यूं तो अपने देश से मूर्तियों की तस्करी की घटनाएं हम सुनते ही रहते हैं। किन्तु कुछ कला प्रेमियों एवं सरकार के प्रयासों से मूर्तियों की वापसी की प्रक्रिया, निःसंदेह सुखद अहसास वाली घटना कही जा सकती है। हाल में जिस प्रतिमा की वापसी सुर्ख़ियों में है वह है कनाडा से माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा। इस वापसी में भारतीय मूल की जिस कनाडाई कलाकार की केंद्रीय भूमिका है, आईये जानते हैं उस कलाकार के बारे में। लेकिन उससे पहले मौजूदा घटनाक्रम पर एक नज़र :-
लगभग 100 साल पहले वाराणसी से चुराई गई और हाल ही में कनाडा से प्राप्त की गई देवी अन्नपूर्णा की 18 वीं शताब्दी की मूर्ति अब बनारस में पुनः स्थापित हो चुकी है। विदित हो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 15 अक्टूबर को नई दिल्ली में इस प्रतिमा को प्राप्त किया था। यह प्रतिमा वर्षों से कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ रेजिना के मैकेंज़ी आर्ट गैलरी के संग्रह का हिस्सा बन चूका था। जिसे भारत सरकार की पहल पर विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा पिछले साल ओटावा (कनाडा) में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया को सौंपा गया था। प्रतिमा की प्राप्ति के उपरांत केंद्रीय मंत्री रेड्डी ने कहा, “हमें कनाडा से देवी माँ अन्नपूर्णा देवी की एक मूर्ति मिली है। हमने कनाडा के रेजिना विश्वविद्यालय के मैकेंज़ी आर्ट गैलरी में एक इंडो-कनाडा कलाकार के माध्यम से मूर्ति की पहचान की। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा से मूर्ति को वापस लाने के प्रयास किए। हमारे प्रधानमंत्री ने कनाडा के प्रधान मंत्री से फोन पर बात की और मूर्ति को वापस करने का अनुरोध किया; क्योंकि यह प्रतिमा हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी वहां से मूर्ति वापस लाने के लिए कनाडा सरकार से संपर्क किया।”
दिव्या मेहरा का एक इंस्टालेशन शिल्प
दरअसल देवी अन्नपूर्णा की यह प्रतिमा 100 साल पहले वाराणसी के एक घाट से चोरी हो गई थी। बीते 100 साल से यह प्रतिमा यूनिवर्सिटी ऑफ रेजिना के मैकेंजी आर्ट गैलरी का हिस्सा थी। विश्वविद्यालय ने बताया कि आर्टिस्ट दिव्या मेहरा ने सबसे पहले इस मूर्ति की ओर सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि 100 साल पहले इस मूर्ति को गलत तरीके से कनाडा लाकर मैकेंजी के संग्रहालय में शामिल किया गया है, जिसके बाद कनाडा सरकार ने इसे लौटाने का फैसला किया। दरअसल 2019 में, विन्निपेग, कनाडा की कलाकार दिव्या मेहरा ने अपनी एक प्रदर्शनी की तैयारियों के सिलसिले में शोध करते हुए भगवान विष्णु के तौर पर चिन्हित इस प्रतिमा को देखा। जो उन्हें पहली नज़र में महिला की प्रतिमा लगी, जिसमें प्रतिमा के एक हाथ में खीर की कटोरी और दूसरे हाथ में चम्मच था। उपलब्ध अभिलेखों से वे इस निष्कर्ष पर पहुंची कि यह मूर्ति 1913 में वाराणसी के एक मंदिर से चोरी हो गई थी। इसके बाद पीबॉडी एसेक्स संग्रहालय, यूएस में भारतीय और दक्षिण एशियाई कला के क्यूरेटर सिद्धार्थ वी शाह ने पुष्टि की कि यह प्रतिमा मां अन्नपूर्णा की है। आर्टिस्ट दिव्या मेहरा को पता चला कि नार्मन मैकेंजी 1913 में भारत आया था और तभी उसने देवी अन्नपूर्णा की इस प्रतिमा को देखा था। बाद में यह प्रतिमा तस्करी के जरिये मैकेंजी तक पहुंचाई गयी थी, मैकेंजी ने वर्ष 1936 में इस मूर्ति की वसीयत कराई और संग्रहालय में शामिल कर लिया। जब दिव्या का इस मूर्ति के बारे में पर्याप्त जानकारी मिल गयी तब उन्होंने अवैध रूप से इसे कनाडा लाए जाने का मुद्दा उठाया। वैसे तो तय कार्यक्रम के तहत दिसंबर 2020 में ही इस प्रतिमा के दिल्ली पहुँच जाने की उम्मीद थी, लेकिन कोविड -19 जैसी वैश्विक महामारी की वजह से इस वापसी में देरी हुयी।
तो आईये जानते हैं कुछ बातें उस कलाकार दिव्या मेहरा के बारे में जिनकी पहल से यह ऐतिहासिक कार्य संपन्न हुआ। भारतीय मूल की दिव्या मेहरा विन्निपेग, मैनिटोबा की एक कनाडाई कलाकार हैं।मेहरा की कलाकृतियां उनके प्रवासी अनुभवों और ऐतिहासिक कथाओं से संबंधित रहती हैं । उनका जन्म 1981 में कनाडा के विन्निपेग में हुआ था। उन्होंने 2005 में विन्निपेग में यूनिवर्सिटी ऑफ मैनिटोबा स्कूल ऑफ आर्ट से विजुअल आर्ट्स में बीएफए (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की और 2008 में न्यूयॉर्क सिटी में कोलंबिया यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ आर्ट्स से विजुअल आर्ट्स में एमएफए यानि मास्टर डिग्री ली।
दिव्या मेहरा की एक अन्य कलाकृति
अपनी कलाकृतियों को रचने के क्रम में मेहरा मूर्तिकला, छापाचित्र, रेखाचित्र, इंस्टालेशन, विज्ञापन, प्रदर्शन, वीडियो और फिल्म सहित कई माध्यमों का इस्तेमाल करती हैं। अपनी कलाकृतियों में वह अक्सर हास्य-विनोद को प्रमुखता से उद्धृत करती है, उनका कहना है – “हास्य हर कोई समझ सकता है, यह हर कहीं अपनी जगह आसानी से बना लेता है क्योंकि यह वास्तव में सबसे सुलभ चीज है और इसलिए यह मेरी अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। वह सवाल करती है – “मैं दौड़ और प्रतिनिधित्व जैसी जटिल चीज़ के बारे में बातचीत कैसे कर सकती हूं? प्रवासी भारतीयों के बीच एक कलाकार के रूप में अपने कलात्मक अनुभव के साथ कॉमिक्स और सोशल मीडिया जैसे लोकप्रिय माध्यम को जोड़कर, वह उत्तेजक लेकिन विनोदी काम करती है। जो दर्शकों की रूढ़िवादिता को चुनौती देते हुए विविधता, उपनिवेशवाद और जातिवाद जैसे मुद्दों को सामने लाती है। मेहरा की कलाकृतियां उनके प्रतिरोध की अभिव्यक्ति हैं – जो दर्शकों की जरूरतों व इच्छाओं को पूरा कर उन्हें संतुष्ट करती हैं। दिव्या मेहरा कहती हैं, ”मेरे लिए कॉन्सेप्ट मीडियम से पहले आता है।” मेहरा को उनके टेक्स्ट आधारित कलाकृतियों के लिए जाना जाता है। यानी अपनी कलाकृतियों में वे शब्दों और वाक्यों के संयोजन को सामने लाती हैं। कला समीक्षक नताली हदद ने दिव्या की एक हालिया प्रदर्शनी के सिलसिले में उनके बारे में लिखा है – “जातिवाद के इस समय में, मेहरा का काम आलोचनात्मक प्रतिबिंब को प्रोत्साहित करता है। यह सामूहिक ‘हम’ को फिर से परिभाषित करता है, न केवल एक दमनकारी बहुमत के खिलाफ प्रतिरोध की आवाज के रूप में, बल्कि आवाजों की उस बहुलता के रूप में जो वास्तविक बहुमत बनाती है।” बहरहाल हम आभारी हैं दिव्या की उस पहल का, जिसकी वजह से अन्नपूर्णा की कलाकृति आज फिर से हमारे बीच है।