मेरी दिलचस्पी राजनीतिक कला में है: विलियम केंट्रिज

मेरे दादाजी 40 साल तक संसद सदस्य रहे। जाहिर है हम यहां दक्षिण अफ्रीका की बात कर रहे हैं, जहाँ केवल गोरों की संसद हुआ करती थी । मैं एक ऐसे परिवार में पला-बढ़ा हूं जो रंगभेद के खिलाफ कानूनी लड़ाई से गहरे जुड़ा हुआ था – 1950 और 60 के दशक की शुरुआत में देशद्रोह के चर्चित मुकदमे, और बाद में कानूनी संसाधन केंद्र के साथ जिसे मेरी मां ने स्थापित किया था। मेरे पिता उन कई प्रमुख मामलों में शामिल थे, जिनके राजनीतिक पहलू थे, चाहे वह शार्पविले नरसंहार की जांच हो, स्टीव बीको की मृत्यु की जांच, या नेल्सन मंडेला से जुड़े मुकदमों में से एक की।

मेरी दिलचस्पी राजनीतिक कला में है, यानी अस्पष्टता, विरोधाभास, अपूर्ण इशारों और अनिश्चित अंत की एक कला – एक कला (और एक राजनीति) जिसमें आशावाद को रोक कर रखा जाता है, और शून्यवाद को उससे दूर।

मैं केवल एक कलाकार हूं, मेरा काम चित्र बनाना है न कि उसका अर्थ निकालना।

भूलना एक स्वभाविक प्रक्रिया है, स्मरण करना ही मनुष्य द्वारा किया गया प्रयास है।

विलियम केंट्रिज का जन्म 1955 में जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका के एक धनी यहूदी परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता सर सिडनी केंट्रिज और फेलिसिया गेफेन, रंगभेद विरोधी वकील और नागरिक-अधिकार कार्यकर्ता थे। आगे चलकर उनकी यह राजनीतिक पृष्ठभूमि एक कलाकार के तौर पर स्थापित होने में मददगार भी रही। उनके पिता को 1956-61 के “देशद्रोह के मुकदमे” में नेल्सन मंडेला का बचाव करने और “ब्लैक कॉन्शियसनेस मूवमेंट” के संस्थापक स्टीव बीको के परिवार का प्रतिनिधित्व करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा मिली । किन्तु दुर्भाग्य से 1977 में पुलिस हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई थी।

उनके घर का वह विशाल परिसर जहां वे पले-बढे, और आज भी रहते हैं, सेजां, मातिस, मिरो और मोदिग्लिआनी की उत्कृष्ट कृतियों के प्रतिकृतियों से सजा हुआ था। इन छवियों ने उन्हें प्रारंभिक कला शिक्षा प्रदान की साथ ही वह जोहान्सबर्ग आर्ट गैलरी जहाँ वे अक्सर अपने परिवारी जनों के साथ जाते रहते थे। उन दिनों उनके घर पर अक्सर उनके पिता के कलाकार मित्रों का आना- जाना लगा रहता था। साथ ही उनका यह घर उस दौर में राजनीतिक गतिविधियों और बहसबाजियों का केंद्र भी था। बाद के वर्षों में केंट्रिज को जोहान्सबर्ग के ह्यूटन में किंग एडवर्ड VII स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला।

केंट्रिज ने विटवाटरसैंड विश्वविद्यालय में राजनीति और अफ्रीकी अध्ययन में कला स्नातक की उपाधि के बाद जोहान्सबर्ग आर्ट फाउंडेशन में ललित कला का अध्ययन किया। लेकिन इसके बावजूद अफ्रीकी इतिहास और राजनीति के साथ उनका आकर्षण बना रहा। कला विद्यालय में कैनवास पर तैल रंगों से जूझते हुए केंट्रिज चारकोल ड्राइंग के प्रति कुछ ज्यादा आकर्षित होते चले गए। इसी दौरान एचिंग की कक्षा के दौरान उन्हें नई आशा की एक छोटी सी किरण दिखी, जिसे याद करते हुए वे कहते हैं ” मुझे यह (एचिंग) शानदार लगा। इसने मेरी सोच को बदला और लगा कि एक कलाकार होने के लिए रंगों से खेलना ही एकमात्र जरिया नहीं है।”

1981 में केंट्रिज ने फिर से अपने पाठ्यक्रम में बदलाव किया और दक्षिण अफ्रीका को छोड़ जा पहुंचे पेरिस थिएटर की पढ़ाई के लिए। वहां उनके शिक्षक, जैक्स लेकोक ने उन्हें निर्देशन के लिए एक सहज ज्ञान युक्त दृष्टिकोण दिया:- “शब्दों से पहले अर्थ और फिर बाकी वह सब कुछ जो अर्थ बनाता है।” पेरिस में एक साल बिताने के बाद केंट्रिज ने पाया कि पेंटिंग से अभिनय में आना कोई बेहतर विकल्प नहीं था। किन्तु इसके बावजूद समय, मूवमेंट और पात्रों के साथ उनका यह आकर्षण और काम करने की इच्छा बानी रही। वह एक फिल्म निर्माता बनने के सपने के साथ दक्षिण अफ्रीका लौट आए, यहाँ एक टेलीविजन श्रृंखला में सहायक के रूप में काम करने भी लगे किन्तु आगे चलकर अपने को किसी दीवार के सामने महसूस करने लगे, उन दिनों को याद करते हुए केंट्रिज ने कहा:- “फिल्म उद्योग इतना भयानक था कि मैंने किसी भी तरह से वहां से निकलने की ठान ली।”

अपने जीवन की इन शुरुआती विफलताओं से गुजरने के बाद, केंट्रिज ने खुद को एक बार फिर से एक कलाकार बनने के रास्ते की तलाश में पाया। हालाँकि पीछे मुड़कर देखते हुए वह भटकाव की इस अवधि को अपने करियर के विकास के लिए महत्वपूर्ण दौर के तौर पर याद करते हैं:-” यह सब केवल निराशा ही नहीं एक तरह से विनाश की भावना है। बहरहाल अंत में जो बात मायने रखती है वह यह कि आप कौन हैं।” बहरहाल वे अब विफलताओं को रचनात्मक प्रक्रिया का  महत्वपूर्ण तत्व मानने के पक्षधर हैं :- “कोई भी व्यक्ति अपनी जीवनी उन असफलताओं के संदर्भ में लिख सकता है जिसने उसे बचाया है।” इस पूरे समय के दौरान केंट्रिज ने ड्राइंग, फिल्म और परफॉरमेंस के प्रति अपनी रुचियों का एक स्वाभाविक मिश्रण खोजा, जो आगे चलकर उनके कला की विशेष पहचान बनती चली गयी। उन्हें पहले कहा गया था कि यहाँ विशेषज्ञता महत्वपूर्ण है, और उन्हें अभिनय या चित्रकारी में से किसी एक को अपनाना होगा। अन्यथा यह सबकुछ शौकिया बनकर रह जायेगा लेकिन इसके उलट केंट्रिज ने महसूस किया कि इन विभिन्न विधाओं और शैलियों के मिश्रण से वह कुछ नया कर सकते हैं।

शुरुआत में केंट्रिज ने चारकोल माध्यम को अपनाकर चित्र रचनाएँ कीं, जिसके जरिये 1980 के दशक में दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति के प्रति अपने विरोध और असंतोष को दर्शाया। इसके बाद अपनी कलाकृतियों में जीवंतता के समावेश के लिए उन्होंने अपने चित्रों के लिए एक गैर-पारंपरिक एनीमेशन तकनीक विकसित की। यहाँ भी एनिमेशन की पारम्परिक तकनीक यानी कागज की अलग-अलग शीट पर क्रमवार आकृति बनाने के बजाय, उन्होंने कागज की एक मात्र शीट का उपयोग करना शुरू किया, जिसपर चारकोल से पहले रेखांकन कर उसकी फोटोग्राफी कर ली जाती थी। फिर उस आकृति को मिटाकर उस क्रम की दूसरी आकृति बनाकर उसे तस्वीरों में सुरक्षित करते चले जाते थे।

केंट्रिज ने अपनी इस प्रक्रिया को “गरीब आदमी का एनीमेशन” या “पाषाण-युग एनीमेशन” के रूप में संदर्भित किया। हालाँकि ऐसे में मिटाए गए आकृतियों के साक्ष्य पृष्ठ पर रह जाते थे, जिसे उन्होंने शुरू में हटाने की कोशिश तो की, लेकिन बाद में महसूस किया कि यह सब उनकी इन फिल्मों में एक अतिरिक्त संवेदनशीलता का समावेश करती है। इन तरीकों के माध्यम से केंट्रिज ने इतिहास, राजनीति, फिल्म निर्माण और रेखांकनों को एकीकृत करने का एक नया और अनुपम तरीका खोजा। उनके द्वारा बनाई गई पहली पूर्ण-एनिमेटेड फिल्म थी “जोहान्सबर्ग, सेकेंड ग्रेटेस्ट सिटी आफ्टर पेरिस (1989)”। लगभग इसी काल में केंट्रिज की मुलाकात होती है डॉ ऐनी स्टैनविक्स से जो बाद में उनकी पत्नी बनी।

कुछ इस तरह एक कलाकार के तौर पर शुरू हुए केंट्रिज के करियर ने धीरे-धीरे अगले दशक में गति प्राप्त की। इस दौरान उन्होंने मल्टीमीडिया में अपना वह काम जारी रखा, जिसमें ड्राइंग, फिल्म और थिएटर के तत्वों का खूबसूरत संयोजन था। हालाँकि उनके इन अधिकांश रचनाओं में राजनीतिक तत्व शामिल थे। लेकिन साथ ही उससे अधिक अमूर्त और दार्शनिक दृष्टिकोण भी यहाँ मौजूद रहता है जो उस राजनीतिक दृष्टि के समानांतर है।

-सुमन कुमार सिंह

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