शुभारंभ पर दो शब्द

संचार क्रांति के इस दौर में किसी भी वेबसाइट की शुरूआत कोई ऐसी घटना नहीं मानी जा सकती है जिसे ऐतिहासिक कहा जा सके। किन्तु अपनी बात करूं तो आज विजयादशमी (26 अक्टूबर 2020) जैसे पावन अवसर पर अपने लिए इसका संभव होना किसी सपने के सच होने जैसा है। लगभग तीन दशक के कला लेखन व चार दशक की अपनी कला यात्रा में यह महसूस होता रहा कि कला के विभिन्न पहलूओं पर बातचीत व चर्चा के लिए पर्याप्त मंच की बेहद कमी है। खासकर हिन्दी में । कुछ दशक पूर्व तक स्थानीय अखबारों व पत्रिकाओं में कला, साहित्य एवं संस्कृति के लिए जो थोड़ी बहुत जगह होती भी थी, कारपॉरेटीकरण के मौजूदा दौर में वह दिन-प्रतिदिन सिमटते सिमटते लगभग विलुप्त हो चुका है। इस बीच जिस नए मीडिया का आगमन हुआ उसे हम दूरदर्शन या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नाम से जानते हैं, वहां की बात करें तो कह सकते हैं कि ब्रेकिंग समाचारों की आपाधापी से भरे माहौल में टीआरपी की दौड़ ने तो कला एवं संस्कृति के लिए किसी गुंजाइश के बारे में ठीक से कभी सोचने का मौका ही नहीं दिया। ललित कला अकादमी से लेकर राज्य सरकारों की अकादमियों ने इस दिशा में कभी कुछ प्रयास अवश्य किए थे। लेकिन उनमें से अधिकतर या तो बंद हो चुके हैं या ठंढे बस्ते में डाल दिए गए हैं। स्थिति का अदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि नई दिल्ली स्थित ललित कला अकादमी की पत्रिका समकालीन कला का पिछला अंक कितने बरस पहले आया था, यह शायद इसके जिम्मेदारों को भी ठीक से पता नहीं होगा।
कला महाविद्यालयों की बात करें तो याद नहीं आता है कि हिन्दी पट्टी के किसी कला महाविद्यालय ने नियमित तौर पर अपनी वार्षिक पत्रिका निकालने को कभी सोचा भी हो, बहरहाल इस शून्य को काफी हद तक भरता अगर कुछ नजर आता है तो वह है एकमात्र अपना सोशल मीडिया। फेसबुक और व्हाट्सएप्प जैसे मंचों ने कलाकारों के आपसी संवाद को तो बढाया ही, अपनी बात रखने को एक सशक्त मंच भी प्रदान किया। अगर गौर से देखें तो अक्सर इन मंचों पर तमाम साथियों द्वारा अपने -अपने तरीके से कला के विभिन्न विधाओं और पहलूओं का विश्लेषण करते महत्वपूर्ण जानकारियां साझा होती रहती हैं। वहीं ब्लॉगर जैसे मंचों पर भी यह सक्रियता देखी जा रही है। ऐसे में इस वेबसाइट को बनाने के पीछे अपनी सोच तो यही है कि सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों के विभिन्न मंचों पर साझा हुए आलेखों को एक जगह पर लाया जाए। अब ऐसे में अपनी जरूरत तो यही है कि इस अभियान में तमाम साथियों का सहयोग और समर्थन मिले। क्योंकि इसके बगैर इसे चला पाने के लिए तो सोचना भी मुश्किल है। अपने देश के कला जगत की बात करें तो इस सच्चाई से हम सभी किसी न किसी रूप में वाकिफ ही हैं कि यह सब कुछ काफी हद तक कुछ चुनिंदा महानगरों तक सीमित होकर रह गया है। देश के विभिन्न अंचलों में रहने वाले कलाकारों के एक बड़े वर्ग की पहुंच इस कला जगत तक नहीं है।
इस मंच से हमारी कोशिश होगी कि कला के विभिन्न पहलूओं को रेखांकित करते आलेख के अलावा अन्य सामग्रियां भी यहां उपलब्ध हों। अभी तक जो रूपरेखा हमने बनाई है उसको व्याख्यायित करता हमारा टैगलाइन है, कला: बात, विचार और समाचार। अभी तक जितना कुछ भी संभव हो पाया है वह सब उन तमाम मित्रों के सहयोग और समर्थन का ही प्रतिफल है जिन्होंने हमारे अनुरोध पर लेखकीय भागीदारी निभाई है। उम्मीद है कि हमारा यह प्रयास कला जगत में व्याप्त ऊपर वर्णित कमियों की भरपाई की एक छोटी सी कोशिश साबित हो सकेगी। इस वेबसाइट के माध्यम से आप संपर्क वाले कॉलम में जाकर अपने लेख और तस्वीरों को ईमेल के माध्यम से हम तक आसानी से पहुंचा सकते हैं। हमारी संपादकीय टीम की अनुशंसा के उपरांत आपके लेख और विचार आलेखन.इन पर प्रकाशित कर दिए जाएंगे। साथ ही हमारा प्रयास यह भी होगा कि समय समय पर कला परिचर्चा भी आयोजित होते रहें। और हां आप अपने कला कार्यक्रमों व आयोजनों की सूचना के लिए हमारे इस माध्यम का उपयोग नि:शुल्क कर सकते हैं। अंत में एकबार फिर से मैं अपने लेखक व संपादकीय मित्रों तथा तकनीकी विशेषज्ञों के साथ साथ कलाप्रेमियों, कलाकारों व परिजनों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। जिनकी मदद के बिना यह सब होना तो लगभग असंभव ही था, साथ ही आगे भी इसी सहयोग की अपेक्षा आप तमाम कलाकारों व कला प्रेमियों से बनाए रखना चाहता हूं। विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं…
-सुमन कुमार सिंह

One Reply to “शुभारंभ पर दो शब्द”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *