पुस्तकालय बड़ा था। तीन-चार आलमीरा में रखी हुई पुस्तकों को उलट-पुलट कर देखता रहा। अधिकांश पुस्तकें जयप्रकाश, गाँधी, समाजवाद, सर्वोदय पर केन्द्रित थी। पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या मुझे कम लगी। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के बाद अगर किसी महामानव को सबसे ज्यादा साहित्य अर्पित किया गया है, तो वे जयप्रकाश हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी, नागार्जुन, फणीश्वर नाथ रेणु, रामधारी सिंह दिनकर, गोपी वल्लभ सहाय समेत सैकड़ों कवि-साहित्यकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं द्वारा लोकनायक जयप्रकाश की अभ्यर्थना की है। मैंने भी ’लोकनायक जयप्रकाश’ शीर्षक से उनकी जीवनी लिखकर अपनी लेखनी के अघ्र्य उनपर चढ़ाये हैं। लेकिन इनमें से कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की कमी मुझे खली। स्मृति भवन-सह-पुस्तकालय की देख-रेख करने वाले जे.पी. ट्रस्ट को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
जयप्रभा स्मृति भवन
स्मृति भवन-सह-पुस्तकालय से निकलकर हमलोग लोग जयप्रकाश राष्ट्रीय स्मारक की तरफ बढ़ चले। स्मारक के ठीक पीछे है जयप्रभा स्मृति भवन। जयप्रकाश का पुराना मकान, जिसमें रहकर उन्होंने छठे वर्ग तक की शिक्षा ग्रहण की थी। ईंट मिट्टी का पुराना मकान। मिट्टी की दीवारें, खपरैल छप्पर, फूल-पत्ते कढ़े दरवाजे, खिड़कियाँ, रोशनदान, नीचे की जमीन-सब वहीं की वहीं, लगा मानों यहाँ किसी मुलम्मे की जरूरत नहीं। अंदर की ओर प्रवेश करता हूँ। एक सुकून भरा एहसास हो रहा है, समय जैसे ठहर गया हो। प्रत्येक कमरे के बाहर नामों की तख्तियाँ लगी हुई है। बैठक कक्ष, रसोई घर, विश्राम कक्ष, अतिथि कक्ष इत्यादि। उनमें जयप्रकाष द्वारा उपयोग की गई चीजें जस की तस रखी हुई है। दही मथनी, सब्जी काटने का चाकू, गेहूँ के डंटल से बना डगरा, मौनी, कुर्सियाँ, पलंग के अलावा और भी बहुत कुछ। उन्हें देखते हुए मैं उन सारी स्थितियों-परिस्थितियों की कल्पना करता रहा, जिनके साये में वे पले और बढ़े होंगे।
लगभग आधे घंटे तक उनके पैतृक मकान का अवलोकन करने के बाद हमलोग गाड़ी में बैठकर जयप्रकाश नगर के लिए निकल पड़े। राहुल सिंह ने हमे पहले ही यह जानकारी दे दी थी कि सिताब दियारा से जयप्रकाश नगर की दूरी सिर्फ तीन किलोमीटर है, लेकिन वह उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में पड़ता है। राहुल सिंह ने यह भी बताया था कि जयप्रकाश के पूर्वजों की वहाँ सौ बीघा जमीन थी। उसमें से नौ बीघा जमीन पर जयप्रकाश जी ने अपने लिए मकान बनवाया था, शेष जमीन उन्होंने भूमिहीनों को दान कर दी थी। तब से वह स्थल जयप्रकाश नगर के रूप में विख्यात हो गया है। जयप्रकाश के निधन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर द्वारा गठित जयप्रकाश नगर स्मारक प्रतिष्ठान के सौजन्य से उनकी स्मृति में अनगिनत निर्माण कार्य हो चुके हैं। निर्माण कार्य में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े, भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार का भी सहयोग रहा है। जयप्रकाश नगर उनके अनुयायियों के लिए अब तीर्थस्थल बन चुका है और उनके जन्म दिवस एवं निर्वाण दिवस पर बड़ी संख्या में लोग वहाँ श्रद्धा-सुमन अर्पित करने आते हैं।
रास्ते में एक मैदान दिखाई पड़ा। राहुल सिंह बताने लगे कि यह चैन छपरा का क्रांति मैदान है। वर्ष 1977 में जयप्रकाश जी ने यहाँ एक महती जनसभा को संबोधित किया था। उस समय उनके साथ मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और रामसुन्दर दास का भी आगमन हुआ था। तब जयप्रकाश जी को देखने-सुनने के लिए यहाँ लाखों की भीड़ उमड़ पडी थी। सिताब दियारा में यह उनका अंतिम भाषण था। चंद मिनटों की यात्रा के बाद एक तिकोन मिला, जहाँ से हमारी गाड़ी दायी तरफ मुड़ गई। राहुल सिंह ने बताया कि यह तिकोन तीन जिलों का मिलन-स्थल है। बायीं तरफ भोजपुर (आरा) , दायी तरफ छपरा और पश्चिम में उत्तर प्रदेश का बलिया जिला है। इस क्षेत्र के कुछ बड़े जोतदारों का एक-एक प्लॉट तीन जिलों में विभक्त हैं और उनकी मालगुजारी जमा करने के लिए उन्हें संबंधित जिलों का चक्कर लगाना पड़ता है। मैं वहाँ से चारों ओर नजर घुमाकर प्रकृति-सौंदर्य का आस्वादन करने लगा। हर जगह प्रकृति का सौंदर्य बिखरा हुआ। खुले खेतों का प्रदेश। बायीं तरफ थोड़ी दूर पर कलकल बहती सरयू और गंगा, उपर नीला स्वच्छ गगन, उस पर तरह-तरह के चित्र को रेखांकित करने वाले धवल कान्ति युक्त बादल। मन रोमांचित हो उठा।
अब हमारी गाड़ी जयप्रकाश नगर में प्रवेश कर चुकी है। विस्तृत भू-भाग वाले इस नगर में नीम, पीपल, आम, अशोक एवं कदम्ब इत्यादि के वृक्ष और जगह-जगह बने मकान तथा उनकी खिड़कियाँ दूर से ही दिखाई पड़ रही है। दाहिने तरफ एक हवेलीनुमा मकान था। पता चला कि यह मकान धनबाद के चर्चित कोयला माफिया रहे सत्यदेव सिंह का है। याद आया कि कभी कोयलांचल में सत्यदेव सिंह की तूती बोलती थी। भारत सरकार के खादी एवं ग्रामोद्योग परिसर के बाद दाहिने तरफ जयप्रकाश स्मारक परिसर का मुख्य द्वार है। अन्दर प्रवेश करने के बाद बायीं तरफ मकानों की श्रृखंला प्रारंभ हो गयी। उन पर बोर्ड भी टंगे हुए हैं। प्रभावती पुस्तकालय, गर्ल्स डिग्री काॅलेज, आचार्य नरेन्द्र देव बाल विद्या मंदिर, प्रभावती देवी इंटर काॅलेज, गेस्ट हाउस इत्यादि का अवलोकन करते हुए हम आगे बढ़ते रहे। सामने था लोकनायक जयप्रकाश नारायण का मकान। ईंट-सीमेन्ट से बना खपरैल छप्पर वाला मकान। चारों तरफ सादगी और स्वच्छता। मन नमित हो उठा। गाड़ी से उतरकर अन्दर की ओर प्रवेश करता हूँ। बरामदे में कुछ बेंच, टेबल और कुर्सियाँ सजी हुई है। मेरे कदम स्वतः अंदर की ओर बढ़ गए। एक बड़ा-सा आंगन और उसके चारों तरफ छोटे-छोटे कमरे। चंद्रशेखर कक्ष, भोजनालय कक्ष, स्नेहमयी कक्ष, अतिथि कक्ष और जयप्रकाश कक्ष। मैं ठिठक-ठिठक कर देखता रहा। जयप्रकाश कक्ष के सामने बरामदे में एक पुराना ड्रेसिंग टेबुल रखा हुआ था। उसपर की गई नक्काशी बरबस ही ध्यान आकृष्ट कर रही थी। फिर जयप्रकाश जी के कमरे में प्रवेश करता हूँ। छोटा सा कमरा है। उस कमरे में दो अलग-अलग पलंग।
दीवार की खूंटी पर एक बंडी टंगी हुई है, जो कभी लोकनायक पहनते होंगे। एक छोटे से कमरे में पति-पत्नी के लिए दो अलग-अलग पलंग! दोनों एक ही कमरे में सोते थे, परन्तु अलग-अलग पलंग पर। मुझे जयप्रकाश और प्रभावती के जीवन काल की वर्षों पुरानी घटना याद आ गयी। जब मैं जयप्रकाश जी की जीवनी लिख रहा था, तभी मुझे इस घटना की जानकारी हुई थी। लोकनायक को पूर्ण रूप से समझने के लिए उक्त घटना को जानना-समझना आवश्यक है। घटना कुछ इस प्रकार थी- जयप्रकाश और प्रभावती की शादी बहुत कम ही उम्र में हो गई थी। शादी के कुछ महीने बाद ही जयप्रकाश उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गये और प्रभावती गाँधी के साबरमती आश्रम में। जयप्रकाश का व्यक्तित्व-निर्माण अमेरिका में हो रहा था, वहीं प्रभावती का चरित्र-निर्माण गाँधी जी की छत्रछाया में। गाँधी जी के प्रभाव में आकर प्रभावती ने ब्रहाचर्य पालन की प्रतिज्ञा ले ली थी। जयप्रकाश उससे अनजान थे।