“एक बार पिकासो से पूछा गया कि उनकी पेंटिंग्स का क्या मतलब है। उन्होंने कहा, “क्या आप कभी जानते हैं कि पक्षी क्या गा रहे हैं? आप नहीं जानते हैं। लेकिन फिर भी उसे सुनते हैं। ” तो यही बात कला के साथ भी होता है, इसलिए बस देखना ही महत्वपूर्ण होता है।”
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“बहुत पहले ही, मैं यह समझ गयी थी कि मैं केवल उन चीज़ों से सीखती हूँ जो मुझे पसंद नहीं हैं। यदि आप अपनी पसंद की चीजें ही करते रहते हैं, तो आप वही बकवास दुहराते रहते हैं। ऐसे में आपको हमेशा गलत आदमी से प्यार हो जाता है। क्योंकि आप कोई बदलाव नहीं लाते है। अपनी पसंद की चीजें करना बहुत आसान है। लेकिन बात यह है कि आप जिस किसी चीज या बात से डरते हैं, तो आगे बढ़कर उसका सामना करें। तभी आप एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।”
अब सवाल उठता है कि ऐसा करने की लागत क्या आती है?
” तो इसका जवाब है बहुत। ढेर सारा अकेलापन, मेरे प्यारे। यदि आप एक महिला हैं, तो किसी के साथ संबंध स्थापित करना लगभग असंभव है। नारी को हमेशा नाजुक और आश्रित होने की यह भूमिका निभानी पड़ती है। और यदि आप ऐसा नहीं करती हैं, तो वे आप पर मोहित तो होते हैं, लेकिन केवल थोड़ी देर के लिए। और फिर वे आपको बदलना चाहते हैं और आपको मसल डालना चाहते हैं। अंत में फिर वे आपको छोड़कर चले जाते हैं। तो ऐसे आपके हिस्से आते हैं होटल के एकाकी कमरे, मेरी जान।”
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“सांसों को नियंत्रित करना मन को नियंत्रित करना है। सांस लेने के विभिन्न तरीकों के साथ, आप प्यार में पड़ सकते हैं, आप किसी से नफरत कर सकते हैं, आप अपनी सांसों को बदलकर भावनाओं के पूरे इंद्रधनुष को महसूस कर सकते हैं।”
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“आप जो कर रहे हैं वह महत्वपूर्ण नहीं है। वास्तव में जो महत्वपूर्ण है वह है मन की वह अवस्था जिस दौरान आप अपना प्रदर्शन करते हैं।”
उन्हें प्रदर्शन कला की दादी कहा जाता है या यूं कहें कि चार दशकों से अधिक समय तक इस विधा में अपनी सक्रियता के कारण, अब्रामोविक खुद को “प्रदर्शन कला की दादी” कहलाना पसंद करती हैं। मरीना अब्रामोविक (जन्म 30 नवंबर, 1946) एक सर्बियाई वैचारिक और प्रदर्शन कलाकार, लेखक और फिल्म निर्माता हैं। अपने कलात्मक प्रदर्शन विशेषकर बॉडी आर्ट के माध्यम से वे कलाकार और दर्शकों के बीच के संबंधों के साथ साथ शरीर की सीमाओं और मन की संभावनाओं की पड़ताल सामने लाती हैं। उन्होंने “दर्द, रक्त और शरीर की शारीरिक सीमाओं का सामना करने” पर ध्यान केंद्रित करते हुए, दर्शकों की भागीदारी से कला में एक नयी अवधारणा को स्थापित किया है। 2007 में, उन्होंने मरीना अब्रामोविक इंस्टीट्यूट (MAI) की स्थापना की, जो प्रदर्शन कला के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन है।
मरीना अंतर्राष्ट्रीय कला जगत में सबसे पहले अपने जिस प्रदर्शन से चर्चा में आयीं, उसका शीर्षक था “रिदम”। वर्ष 1974 में कलाकार और दर्शकों के बीच संबंधों की सीमाओं का परीक्षण करने के लिए, अब्रामोविक ने अपने सबसे चुनौतीपूर्ण प्रदर्शन को अंजाम दिया। उसने खुद के लिए एक निष्क्रिय भूमिका चुनी, जिसमें जनता यानि दर्शकों को उनके ऊपर प्रयोग करना था। इस प्रयोग के लिए अब्रामोविक ने एक मेज पर 72 विभिन्न वस्तुओं को रखा। जिन वस्तुओं में शामिल था गुलाब का एक फूल, एक पंख, शहद, एक चाबुक, जैतून का तेल, कैंची, एक छुरी, एक बंदूक और एक गोली भी। दर्शकों को आमंत्रित किया गया कि वे इनमें से अपनी पसंद की किसी भी वस्तु को मरीना के शरीर पर अपने तरीके से आजमाएं। इस क्रम में हुए किसी भी नुकसान या चोट के लिए वह दर्शक उत्तरदायी नहीं होगा। अब इन वस्तुओं में कुछ तो ऐसी थीं जो आनंद दे सकती थीं, वहीँ कुछ अन्य ऐसे भी थे जिसके जरिये असहनीय दर्द या पीड़ा भी दी जा सकती थी । यानि उनसे गंभीर नुकसान भी पहुँचाया जा सकता था।
छह घंटे तक लगातार कलाकार ने दर्शकों में से किसी को भी बिना किसी परिणाम की चिंता किये बगैर अपने शरीर से खेलने की अनुमति दी। उनके इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य था यह जानना कि जब किसी कार्य के लिए कोई रोकटोक नहीं हो तो ऐसे में कोई मनुष्य कितना संवेदनशील या आक्रामक हो जा सकता है । पहले तो दर्शकों ने कुछ खास पहल नहीं दिखाई वे लगभग निष्क्रिय से ही रहे। लेकिन जैसे-जैसे उन्हें यह अहसास होने लगा कि उनके करने की कोई सीमा नहीं है, यानि वे जो चाहें जैसा चाहें कर सकते हैं तो हिंसा या क्रूरता बढ़ती चली गयी। प्रदर्शन के अंत तक आते आते स्थिति यह हुयी उसके शरीर के वस्त्र फाड् डाले गए, उसपर हमला किया गया, और इस तरह से उसे एक जीवित व्यक्ति के बजाय उसके साथ किसी निर्जीव प्रतिमा के मानिंद व्यवहार किया गया । इस घटना या प्रक्रिया को बाद में अब्रामोविक ने “मैडोना, माँ और वेश्या” के रूप में वर्णित किया। इतना ही नहीं उनके शरीर पर आक्रामकता के तमाम निशान बनते चले गए। दर्शकों ने गर्दन तक पर घाव कर दिए और उनके शरीर के कपड़ों को तार-तार कर दिया। इस पूरी प्रक्रिया में अपने दृढ संकल्प के साथ वो अंत तक डटी रहीं, यह जानने के लिए आखिर इंसान क्या और कितना कुछ कर सकता है। अंत तक आते- आते उन्होंने महसूस किया कि जनता ने अपने निजी आनंद के लिए उन्हें तो लगभग मार ही डाला।
अपने इन कलात्मक प्रदर्शनों (आर्ट परफॉर्मेंस) में अब्रामोविक अपनी पहचान की पुष्टि दूसरों के परिप्रेक्ष्य में करती हैं, यहाँ दर्शक और कलाकार की भूमिका को आपस में बदलकर वे मानवता की पहचान और प्रकृति को उजागर कर सामने लाती हैं। इस तरह से उनका व्यक्तिगत अनुभव एक सामूहिक अनुभव में बदल जाता है और इसके जरिये वे अपना सन्देश देती हैं। देखा जाये तो अब्रामोविक की कला समाज द्वारा किसी महिला शरीर को महज वस्तु के तौर पर समझने की भावना का प्रतिनिधित्व करती हैं, क्योंकि यहाँ वह गतिहीन रहती हैं और दर्शकों को अपने शरीर के साथ ऐसा कुछ भी करने की अनुमति देती है; जो सहज स्वीकार्य नहीं है। इस तरह अपने शरीर को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत करके, वह तमाम खतरों और शारीरिक थकावट के तमाम तत्वों की खोज करती है।
-सुमन कुमार सिंह