पहली नज़र में यूं तो बारूद का रिश्ता युद्ध या ध्वंस से ही जुड़ता नज़र आता है, इससे इतर अगर बात करें तो ख़ुशी या त्यौहार के मौकों पर किये जानेवाली आतिशबाज़ी की चर्चा भी की जा सकती है। विदित हो कि हमारा ज्ञात इतिहास हमें यही बताता है कि 9वीं शताब्दी ईस्वी में तांग राजवंश के दौरान चीन में बारूद का अविष्कार हुआ। इसके सदियों बाद 1083 ईस्वी में सोंग राजवंश के समय में ऐसे तीर तैयार किये गए जिसके जरिये आग बरसाया जा सकता था। और बाद में 12 वीं शताब्दी आते आते बम और पहली प्रोटो-गन, जिसे “फायर लांस” के रूप में जाना जाता है, तैयार किया गया। जिसका उपयोग पहली बार जिन-सोंग युद्धों के दौरान सोंग की सेना द्वारा किया गया। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी कलाकृति के लिए इसके उपयोग के बारे में किसी ने सोचा भी। अब अगर हम कहें कि बारूद से सृजित किसी कलाकृति को एक साथ एक ही समय में दुनिया भर के एक अरब लोगों द्वारा एक साथ देखा गया, तो क्या आप विश्वास करेंगे ? शायद आपका भी उत्तर नहीं या अविश्वसनीय ही होगा, लेकिन सच तो यह है कि हो सकता है कि उसे देखने वालों में आप भी शामिल रहे हों। अगर आप भी खेलप्रेमी हैं और 2008 के बीजिंग ओलिंपिक का भव्य उद्घाटन समारोह का वैश्विक प्रसारण आपने भी अपने टेलीविजन पर देखा है, तो यकीन मानिये आप भी उन एक अरब दर्शकों में से एक हैं।
अपने अनूठे कलात्मक प्रयोगों या सृजन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित एवं प्रशंसित इस “विस्फोटक कलाकार” का नाम है काई गुओ-कियांग। वह मानव इतिहास के एकमात्र ऐसे कलाकार हैं, जिसने अपनी किसी कलाकृति को लगभग एक अरब लोगों के साथ देखा है। आपने सही पढ़ा, एक अरब। यहाँ हम दुनिया भर में टेलीविजन पर प्रसारित उस “आतिशबाजी मूर्तिकला” के बारे में बात कर रहे हैं, जिसे चीन में जन्मे और अब अमेरिका में रह रहे इस विलक्षण कलाकार काई गुओ-कियांग ने 2008 में बीजिंग ओलंपिक के उद्घाटन के लिए तैयार किया था। इस विस्फोट घटना में 29 विशाल पदचिह्नों वाली आतिशबाजी की एक श्रृंखला शामिल थी, जिसमें बीजिंग के आसमान पर एक-एक कर ये पदचिह्न राष्ट्रीय ओलंपिक स्टेडियम की ओर बढ़ते दिखाए गए थे। इस पूरे प्रदर्शन की अवधि की बात करें तो यह सब कुछ मात्र 63 सेकंड की अवधि में सिमट चूका था। यानी बस पलक झपकने भर की देर में ये कारनामा अंजाम हो चूका था।
काई गुओ-कियांग का जन्म 1957 में चीन के फ़ुज़ियान प्रांत के क्वानझोउ में हुआ था। उनके पिता, काई रुइकिन, एक सुलेखक और पारंपरिक चित्रकार थे, जो एक किताबों की दुकान में काम करते थे। नतीजतन, कियांग को पश्चिमी साहित्य के साथ-साथ पारंपरिक चीनी कला की शिक्षा बचपन से ही मिलती रही। एक किशोर के रूप में कियांग ने चीन कि सांस्कृतिक क्रांति के सामाजिक प्रभावों को पहली बार करीब से न केवल देखा, व्यक्तिगत रूप से उन प्रदर्शनों और परेडों में भाग भी लिया। वह एक ऐसे वातावरण में पले-बढ़े जहां बारूद से विस्फोट सामान्य बात थी, अब वो विस्फोट चाहे तोप अथवा बंदूक का हो या जश्न मनाने वाली आतिशबाजी का। संभवतः इसी क्रम में उन्होंने यह समझा कि बारूद का इस्तेमाल अच्छे और बुरे दोनों तरह से यानी विनाश और पुनर्निर्माण के लिए किया जा सकता है। इतना ही नहीं अपनी किशोरावस्था में कियांग ने दो मार्शल आर्ट फिल्मों, द स्प्रिंग एंड फॉल ऑफ ए स्मॉल टाउन और रियल कुंग फू ऑफ शाओलिन में अभिनय भी किया। बाद में उन्होंने 1981 से 1985 तक शंघाई थिएटर अकादमी में मंच डिजाइन का अध्ययन किया। इस अनुभव ने जहाँ कियांग को मंच के अनुशासन और संभावनाओं की अधिक व्यापक समझ और रंगमंच की स्थानिक व्यवस्था को समझने का अवसर दिया। वहीँ अन्तरक्रियाशीलता एवं टीम वर्क की महत्ता से भी परिचित कराया।
1986 से 1995 तक जापान में रहने के दौरान, काई गुओ-कियांग ने अपने चित्रों में बारूद के उपयोग की संभावनाओं और परिणामों पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। अब उनके कला अभ्यास में बारूद का उपयोग लगभग अनिवार्य होता चला गया। यद्यपि उनकी आतिशबाजी वाली यह अभिव्यक्ति चीनी संस्कृति के तत्काल संकेतक थे, किन्तु काई का उद्देश्य इन सीमाओं को पार कर दर्शकों और अपने आसपास की दुनिया के बीच संवाद स्थापित करना भी था। उनका साइट-विशिष्ट कार्य यानी किसी खास स्थान को केंद्रित कर किया गया कला प्रदर्शन उस शहर या क्षेत्र विशेष की संस्कृति या इतिहास की ओर संकेत करता है, जैसे कि1995-96 में आयोजित की गई उनकी “द सेंचुरी विद मशरूम क्लाउड्स: प्रोजेक्ट फॉर द ट्वेंटीथ सेंचुरी” शीर्षक प्रज्वलन की एक श्रृंखला में उन्होंने परमाणु बम को अपने विमर्श के केंद्र में रखा।
यूं तो काई की कलाकृतियों की आकृतियां मुख्य रूप से पारंपरिक चीनी संस्कृति से प्रेरित थे। किन्तु उनकी कलाकृतियों में राजनीतिक विषयों को भी हम समाहित पाते हैं। एक छात्र के रूप में कियांग ने तैल रंगों और जले हुए बारूद से निर्मित डंडीनुमा-आकृति जिसे हम कला में रैखिक आकृति कहते हैं के साथ अमूर्त पैटर्न व रूपाकारों को भी समाहित किया।
1990 में, काई ने एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल्स (लोकोत्तर) के लिए प्रोजेक्ट्स शुरू किए, जिसमें आतिशबाजी और धधकते बारूद के व्यापक पगडण्डी का उपयोग करना शामिल था। जिसे किसी विशाल भवन या भूभाग पर प्रदर्शित या संस्थापित किया जाता था। इस कड़ी में उल्लेखनीय है उनका एक और साइट-विशिष्ट इंस्टालेशन जिसे चीन की महान दीवार पर दस हज़ार मीटर की लम्बाई में अंजाम दिया गया था। इस विशाल परियोजना या इंस्टालेशन का शीर्षक था “एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल्स नंबर 10 (1993) ” इसमें शामिल था लगभग छह मील लंबा बारूद से तैयार फ्यूज शामिल। जो जलाए जाने के बाद लगभग 15 मिनट तक जलता रहा था, जिससे टीलों के पार एक ड्रैगन जैसा पैटर्न निर्मित हुआ जो चीन की शाही और पौराणिक विरासत का संकेत था।
2004 में कियांग ने “इनोपपोर्ट्यून: स्टेज वन” और “इनोपपोर्ट्यून: स्टेज टू” यानी असामयिक या बेवक्त एक और दो को मैसाचुसेट्स म्यूजियम ऑफ कंटेम्पररी आर्ट में इन्सटॉल किया। इस इंस्टालेशन या संस्थापन को बाद में 2008 में न्यूयॉर्क के गुगेनहाइम संग्रहालय में दोहराया गया था। इस संस्थापन का विवरण तब कुछ इन शब्दों में सामने आया था – “300 फुट लंबी गैलरी से नौ कारें टकराईं और बीच हवा में रुक गईं, मानो स्टॉप-एक्शन मोड में हों। साथ ही दृष्टिगत थीं चमकदार बहुरंगी रोशनी के साथ स्पंदन करते हुए, कार से निकलने वाली लंबी पारदर्शी छड़ें। इस तरह एक विस्फोटक क्षण किसी सपने की तरह हमारे सामने घटित हुआ जिसमें इन कारों ने कियांग द्वारा इनोपपोर्ट्यून (असामयिक या बेवक्त) को केंद्रबिंदु बनाया गया। इस प्रदर्शन के दूसरे हिस्से में बगल की गैलरी में नौ यथार्थवादी बाघ को हवा में मँडराते हुए दिखाया गया, जिनमें से प्रत्येक को सैकड़ों तीरों से छेदा गया था। यह प्रदर्शन केंद्रित था 13वीं सदी की एक प्रसिद्ध चीनी कहानी से जिसे वू सोंग नाम के एक व्यक्ति के बहादुरी की कहानी के तौर पर वर्णित किया जाता है, जिसमें उसने आदमखोर बाघ को मारकर एक पूरे गांव को उस बाघ के आतंक से मुक्ति दी थी। वहीँ एक तीसरे स्थान में, आतिशबाजी से भरी एक भुतहा कार रात में टाइम्स स्क्वायर जैसे दीखते स्थान पर मंडराता रहा। या कहें कि हवा में तैरती रही। कुल मिलाकर यह संस्थापन या इंस्टालेशन हमारी अस्थिर दुनिया की कुछ अलग अलग छवियों को शामिल करते हुए, एक नाटकीय घटनाक्रम के माध्यम से मनोवैज्ञानिक रूप से एक विशेष परिवेश को सृजित किया। जिसमें आतंकवाद और सांस्कृतिक, धार्मिक संघर्ष, हिंसा और सुंदरता एवं वीरता के अर्थ जैसे हमें प्रभावित करने वाली कुछ सबसे अधिक दुविधाओं और अंतर्विरोधों को एक साथ प्रतिबिंबित किया गया था।”
-सुमन कुमार सिंह