संगमरमर में कविता और रौबिन डेविड

जयन्त सिंह तोमर उन चंद लोगों में से हैं जो राजनीति, समाज और साहित्य के साथ-साथ कला की भी गहरी समझ रखते हैं I लेकिन यह बात अलग है कि कला पर उनकी लेखनी यदा-कदा ही चलती है I जबकि हम जैसों की अपेक्षा कुछ ज्यादा की रहती है I वहीँ दूसरी तरफ बात अगर हमारे समय के विशिष्ट मूर्तिकार रौबिन डेविड की आती है तो मुझे यह स्वीकारने में कत्तई संकोच नहीं है कि उन्होंने भारतीय आधुनिक मूर्तिकला  को एक नया आयाम दिया है I इस नाते  देखा जाए तो उनके योगदान के मूल्याङ्कन में हमारे कलाविदों ने पर्याप्त कंजूसी की है I ऐसे में उनके जन्मदिन के विशेष अवसर पर जयंत जी ने अपने फेसबुक पोस्ट में जो कुछ लिखा उसे इस कमी या कंजूसी की थोड़ी सी भरपाई  मानना उचित होगा I आलेखन डॉट इन के सुधि पाठकों के लिए यहाँ आभार सहित प्रस्तुत है जयन्त जी का वह पोस्ट I -संपादक 
जयन्त सिंह तोमर
अंतरराष्ट्रीय ख्याति के मूर्तिकार श्री रौबिन डेविड का आज जन्मदिन है। यह जन्मदिन इसलिए भी खास है कि डेविड साहब जीवन के पचहत्तरवें वसंत में प्रवेश कर रहे हैं। संस्थाओं ने अपने परिसरों की शोभा बढ़ाने में डेविड साहब की भरपूर मदद ली है । लेकिन जब कलाकारों को अलंकृत करने का समय आता है तब डेविड साहब उनकी दृष्टि से ओझल हो जाते हैं। पर डेविड साहब को इस बात की कोई शिकायत नहीं है। वे कहते हैं कभी अगर मेरे जीवन और कला पर कोई किताब आई तो उसका नाम रखना चाहूंगा ‘ living with no thanks ‘.
श्री रौबिन डेविड भारत के उन विरल मूर्तिकारों में हैं जिन्होंने मौलिकता व विपुलता की दृष्टि से भारतीय मूर्तिकला को सर्वथा नया आयाम दिया है। सुप्रसिद्ध कला इतिहासकार प्रो. आर शिवकुमार ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर सहित शांतिनिकेतन के प्रारंभिक कलाकारों की कला को ‘ कान्टेक्स्चुअल माडर्निज़्म ‘ का नाम दिया है। अर्थात वह कला जो विश्व की समस्त प्राचीन – अर्वाचीन – समकालीन कला के श्रेष्ठ तत्वों को ग्रहण करते हुए भी अपने परिवेश, समाज व इतिहास से अलग नहीं है वरन् उसकी जड़ें अपनी ज़मीन में बहुत गहरी हैं।
जीवन संगिनी के साथ
श्री रौबिन डेविड की कला इसी दिशा में भारत के पूरब और पश्चिम में विकसित हुए कला- आन्दोलनों के बीच एक तीसरी धारा की तरह विद्यमान है। सुप्रसिद्ध कलाविद शंखो चौधरी ने भारत में प्रचलित पुनरुत्थानवादी और अनुकरणवादी कला के बीच एक नितांत मौलिक शैली की आवश्यकता बताई थी। यह शैली अनायास ही श्री रौबिन डेविड की कला में दृष्टिगोचर होती है जो परम्परा व आधुनिकता तथा स्थानीयता व सार्वभौमिकता के बीच सर्वथा मौलिक है। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में पले- बढ़े श्री रौबिन डेविड का जीवन व कला- यात्रा किसी रोचक व प्रेरणादायी कथानक के समान है।
सन् 2015 में मध्यप्रदेश शासन के राष्ट्रीय कालिदास सम्मान व इससे पूर्व शिखर सम्मान से विभूषित श्री डेविड को स्वाधीन भारत में सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय सिम्पोजियम आयोजित करने का श्रेय तो है ही, कलाकृतियों के आयतन का विस्तार भी उन्हीं के साहस व उद्यम की देन है। इस दृष्टि से श्री रौबिन डेविड की कला का स्थान बहुत ऊंचा है। ग्वालियर दुर्ग की तलहटी में पंद्रहवीं शताब्दी में बनी विशालकाय जैन प्रतिमाओं की श्रृंखला को श्री डेविड अपनी प्रेरणा का माध्यम मानते हैं।
चार दशक से भी अधिक समय हो गया जब विख्यात कला – समीक्षक ध्यानेश्वर नाडकर्णी ने श्री डेविड को भविष्य का कलाकार निरूपित किया था व कला-समीक्षक शांतो दत्त ने रौबिन डेविड की कला को ‘ संगमरमर में लिखी गई कविता ‘ (poetry in marble) की संज्ञा प्रदान की।
जापान के मुशाहिनो विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे श्री रौबिन डेविड एक स्थापित रंगकर्मी भी रहे हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सुप्रसिद्ध निर्देशक श्री ब्रजमोहन शाह के निर्देशन में उन्होंने कई महत्वपूर्ण नाटक खेले। ग्वालियर के शासकीय ललित कला संस्थान के विद्यार्थी रहे श्री डेविड को इस संस्थान में मूर्तिकला विभाग स्थापित करने की पहल का भी श्रेय है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के कला – सलाहकार रहे श्री रौबिन डेविड ने राजभवन भोपाल, मध्यप्रदेश – भवन नई दिल्ली, भोपाल स्थित रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के भवन सहित अनेक महत्वपूर्ण स्थलों की अंतर्सज्जा की है।
कला – इतिहास को अद्यतन करने के साथ स्वाधीन भारत की मूर्तिकला का मूल्यांकन जब भी होगा श्री रौबिन डेविड की गणना विश्व के शीर्षतम कलाकारों में अवश्य होगी। डेविड साहब को जन्मदिन की अशेष शुभकामना।
– जयन्त सिंह तोमर

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