आज बात एक ऐसे कलाकार की जिनका जन्म नेपाल के काठमांडू में होता है, किन्तु प्रारंभिक शिक्षा की शुरूआत होती है बिहार के बेतिया से और फिर इलाहाबाद होते हुए उनकी यह यात्रा जा पहुंचती है कॉलेज ऑफ आर्टस एंड क्राफ्टस, लखनऊ। जहां से 1982 में ललित कला की पढाई पूरी कर ढाई साल ललित कला अकादमी, नई दिल्ली के गढ़ी स्टूडियो में प्रिंट मेकिंग यानी छापाकला विधा में अपनी सृजन प्रक्रिया को जारी रखती हैं। दिल्ली से नेपाल की वापसी होती है वर्ष 1986 में किन्तु इसे दुनिया देखने का जुनून कहें या कुछ और ब्रिटिश काउंसिल की छात्रवृति पर जा पहुंचती हैं ऑक्सफोर्ड प्रिंटमेकर्स को-ऑपरेटिव, ब्रिटेन वर्ष 1987 में। फिर 1989 में एक अन्य छात्रवृति पाकर जा पहुंचती हैं जर्मनी के स्टटगार्ड स्थित कुंट अकेडमी ।

यह तो हुई शिक्षा-दीक्षा की बात, इसके बाद का दौर आता है एक कलाकार के तौर पर प्रदर्शनियो में भागीदारी की तो वर्ष 1979 में इसकी शुरूआत नेपाल से होती है। तब से लेकर दुनिया भर के देशों में अन्य कला गतिविधियों में भागीदारी की तो बस इतना बता दें कि इन दिनों इस्लामाबाद के गैलरी सिक्स द्वारा इनकी जो ऑनलाइन एकल प्रदर्शनी आयोजित की गयीं, वह इनकी 64 वीं एकल प्रदर्शनी है। हालंकि यह विडंबना ही है कि पाकिस्तान के कला जगत से हम लगभग अपरिचित से ही हैं। कारण चाहे जो भी हो लेकिन मेरा तो मानना है कि राजनैतिक कारणों से सांस्कृतिक संबंधों का समाप्त प्राय हो जाना, अंतत: ऐतिहासिक भूल ही साबित होगी।

यहां जिस कलाकार की चर्चा हम कर रहे हैं उनका नाम है रागिनी उपाध्याय ग्रेला। रागिनी इन दिनों नेपाल में ही रह रहीं हैं, लेकिन सामान्य स्थितियों में दुनिया भर के कला आयोजनों में भागीदारी के सिलसिले में यात्राओं का क्रम जारी ही रहता है। मेरी जानकारी में वे इकलौती कलाकार हैं जिनका आना जाना चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत समूचे साउथ एशिया के देशों में बना रहता है। भारत और नेपाल तो इनका घर ही है, हां इनका एक अन्य घर व देश भी है और वह है बेल्जियम। जहां इनकी ससुराल है। कुछ इन्हीं कारणों से यूरोपीय देशों से भी इनका जुड़ाव कुछ खास ही है। रागिनी नेपाल के ललित कला अकादमी की पहली चांसलर भी रह चूकीं हैं।

पिछले दिनों कोरोना की आहट से कुछ पहले जब इनका दिल्ली आना हुआ था, तब हमने साथ-साथ जाकर राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा, नई दिल्ली जाकर उपेन्द्र महारथी के चित्रों की प्रदर्शनी देखी थी। समय समय पर होने वाली बातचीत में उनसे विभिन्न देशों के कला जगत के बारे में जानने सुनने को मिलता रहता है। लेकिन जब इस्लामाबाद में उनकी प्रदर्शनी की सूचना मिली तो विशेष उत्कंठा जगी हाले पाकिस्तान जानने की। खासकर वहां के समाज और कला जगत से संबंधित, क्योंकि समाचार चैनलों ने तो हमें यकीन दिला रखा है कि पाकिस्तान में सिर्फ आतंकवादी ही रहते हैं। वैसे गैलरी सिक्स, इस्लामाबाद के बारे में इतना तो सुन रखा था कि यह पाकिस्तान की एक महत्वपूर्ण निजी गैलरी है। जिसकी संचालिका हैं डा. अर्जुमंद फैसल, जो स्वयं एक स्थापित कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

हमने रागिनी जी से जानना चाहा उनकी पहली पाकिस्तान यात्रा से लेकर अब तक की यात्रा के अनुभवों के बारे में तो- उनकी पहली प्रतिक्रिया तो यही थी कि कोरोना के कारण इस बार नहीं जा पाने का मलाल है। वहीं वर्ष 1996 की पहली यात्रा के बारे में बताया कि कराची स्थित गैलरी मज़्मुआ की संचालिका मेहरिन इलाही के आमंत्रण पर वहां जाना हुआ था। इसके बाद 1998 में एक कार्यक्रम में जब उन्होंने अपना परिचय दिया और अपनी बात रखी, तो उसके बाद विशिष्ट अतिथियों में शामिल एक बुजूर्ग महिला ने आगे बढकर बेहद अत्मीयता से गले लगा लिया। साथ ही एक मीठी डांट भरी जिद कि तुम्हें होटल के बजाय मेरे घर में ही रहना होगा, क्योंकि तुम उस लखनऊ कला महाविद्यालय की छात्रा रह चुकी हो जो मेरा भी कॉलेज था। इस नाते तुम मेरी छोटी बहन हो ऐसे में तुम्हारे होटल में ठहरना जानकर लोग क्या सोचेंगे। यह महिला थीं राबिया जुबेरी जिनकी कला शिक्षा पहले अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और फिर 1963 में लखनऊ कला महाविद्यालय से हुई थी। राबिया कराची कला महाविद्यालय की संस्थापक प्राचार्य थीं, जिसकी स्थापना उन्होंने 1964 में की थी। उन्हें सिंध में कला शिक्षा की विधिवत शुरूआत कराने का श्रेय भी जाता है। फाइन आर्टस कमिटी ऑफ पाकिस्तान की तीन साल के लिए चेयरमैन रहीं राबिया को पाकिस्तान आर्ट काउंसिल कराची स्थित कला दीर्घा की स्थापना का श्रेय भी जाता है।

अपने शुरूआती अनुभवों को बयां करते हुए राबिया ने बताया कि लड़कियों और महिलाओं को कला की शिक्षा देने के एवज में उन्हें कट्टरपंथियों का विरोध भी झेलना पड़ा। यहां तक कि कुछ इन्हीं वजहों से आकृतिमूलक चित्रों को छुपाकर भी रखना पड़ता था। वर्ष 1990 में कराची में इंडस वैली स्कूल ऑफ आर्ट एंड आर्किटेक्चर की स्थापना कलाकारों, डिजाइनरों एवं आर्किटेक्टों की पहल पर की गई। उस दौर में यहां प्रिंट मेकिंग विभाग की प्रधान थी मेहर अफरोज, मेहर भी लखनऊ कला महाविद्यालय की पूर्व छात्रा थीं। बकौल रागिनी पाकिस्तान में सामान्य तौर पर किसी अकेली महिला अतिथि को होटल में ठहराना शिष्टाचार विरुद्ध समझा जाता है। अपने पाकिस्तान से जुडे अनुभवों को बताने के क्रम में रागिनी एक अन्य सुखद याद की चर्चा करती हैं। एक दिन वहां के एक बड़े उद्योगपति ने उन्हें अपने घर पर दावत दी। साथी कलाकारों के साथ वहां पहुंचकर रागिनी उनके महलनुमा मकान को देखकर दंग रह गर्इं। बहरहाल मेजबान ने परिवार सहित पारंपरिक वेशभूषा में उन सबों का स्वागत किया। उसके बाद अपने मकान के गलियारों से होते हुए एक जगह पर लाकर खड़ा करते हुए कहा यह है मेरे जीवन की सबसे अनमोल थाती । बकौल रागिनी मेरे सुखद आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने देखा कि मेरे सामने थी चुगतई की एक पेंटिंग, और मैंने किसी धनपति द्वारा किसी कलाकृति को इतना सम्मान देते हुए इससे पहले नहीं देखा था। क्योंकि जब कभी भी इस तरह के अमीरों के यहां जाना हुआ उनकी प्राथमिकता घर के बेहद महंगे और आधुनिकतम चीजों को दिखाने की रहती है। ज्यादातर जिसकी शुरूआत महंगी कारों या विशाल बैठकखाने से होती है। बाद में कहीं जाकर बारी आती है संग्रहित कलाकृतियों की।

वहां की समकालीन कला पर रागिनी की राय बेहद सकारात्मक है, खासकर इस बात के लिए कि उन्होंने अपनी प्राचीन कला परंपरा का समावेश भी बेहद खुबसूरती से आधुनिक व समकालीन कलाकृतियों में किया है। मुगल मिनिएचर की परंपरा वहां के कला महाविद्यालयों के छात्रों को अवश्य अवगत कराया जाता है एवं आज के आधुनिक कलाकार भी उसे अपनाए हुए हैं। वैसे गैलरी सिक्स में चली हालिया प्रदर्शनी में शामिल कलाकृतियों की बात करें तो कुछ कैनवस पेंटिंग के अलावा ज्यादातर डिजिटल माध्यम से बने चित्रों को इसमें शामिल किया गया है। अपनी कृतियों में रागिनी की पसंद सामाजिक विषय खासकर सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार की रहती है। इस प्रदर्शनी में विश्वव्यापी कोरोना संकट के दौर में प्रेम की अभिव्यक्ति को दर्शाती एक पेंटिंग कुछ खास आकर्षण का केन्द्र बनी रहे।
