वैसे तो दावे से यह नहीं कहा जा सकता कि बिहार की कला में आधुनिकता के समावेश का वर्ष कौन सा था। किन्तु अभी तक जो जानकारी मिल पायी है उसके आधार पर यही कहा जा सकता है कि कला गुरु बटेश्वर नाथ श्रीवास्तव को यह श्रेय जाता है। विदेश से अपनी वापसी के बाद उन्होंने अपने छात्रों में क्यूबिज़्म यानी घनवाद के प्रति रुझान पैदा किया। जैसा कि उनके शिष्य रहे भुवनेश्वर यादव (सत्र 1954 -59 ) बताते हैं। उसी सत्र में उनके सहपाठी रहे सत्यनारायण लाल की यह “गोदना वाली” शीर्षक कलाकृति है। जलरंग माध्यम की इस कृति का निर्माण वर्ष है 1957। अपनी कला यात्रा के बारे में वर्ष 2017 में आयोजित अपनी एकल प्रदर्शनी के कैटलॉग में सत्यनारायण लाल लिखते है –
उम्र के आठवें दशक में जब अपनी कला यात्रा के संघर्षमय जीवन के उतार-चढाव एवं बाधायुक्त अतीत की ओर देखता हूँ तो बीती – बातें ताज़ा हो जाती हैं। पटना सिटी की तंग गलियों की मिटटी की सोंधी खुश्बू में मेरा कलाकार मन प्रस्फुटित होने लगा। इसी मिटटी से पटना कलम पेंटिंग विश्व विख्यात थी, जो धीरे-धीरे अंतिम सांसे ले रही थी। इसी क्रम में चौघड़ा स्थित मेरे पडोसी अख्तर हुसैन साहब जो पटना कलम पेंटिंग शैली में हाथी के दांत पर पोर्ट्रेट किया करते थे, उनके पास मैं घंटों बैठकर पोर्ट्रेट बनाते देखते रहता था। प्रथम उस्ताद के रूप में उन्हीं से प्रेरणा मिली और मैं पोर्ट्रेट पेंटिंग करने लगा।
बहरहाल सत्यनारायण लाल जी बढ़ती उम्र की किंचित समस्यायों के बावजूद लगभग स्वस्थ एवं सानंद हैं, और सपरिवार पटना सिटी एवं पाटलिपुत्र कॉलोनी स्थित आवास पर रह रहे हैं। ऐसे में उनके ऊपर वर्णित वक्तव्य के आधार पर एक सवाल तो यही बनता है कि आखिर किस आधार पर यह मान लिया गया कि पटना कलम शैली सिर्फ कायस्थों की कला थी। जबकि आज यह भी जानकारी उपलब्ध है कि एलिजा इम्पे के प्रसिद्ध “इम्पे एल्बम” के प्रमुख चित्रकार शेख जैनुद्दीन ने वर्ष 1777–1782 में इसे चित्रित किया था। जिसे कंपनी शैली के शुरुआती चित्रों में शुमार किया जाता है। इन शेख जैनुद्दीन के बारे में आज इतनी जानकारी तो है ही कि तब इन्हें पटना से कोलकाता बुलाया गया था। इस एल्बम के चित्रों के निर्माण में उनके सहायक थे भवानी दास तथा रामदास। विदित हो कि इसी कंपनी शैली से जुड़ा है पटना कलम शैली के आरम्भ का इतिहास भी। दुर्भाग्य से आज ज़ैनुद्दीन, भवानी दास एवं राम दास के बारे में हमें जो भी जानकारी मिलती है या मिल रही है वह ब्रिटेन के कला इतिहसकारों के हवाले से। जबकि बिहार का कला-इतिहास क्या इतिहास भी इस हवाले से मौन ही है। या कहें कि इसकी खोज-खबर आज लेगा भी तो कौन ? क्योंकि बिहार की सरकारी संस्थाओं या सरकार की ऐसी कोई रूचि तो हैं नहीं और निजी क्षेत्र में इस तरह के किसी शोध संस्थान की कल्पना भी कहीं नहीं दिखती है। जिन कुछ निजी प्रयासों को कला के क्षेत्र में आज हम देख पा रहे हैं उनकी प्राथमिकता मिथिला और आधुनिक या समकालीन कला के किंचित चर्चित नामों के इर्द-गिर्द ही घुम रही है। विगत वर्षों में पटना कलम पर कुछ पुस्तकें भी सामने आयीं हैं, लेकिन अभी तक मेरे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि उनमें ज़ैनुद्दीन एवं उनके शागिर्दों का कहीं कोई ज़िक्र भी है।
शायद भविष्य में ऐसा कुछ हो पाए यानी पटना कलम शैली के इन खो चुके पदचिन्हों की पहचान मुमकिन हो जाये। इसी उम्मीद के साथ प्रस्तुत है सत्यनारायण लाल जी द्वारा निर्मित चित्र एवं उनका एक आत्मचित्र (फोटो), इस कामना के साथ कि आदरणीय सत्यनारायण लाल जी जैसों की छत्रछाया हमारी पीढ़ियों पर बनी रहे। विदित हो कि सत्यनारायण लाल जी का जन्म मोहल्ला- हज़ारी, पटना सिटी में 12 अक्टूबर 1939 को हुआ था।