धनंजय कुमार उन युवाओं में से एक हैं जो चित्र या कलाकृति के निर्माण के साथ-साथ कला के वैचारिक पक्ष के भी हामी हैं I कला लेखन में उनकी रूचि को देखते हुए कुछ दिनों पहले आलेखन डॉट इन के द्वारा उनसे नियमित लेखन का अनुरोध किया गया था I उस अनुरोध के बाद उनके द्वारा भेजा गया यह यात्रा वृतांत पेश है आलेखन डॉट इन के पाठकों के लिए I इस अपेक्षा के साथ कि सुधि पाठक उनका उत्साह वर्द्धन अवश्य करें….I -मॉडरेटर
धनंजय कुमार
लोकसभा चुनाव – 2024 के दौरान मैं लगभग 20 दिनों तक दिल्ली में था और दिल्ली सहित पूरा भारतवर्ष चुनावी माहौल में रंग चुका था। 2024 का भारतीय आम चुनाव सात चरणों में आयोजित की गई थी और दिल्ली में छठे चरण (25 मई) की वोटिंग हो चुकी थी। आख़िरी चरण का मतदान 1 जून को 57 सीटों पर होने वाला था जिसपर सभी की नज़रें बनी हुई थी। कुल मिला कर देखें तो इतने बड़े लोकतंत्र में इस तरह का चुनाव आयोजित करवाना वाक़ई एक चुनौतीपूर्ण और थका देने वाला कार्य है।
31 मई को मैं अपने साथी और युवा कलाकार मुकेश के साथ देश के प्रतिष्ठित कला-लेखक और हमारे सीनियर सुमन सिंह से मिलने मंडी हाउस गया था। सुमन सिंह ललित कला के गेस्ट हाउस में जयंत सिंह तोमर व जोनी एमएल के संग, देश के प्रतिष्ठित कलाकार और कला-लेखक अशोक भौमिक के चित्रों की प्रदर्शनी के संदर्भ में बात कर रहे थे। वहाँ मैं और मुकेश उनकी बातों को सुन रहा था और बीच-बीच में हम उनकी बातों में शामिल भी हो रहे थे। थोड़ी देर में वे लोग एक निष्कर्ष पर पहुँच कर उन्होंने अपनी बात ख़त्म की और जोनी एमएल ने सुमन सिंह सहित मुझे और मुकेश को अपनी प्रदर्शनी में आमंत्रित करते हुए वहाँ से विदा ले लियें। प्रदर्शनी की ओपनिंग अगले दिन 1 जून को होने वाली थी।
अब जोनी दा वहाँ से जा चुके थे और जयंत सिंह तोमर आगे की यात्रा के लिए पैकिंग करने में व्यस्त हो गए। सुमन सिंह ने हम दोनों से राजनीति और कला के विविध आयामों पर अपनी बातचीत जारी रखी जो बिहार के संदर्भ में चल रही थी। उन्होंने हमें बिहार के सामाजिक न्याय और आर्थिक पिछड़ेपन के कई पहलुओं से अवगत कराया। हमारी बातचीत धीरे-धीरे बिहार की राजनीति के अस्थिरता के उस दौर में पहुँच गई जो 1960 के दशक से 1990 के बीच देखने को मिलता है। इसी क्रम में आगे बातचीत करते हुए सुमन दा बताए कि वह इन दिनों एक किताब लिख रहे हैं जो बिहार के वरिष्ठ कलाकार व शिक्षाविद् बीरेश्वर भट्टाचार्य की जीवन यात्रा पर केंद्रित है। बताता चलूँ कि बीरेश्वर दा पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय के पेंटिंग विभाग में भूतपूर्व प्राध्यापक रहे हैं एवं सुमन दा के गुरु भी रह चुके हैं। ख़ैर, किताब के संदर्भ में उनकी की बातों को सुन कर ऐसा लगा कि यह किताब बिहार की समकालीन कला इतिहास और पटना कला महाविद्यालय के क्रमिक विकास को वर्तमान समय से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।
अब 1 जून की शाम को मैं और मुकेश भारत आर्ट स्पेस गैलरी पहुँच गया जो गुरुग्राम में अवस्थित है। हमसे पहले वहाँ देश के कई चर्चित कलाकार व कलाप्रेमी मौजूद थे और जोनी एमएल शुरुआती वक्तव्य दे रहे थे। चूँकि जोनी दा देश के जाने-माने कला-लेखक, अनुवादक, इतिहासकार, कला समीक्षक, क्यूरेटर होने के साथ-साथ कला पत्रिकाओं के संपादक भी हैं तो उनके आयोजन में भीड़ होना स्वभाविक ही है। उन्होंने इस प्रदर्शनी को “ऑप-पॉप” के नाम से क्यूरेट किया था। यह प्रदर्शनी गुवाहाटी के युवा कलाकार नवाकाश के द्वारा रचे गए चित्रों की एकल प्रदर्शनी थी।
इधर 1 जून को आम चुनाव का आख़िरी चरण था और इस दिन जो वोटिंग के रुझान आ राहे थे वो भारतीय लोकतंत्र को अलग ढंग से परिभाषित कर रहा था, जो आज एक मज़बूत विपक्ष के रूप में हमारे सामने है। ग़ौरतलब है कि इस बार के लोकसभा में अनेक युवा सांसद भी चुन कर आये हैं जो विभिन्न समुदायों व क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व तो करते ही हैं साथ ही युवा आबादी वाले भारत का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में नवाकाश के चित्रों को देख कर ऐसा लगा मानो यह सारे चित्र इसी दिन के लिए बनाया गया है। उन्होंने अपने चित्रों में चमकीले और पॉपुलर रंगों को अपने कैनवास पर इस प्रकार लगाया था कि वो बिलकुल जादुई लग रहा था। फ़्रांसीसी ददावादी कलाकार वसारेली के शब्दों में कहें तो नवाकाश की पेंटिंग वाक़ई समझने के बजाय अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रही थी। पेंटिंग में शामिल जैविक आकारों और ज्यामितीय आकारों का संयोजन मुझे कलाकार की मनोरम दृश्यों वाले गाँव से बहुमंज़िली इमारतों वाले शहर की यात्रा का एहसास दिला रहा था। वहीं जोनी दा का क्यूरोटोरिअल अनुभव ने इस प्रदर्शनी को बेहद संजीदा बना दिया था जिसकी रसानुभूति करने के लिए मेरे ख़याल से कोई कला पारखी होने की ज़रूरत नहीं है।
इस प्रदर्शनी में मेरे लिए ख़ास बात यह रही कि इसमें प्रो. मृणाल कुलकर्णी मैम से लंबे अरसे (क़रीब 9 साल) बाद मुलाक़ात हुई, प्रो. मृणाल जमिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में कला इतिहास पढ़ातीं हैं I उनकी पढ़ाने की शैली इतनी उम्दा है कि पूरा हॉल छात्रों से भरा हुआ रहता था। शायद इसलिए ही वो न केवल मेरी बल्कि मेरे कई सहपाठियों के पसंदीदा शिक्षकों में से एक हैं। प्रो. मृणाल मेरी इसलिए भी पसंदीदा शिक्षक हैं क्योंकि इन्होंने मुझे वैश्विक स्तर पर इतिहास से लेकर वर्तमान समय तक कला के कई अनछुए पहलुओं से अवगत कराया, जिसके बारे में मेरा पहले से कोई खास परिचय नहीं था। आगे इस प्रदर्शनी में बिपिन कुमार, अरविंद सिंह, राजेंद्र प्रसाद सिंह, सूरज कुमार काशी, प्रवीण महतो, उमाशंकर पाठक सहित कई अन्य कलाकार जो हमारे सीनियर हैं और चर्चित कलाकार हैं, इन सभी से लंबे अरसे बाद मुलाक़ात हुई और कला अभ्यास को लेकर काफ़ी बातें हुई।
कुल मिला कर देखें तो दिल्ली की यात्रा और 1 जून को आयोजित यह प्रदर्शनी और अंततः 4 जून का चुनावी परिणाम काफ़ी उत्साहवर्धक रहा, इसने मुझे एक साथ कई अनुभूतियों से तरो-ताज़ा कर दिया।