्माण कर सकते हैं। ये एक नयी शुरुआत के प्रतीक हैं।’
‘इतिहास लोगों द्वारा ही बनाया जाता है। वे जिनके पास शक्ति होती है और जिनके पास शक्ति नहीं होती है वे भी। हम में से प्रत्येक व्यक्ति इतिहास बनाता है।’
‘सवाल है कि कलाकार क्या करता है? वह एक को दूसरे से जोड़ता है। वह अदृश्य धागों को के सहारे चीजों को आपस में बांध देता है। वह इतिहास में गोता लगाता है, चाहे वह इतिहास मानव जाति का हो, हमारी पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास हो या ब्रह्मांड की शुरुआत और अंत की दास्ताँ।’
ये कुछ चर्चित कथन हैं उस कलाकार के जिसे हम आन्सेल्म किफ़र के नाम से जानते हैं। जिसके रचना संसार की व्यापकता हमें चौंकाती है, तो वहीँ इतिहास को पुनर्व्यख्यायित करते उनके बिम्ब हमें झकझोरती भी है। द्वितीय विश्व युद्ध के समापन महीनों के दौरान पैदा हुए, आन्सेल्म किफ़र (जन्म 8 मार्च 1945) एक जर्मन चित्रकार और मूर्तिकार हैं। किफ़र अपनी कलाकृतियों में जर्मनी युद्ध के दौर की पहचान और इतिहास को दर्शाते हैं, जो नाज़ी दौर की थर्ड राईच की अवधारणा की विद्रूपताओं से जुड़ा रहा है। कला और साहित्य, पेंटिंग और मूर्तिकला को मिलाते हुए, किफ़र अपनी कलाकृतियों में इतिहास की जटिल घटनाओं और जीवन-मृत्यु के साथ-साथ जर्मन महाकाव्यों में वर्णित ब्रह्मांड के रहस्यों को संलग्न करते हैं। अपनी इस असीम कल्पना शक्ति को साकार करने की उत्कृष्ट क्षमता उनके कलाकृतियों में स्पष्ट परिलक्षित होती है।
1960 के दशक के अंत में उन्होंने पीटर ड्रेहर और होर्स्ट एंटिस के साथ कला अध्ययन किया। अपनी कलाकृतियों के निर्माण में किफ़र पुआल, राख, मिट्टी, सीसा और शंख जैसी सामग्री शामिल करते है। पॉल सेलन की कविताओं ने उन्हें जर्मन इतिहास में घटित होलोकॉस्ट की भयावहता का अहसास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही “कबला’ की आध्यात्मिक अवधारणाओं की समझ भी पैदा की।
बताते चलें कि कबला या कबाला जिसे “रहस्यवाद” या “गुप्त ज्ञान” के रूप में भी वर्णित करते हैं, यहूदी परंपरा का एक हिस्सा है जो भगवान के सार से संबंधित है। कबालीवादियों का मानना है कि भगवान बेहद रहस्यमय हैं। हालाँकि, कबालीवादी यह भी मानते हैं कि उस आंतरिक, रहस्यमय प्रक्रिया का सच्चा ज्ञान और समझ हासिल की जा सकती है, और उस ज्ञान के माध्यम से, ईश्वर के साथ अंतरंगता बनायीं जा सकती है। या कहें कि ईश्वर के निकट पहुंचा जा सकता है। जिस ग्रन्थ को इस विचार धारा का आधार माना जाता है वह रहस्यमय टिप्पणियों का एक संग्रह है। जिसे मध्ययुगीन हिब्रू में लिखा गया है, ज़ोहर नमक इस ग्रन्थ का उद्देश्य कबालीवादियों को उनकी उस आध्यात्मिक यात्रा में मार्गदर्शन करना है, जिसके जरिये वे अपने आराध्य से जुड़ सकते हैं।
अपनी कलाकृतियों के माध्यम से किफ़र बेधड़क होकर इतिहास के उस भयावह दौर को भुलाने या छुपाने के बजाय संबोधित करते हैं, जिस पर चर्चा से सामान्य तौर पर बचा जाता है। नाजी शासन की क्रूरता की कहानियां और उसके पात्र यहाँ विशेष रूप से उनके काम में परिलक्षित होते हैं; उदाहरण के लिए उनकी दो सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग, योर गोल्डन हेयर एवं मार्गरेट और सुलामिथ, सेलन की सबसे प्रसिद्ध कविता, डेथ फ्यूग्यू (टोड्सफ्यूज) से प्रेरित थी। जिसके माध्यम से उस कुख्यात कंसंट्रेशन कैंप की बेचैन करने वाली छवि दर्शायी गयी है। बताते चलें कि किफ़र ने पॉल सेलन की उस कविता को जर्मनी के भयावह अतीत में बरती गयी प्रलय जैसी क्रूरता को रूपायित करने की प्रेरणा के तौर पर स्वीकारा है। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी इन कलाकृतियों को सेलन को ही समर्पित भी किया है।
यह सब दरअसल किफ़र द्वारा अतीत की भयावहता को दुहराने के बजाय उसे सुधारने या संशोधित करने की कोशिश के तौर पर हमारे सामने है। कला समीक्षकों द्वारा उनकी कलाकृतियों को नए प्रतीकवाद और नव-अभिव्यक्तिवाद के आंदोलनों से जोड़ा गया है। किफ़र 1992 से ही फ्रांस में निवास करते हुए सृजनरत रहे। किन्तु 2008 से अब उन्होंने महानगर पेरिस को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया है । 2018 में, उन्हें ऑस्ट्रियाई नागरिकता से भी सम्मानित किया गया।
नोट: किफ़र एवं उनकी कलाकृतियों के कुछ चित्र गूगल के सौजन्य से ..
-सुमन कुमार सिंह