‘कलाकार का लक्ष्य एक तरह से अलभ्य होता है, वह हमेशा किसी असीम छोर को पकड़ने का प्रयास करता हैं। लेकिन, इसके लिए वह जिन साधनों का प्रयोग करता है वे सीमित होते हैं अर्थात कलाकर्म सीमित साधनों से असीम लक्ष्य प्राप्त करने की विधि है। चित्रकला में देखें तो चित्रकार के पास एक चौरस तल ही होता है जिस पर उसे काम करना पड़ता है।’
:- सच्चिदानन्द सिन्हा
(पुस्तक: अरूप और आकार)
विगत दो दशकों में भारतीय समकालीन कला में जो प्रवृतियां व्यापक रूप से देखी जा रही हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि नई पीढ़ी में न्यू मीडिया आर्ट के प्रति रूझान बढ़ा है। डिजिटल क्रांति के एक सह-उत्पाद के तौर पर चित्रकला में फोटो-रियलिज्म से संबंधित कलाकृतियों की भरमार कला-दीर्घाओं में दिखती रही हैं। एकबारगी तो लगने लगा था कि छापाचित्रों व रेखांकन जैसे विषय अब इतिहास बन जाएंगे। रेखांकन जिसे कभी कलाकारों की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता था, दृश्यपटल से लगभग ओझल हो चला था। किन्तु इस दौर में भी तथाकथित कला-बाजार के भागमभाग से अलग हटकर यूसुफ भाई जैसे कलाकार निरन्तरता से इस माध्यम में सृजनशील थे। यह बात तब जगजाहिर होती है जब यूसुफ के रेखांकनों की एकल प्रदर्शनी राजधानी के श्रीधरणी कला दीर्घा में 13 फरवरी को उद्घाटित होती है। इस प्रदर्शनी को शीर्षक दिया गया है-लाइन इज लाइफ, और इसे क्यूरेट किया है हमारे समय के मूर्द्धन्य कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल ने। प्रदर्शनी 21 फरवरी तक जारी रहेगी, किन्तु आज 19 फरवरी तक की बात करें तो जिस बड़ी संख्या में कलाकारों और कला-प्रेमियों का आना-जाना लगा रहा; वह पर्याप्त है यह कहने के लिए कि यूसुफ की रेखाओं का जादू कला-प्रेमियों को आकर्षित कर रहा है। इतना ही नहीं रेखांकन विधा पर बातचीत या चर्चा का एक माहौल भी इसके बहाने बना है।
इस प्रदर्शनी के उद्घाटन से पूर्व अपनी राय व्यक्त करते हुए प्रयाग शुक्ल ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा था –
” रेखा-रूप सभी कलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहे हैं, उनमें किसी- न -किसी प्रकार की अपनी भूमिका के कारण। और सभी कलाओं मे उनकी भूमिका को चिन्हित भी किया जाता रहा है : फिर चाहे नृत्यकला हो या वास्तुशिल्प या संगीत या रंगकर्म । और इसमें भला क्या संदेह कि चित्रकला और मूर्तिशिल्प मे तो रेखा–रूपों की भूमिका अक्सर प्रत्यक्ष रूप से ही उपस्थित रहती है। और उन रूपों को रेखांकन-विधा मे विशेष रूप से रेखांकित भी किया जाता रहा है : कला प्रेमी दर्शकों द्वारा, कला-समीक्षकों-कला पारखियों द्वारा।
आज से श्रीधरणी गैलरी मे यूसुफ के रेखांकनों की एक बडी प्रदर्शनी शुरू हो रही है जिसे क्यूरेट करने के दौरान उनके स्टूडियो में सैकड़ों रेखांकन देखे हैं और उनमे से लगभग सौ रेखांकन चुने है – उनकी विविधता, उनकी सौम्यता-सुघरता-सघनता -गतिशीलता आदि की एक बानगी देने के लिए। और इस संचयन का बहुत आनंद उठाया है। रेखा-रूपों की भूमिका पर नये सिरे से एक बार फिर सोचा-विचारा है : कैटलाग के लिए लिखे गये अपने लेख मे उसे दर्ज भी किया है। हम सभी जानते हैं कि पिछ्ले कोई तीन-चार दशकों से यूसुफ की रेखा-यात्रा अबाध गति से जारी रही है और इस यात्रा के दौरान उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति के लिए रेखा की बनावट- को, उनकी रंगतों को, एक नयी तरह से खोजा-ढूंढा-पाया- अविष्कृत किया है।”
दरअसल यूसुफ के इन रेखांकनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है उसकी वह बुनावट, जिसकी पीछे न केवल घंटों की मेहनत और धैर्य है, दशकों की कला साधना भी है। एक ऐसी साधना जिसके लिए न केवल तपना पड़ता है, रूप और रेखाओं के जंगल में भटकना भी पड़ता है। तब कहीं जाकर ये रूप और रेखाएं आपको उस वांछित सिद्धि तक पहुंचाती है, जो किसी भी कलाकार का ध्येय होता है या होना चाहिए। इस प्रदर्शनी में शामिल कलाकृतियों को चाहकर भी आप सरसरी तौर पर नहीं देख सकते हैं, दीर्घा में प्रविष्ट होते ही रेखाओं का यह अंतरजाल आपको अपनी गिरफ्त में कुछ इस तरह से समेट लेता है कि आप उसके सम्मोहन से बंधे चले जाते हैं। और थोड़ी ही देर में आप पाते हैं कि अब आप उन रेखाओं की बारीकियों के अन्वेषण या निरिक्षण-परीक्षण में मशगूल हो चुके हैं।
अगर अभी तक आप इस प्रदर्शनी का अवलोकन नहीं कर पाए हैं, तो अगले दो दिनों में अवश्य पधारिये….