मुझे बताया गया कि हाल ही में दिल्ली में संपन्न एक कला मेले में पांच सितारा होटल में कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया था। मैंने सोचा, इसमें असाधारण क्या है। यहां तक कि महान भारतीय कलाकार पांच सितारा होटलों में प्रदर्शनी आयोजित करते रहे हैं, जहां वे अपनी कला के लिए अमीर ग्राहकों से दोस्ती करते हैं। कलाकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए यहां लॉबी, फ़ोयर और बैंक्वेट हॉल का उपयोग किया जाता है। ऐसा लगता है कि यह चलन कभी भी फैशन से बाहर नहीं हुआ है। अधिकांश स्व-प्रशिक्षित कलाकार, जो ज्यादातर अमीर पुरुष और महिलाएं होते हैं, कुछ खास वजहों से इन पांच सितारा होटल की लॉबी में प्रदर्शनी आयोजित करना पसंद करते हैं क्योंकि इस जगह को वे अपने लिए मुफीद समझते हैं। जहां वे कॉफी पीने से लेकर दोस्तों से मिलने, पूल साइड पार्टियों में शामिल होने और अपने करीबी लोगों के साथ शांति से बैठकर डिनर भी कर सकते हैं।
हालाँकि, जिस मेले को देश के पहले होटल कला मेले के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था, वह कुछ अलग था, जैसा कि मुझे कुछ तस्वीरें देखकर पता चला। उन्होंने होटल के कमरों और सुइट के अंदर प्रमुख कलाकारों की कला कृतियों को प्रदर्शित किया। कुछ चित्रों में शौचालयों की दीवारों पर लटकी कलाकृतियाँ भी दिखाई दीं। इन सुइट रूम के शौचालय में निश्चित रूप से बड़ी सी जगह होती है जहां कोई व्यक्ति पढ़ने, झपकी लेने और यहां तक कि जीवन के बड़े पहलुओं पर विचार करने में बहुत समय बिता सकता है। कभी-कभी उनके पास आर्किटेक्ट्स के साथ काम करने वाले इंटीरियर डेकोरेटर्स द्वारा खरीदी गई पेंटिंग भी होती हैं, ये इंटीरियर डेकोरेटर्स कुछ तथाकथित कला सलाहकारों को भी नियुक्त करते हैं, साथ ही कला शिविर के आयोजकों से सस्ते लेकिन रंगीन और आकर्षक कलाकृतियों की तलाश करते हैं, इतना ही नहीं वे अपने इन सलाहकारों के साथ थोक में कलाकृतियों की खरीदारी भी करते हैं। वे निश्चित रूप से जानते हैं कि आर्किटेक्ट इन कलाकृतियों को इंटीरियर डिजाइनरों को सौंपने से पहले दोगुनी कीमत पर बेच देगा।
यदि आप इस परिदृश्य को देखें तो एक आलीशान होटल के कमरे में कला मेला आयोजित करना कोई बुरा विचार नहीं है, अलबत्ता यह एक मज़ेदार विचार है; अधिक कमाई के लिए एक प्रकार का आत्म-अवमूल्यन। जो एक आलीशान होटल के कमरे में अच्छे जीवन की इच्छाओं और घर पर रोज की तरह आराम पाने की आकांक्षा को दर्शाता है। इसलिए होटल के कमरे की यह अस्थायी दीर्घा जहां बिक्री के लिए कला की महंगी कृतियां प्रदर्शित की जाती हैं, उच्च वर्ग, समृद्ध वर्ग और मध्यम वर्ग की महत्वाकांक्षी मलाईदार तबके की स्थायी इच्छा का प्रतीक है। जब वे किसी होटल के कमरे के अंदर कोई कलाकृति देखते हैं, तो वे कल्पना करते हैं कि यह कलाकृति उनके अपने कमरे के अंदर कैसा दिखेगा। बाकी तो सब वित्तीय आदान-प्रदान का मामला ही है।
निजी कला दीर्घाएँ इस प्रकार के होटल कला मेले में भाग लेने के लिए बाध्य होकर स्वयं को पुनः अविष्कृत करती हैं। वैसे पुराने दिनों में भी निजी कला दीर्घाओं की भूमिका बिल्कुल ऐसी ही थी। एक निजी गैलरी की सफेद घन (व्हाइट क्यूब) वाली अवधारणा एक तटस्थ स्थान के विचार को उजागर करती है जहां कलाकृति को इस तरह से रखा जाता है जिससे कलाकृति के आंतरिक गुणों एवं आसपास की भौतिक स्थितियों से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाए। ऐसी सफेद या पीली रोशनी से सराबोर सफेद स्थान कला खरीदारों के लिए एक ‘मूल्यहीन तटस्थ स्थान’ बनाता है। प्रदर्शित कलाकृति के आसपास का स्थान दो कलाकृतियों के बीच दी गई दूरी से निष्प्रभावी हो जाता है। यानी प्रत्येक कलाकृति को अपना स्वतंत्र एवं तटस्थ स्थान मिल जाता है। ऐसा तटस्थ स्थान जहां कला संग्राहकों, खरीदारों, निवेशकों और कला प्रेमियों द्वारा प्रदर्शित वस्तुओं के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए जा सकें। जाहिर है इस तरह के वातावरण ने उन्हें कलाकृतियों के साथ बौद्धिक और कल्पनाशील बातचीत का अवसर प्रदान किया।
जब विभिन्न घरेलू, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और सांस्कृतिक कारणों से कला बाजार का चरित्र बदल गया, तो सफेद घन में सफेद स्थान अतीत की बात बन गया। किसी गैलरी की जगह को जानबूझकर एक विकृत स्थान बनाने की साजिश अब सनक बन गई। अक्सर कला दीर्घाओं के लिए ऊंची छत वाली बड़ी जगह को चुना जाता है। स्थानिक आयामों से यह भी पता चला कि कलाकृतियों के आयाम भी कैसे बदल गए हैं। इस बड़े स्थान को पार्टीशन द्वारा अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया था जिससे यह स्थान एक जटिल संरचना में तब्दील हो चुका था। दीवारों को अलग-अलग रंग दिए गए, जिससे इन धनिकों के समृद्ध घरों के अंदरूनी हिस्सों की नकल करने की संभावना थोड़ी कम हो गई, जो अलग-अलग रंगों और व्यवस्थित अंदरूनी हिस्सों के लिए वहां गए थे। कला अब कला के नियमित दर्शकों के दायरे से निकलकर उन लोगों तक पहुंच गई जो बड़ी अचल संपत्ति और बंगले खरीद सकते थे, जहां फैंसी, समृद्ध या सुसंस्कृत दिखने वाली पृष्ठभूमि में विशाल कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जा सकता था।
बाज़ार तेजी से बदल रहा था, महामारी के दिनों से ठीक पहले, दीर्घाओं ने प्रदर्शनियों की संख्या में कटौती कर दी थी या उन्हें सप्ताह या महीने के किसी विशेष दिन पर एक साथ प्रदर्शित करना शुरू कर दिया था। यह सब या तो लागत में कटौती करने के लिए था या धनपतियों को अधिक से अधिक संख्या में एक ही स्थान पर लाने के लिए था ताकि उन्हें अलग-अलग समय में अलग-अलग प्रदर्शनियां देखने के लिए अनावश्यक यात्रा की परेशानी से बचाया जा सके। जब ऐसा हो रहा था, उसी समय दीर्घा संचालकों द्वारा देखने के कमरे वाले विचार को भी आगे बढ़ाया गया। देखने का यह कमरा आरामदायक सोफे और पर्याप्त रोशनी वाला एक आरामदायक कमरा है जहां खरीदार की मांग के अनुसार गैलरी परिचारक द्वारा लाए गए विभिन्न कलाकृतियों को एक साथ या एक ही जगह पर देख सकते हैं। यह किसी कपड़े की दुकान में जाने और वहां रखे रैक में से अलग-अलग शर्ट या साड़ियां दिखाने के आग्रह जैसा है। गैलरी का मालिक उनके साथ बैठता है और उनके सामने दिखाई गई कला और कलाकारों के बारे में मनमोहक कहानियाँ सुनाकर उनका मनोरंजन कर रहा होता है।
दरअसल जब सब कुछ विफल हो जाता है और जब अमीर और संपन्न लोग आपकी गैलरी में कलाकृतियों को देखने के लिए आने से इनकार कर देते हैं तो आप क्या करने जा रहे हैं? ऐसे में आप कलाकृतियों को अमीरों और संपन्न लोगों तक ले जाएंगे। इस तरह से रविवारों या छुट्टियों के दिन, दीर्घा संचालकों ने उन खरीदारों से समय लेकर कलाकृतियों को उनके घरों में अवलोकन के लिए भेजना शुरू कर दिया। तो हुआ यह कि जहां भी अमीर गए, कला उनके पीछे चली गई; उन्होंने हाई-एंड मॉल, शॉपिंग आर्केड, हवाई अड्डे, लाउंज, फार्म हाउस, पांच सितारा होटल लॉबी इत्यादि में अपनी कला की दुकानें खोलीं। इस तरह कला मेले के साथ होटल के कमरों तक कला का बाज़ार अपने पूरे चक्र में आ गया है। इससे मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ, यदि अमीर लोग अपने शौचालयों में कलाकृतियाँ रख सकते हैं, तो मेला आयोजक उन्हें कमरों के शौचालयों के अंदर प्रदर्शित क्यों नहीं कर सकते?
-जोनी एमएल
* ब्रायन ओ’डोहर्टी : एक आयरिश-अमेरिकी कला समीक्षक, लेखक और कलाकार द्वारा लिखित “इनसाइड द व्हाइट क्यूब” एक पुस्तक है जो 1976 में प्रकाशित हुई थी। यह गैलरी स्पेस की विचारधारा को नियोजित करती है। लेखक तटस्थ पैटर्न का उपयोग करके आधुनिक गैलरी स्थान को डिजाइन करने के मुख्य कारणों की पड़ताल करता है, उदाहरण के लिए, एक सफेद क्यूब, जो अंततः कलाकृति का एक हिस्सा है जो प्रदर्शनी को एक विशेष आकर्षण से जोड़ता है। इस पुस्तक में लेखक ने खुलासा किया है कि गैलरी स्थान का मुख्य ध्यान सिर्फ एक सफेद घन पर केंद्रित नहीं है क्योंकि पूरी प्रदर्शनी और इसका डिज़ाइन भी एक ऐतिहासिक विशेष निर्माण है, जिसका उद्देश्य कला को नष्ट करना है।