पिकासो के बारे में एक आलोचक ने लिखा है, ” अपनी प्रतिभा से उन्होंने अपने पिता को आत्मसमर्पण के लिए मज़बूर कर दिया। आने वाले दिनों में कला का इतिहास भी इसी तरह के आत्मसमर्पण के लिए मज़बूर हो गया।
-विनोद भारद्वाज
(पुस्तक “बृहद आधुनिक कला कोष “)
निःसंदेह आधुनिक कला इतिहास में पाब्लो पिकासो ने जो पहचान बनायीं, वह अभूतपूर्व है। पैसा, ग्लैमर और प्रसिद्धि सब कुछ उन्हें जीते जी हासिल हुआ। ऐसे में जैसा कि स्वाभाविक था उनसे जुड़ी अनेक प्रसंग और कहानियां आज तक पढ़ने- सुनने को मिल जाती हैं। वरिष्ठ पत्रकार संजय श्रीवास्तव के सौजन्य से ऐसे ही कुछ रोचक और प्रेरक प्रसंग….

एक बार पिकासो की बातचीत एक अमेरिकन सेनाधिकारी से हो रही थी। बातों-बातों में अधिकारी ने पिकासो से कहा कि उसे अमूर्त चित्रकला पसंद नहीं है क्योंकि वह अयथार्थवादी होती है। पिकासो ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। बातों का दौर अब अधिकारी की प्रेमिका की ओर मुड़ चला था। अधिकारी ने अपनी प्रेमिका का फोटोग्राफ अपनी जेब से निकालकर पिकासो को उत्साहपूर्वक दिखाया।
फोटोग्राफ देखते ही पिकासो जोर से बोल उठे – “हे भगवान! क्या वह वाकई इतनी छोटी है!?”
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हम जानते हैं कि चित्रकार की ख्याति जब चरम पर पहुंच जाती है तो उसकी कला के जाली प्रतिरूप भी बाज़ार में मिलने लगते हैं जिन्हें वास्तविक चित्रकार द्वारा बनाया गया कहकर ऊंचे दामों पर बेचा जाता है। एक ज़रूरतमंद चित्रकार ने पिकासो द्वारा तथाकथित बनाया गया चित्र कहीं से जुटा लिया और उसे सत्यापन के लिए पिकासो को दिखाया ताकि वह उसे बाज़ार में बेचकर पैसे बना सके।
पिकासो ने उस चित्र को देखकर कहा – “फर्जी है।”
बेचारे चित्रकार ने कुछ समय बाद पिकासो द्वारा तथाकथित बनाये गए दो और चित्र कहीं से प्राप्त कर लिए। उन चित्रों को देखकर भी पिकासो ने उनके फर्जी होने की बात कही।
वह चित्रकार अब आशंकित हो उठा और बोला – “ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने अपनी आँखों से आपको इस दूसरे चित्र को बनाते हुए देखा है!”
पिकासो ने कहा – “तो क्या! मैं भी दूसरों की ही तरह फर्जी पिकासो बना सकता हूँ।”
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पिकासो ने एक बार अपने फ्रांस वाले भवन में महोगनी की एक आलमारी बनवाने के लिए कारपेंटर को बुलाया। कारपेंटर को आलमारी का वांछित डिजाईन समझाने के लिए पिकासो ने कागज़ पर आलमारी के आकार और रूप का एक स्केच बनाकर कारपेंटर को दिया।
पिकासो ने कारपेंटर से पूछा – “इसपर कितना खर्च आएगा?”
कारपेंटर ने कहा – “कुछ नहीं। बस आप स्केच पर अपने सिग्नेचर कर दीजिये।”
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पिकासो के दक्षिणी फ्रांस वाले भवन में आनेवाले मेहमान यह देखकर अचंभित हो जाते थे कि भवन में कहीं भी किसी भी दीवार पर पिकासो के चित्र नहीं लगे थे। किसी ने एक बार इस बारे में पिकासो से पूछा – “कमाल है! आपके घर में आपके ही बनाये चित्र नहीं है! क्या आपको अपने बनाये चित्र अच्छे नहीं लगते?”
पिकासो ने कहा – “ऐसी बात नहीं है। मुझे मेरे चित्र बहुत प्रिय हैं लेकिन मैं उन्हें खरीदने की हैसियत नहीं रखता।”
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एक बार एक प्रदर्शनी में पिकासो से एक महिला ने कहा – “मेरी बेटी भी आपके जैसे चित्र बना सकती है।”
“बधाई हो!” – पिकासो ने कहा – “आपकी बेटी तो जीनियस है!”
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पाब्लो पिकासो की महान सफलता उनके स्कूल शिक्षकों के लिए बहुत बड़ा आघात थी। पिकासो ने दस वर्ष की अवस्था में स्कूल छोड़ दिया था क्योंकि उन्हें पढने-लिखने में दिक्कत होती थी। वे वर्णमाला के अक्षर याद नहीं रख पाते थे।
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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों ने पेरिस को अपने कब्जे में ले लिया था। पिकासो के पेरिस वाले अपार्टमेन्ट में एक दिन खुफिया गेस्टापो पुलिसवाले आ घुसे। उन्होंने कमरे की दीवार के सहारे खड़ी पेंटिंग ‘गुएर्निका ’ को देखा जिसमें स्पेनिश गृहयुद्ध के दौरान जर्मन लड़ाकू विमानों द्वारा बास्क राजधानी पर बमबारी का चित्रण किया गया है ।
एक पुलिस अधिकारी ने गुएर्निका को देखकर पिकासो से पूछा – “ये तुम्हारा काम है?”
“नहीं” – पिकासो ने कहा – “ये तुम्हारा काम है”।
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पिकासो के चित्र बड़ी ऊंची कीमत पर बिक रहे थे। एक धनी अमेरिकी महिला पिकासो के स्टूडियो में चित्र खरीदने के लिए आई। एक अमूर्त पेंटिंग को देखकर उसने पिकासो से पूछा – “यह पेंटिंग क्या दिखाती है?”
पिकासो ने कहा – “दो लाख डॉलर”।
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एक दिन पिकासो दक्षिणी फ्रांस में समुद्र तट पर अपने एक मित्र के साथ सुस्ता रहे थे। एक छोटा लड़का उनके पास एक कागज़ लेकर आया। पिकासो समझ गए कि लड़के के माता-पिता किसी बहाने उनका ऑटोग्राफ हासिल करना चाहते थे।
पिकासो ने लड़के का निवेदन नहीं ठुकराया, लेकिन उन्होंने कागज़ लेकर फाड़ दिया और लड़के की पीठ पर एक आकृति बनाकर अपने हस्ताक्षर कर दिए।
इसके बाद पिकासो ने अपने मित्र से कहा – “ “मुझे लगता है, अब वे उसे कभी नहीं नहलायेंगे।”
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किसी ने एक बार पिकासो से पूछा कि उनकी सबसे प्रिय पेंटिंग कौन सी है।
पिकासो ने कहा – “अगली”।
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१९०६ में पिकासो ने गर्त्रूद स्टीन नामक एक लड़की की पेंटिंग बनाई थी और वह उसे उपहार में दे दी।कई सालों बाद करोड़पति अमेरिकी कला संग्रहकर्ता अलबर्ट बार्न ने गर्त्रूद से पूछा कि वह पेंटिंग बनवाने के लिए उसने पिकासो को कितनी रकम दी। “कुछ नहीं” – गर्त्रूद ने कहा – “उन्होंने तो वह मुझे उपहार में दे दी थी”। यह सुनकर अलबर्ट बार्न स्तब्ध रह गए।
बाद में गर्त्रूद ने पिकासो को इस बारे में बताया। पिकासो ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा – “वह नहीं समझ पायेगा कि उन दिनों बिक्री और उपहार में बहुत मामूली अंतर होता था.”
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१९४० का समय था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने शहरों पर जर्मन आक्रमण के भय से यूरोप में कलाकार पलायन करने से पहले अपनी कलाकृतियाँ बहुत कम दामों पर बेच रहे थे।
पेगी गुगेन्हीम नामक धनी अमेरिकी महिला नगर-नगर घूमते हुए महँगी कलाकृतियाँ औने-पौने दामों में खरीद रही थी। पिछले कुछ महीनों से वह प्रतिदिन एक पेंटिंग खरीदती आ रही थी। पिकासो के पेरिस वाले स्टूडियो में आने पर उसने कलाकार को अपने प्रशंसकों से घिरा पाया।
उसे वहां आया देखकर लोगों ने उसे रास्ता दिया। उसके हांथों में एक लिस्ट थी जो कला के जानकारों ने तैयार की थी। लिस्ट में खरीदने लायक कलाकृतियों के नाम लिखे थे। उसमें उन कलाकारों के नाम भी थे जिनकी पेंटिंग और शिल्प को खरीदने का वह निर्णय कर चुकी थी। यह सब उसके लिए एक सनक बन चुकी थी। पिकासो का नाम भी उस लिस्ट में था।
पिकासो ने उसे वहां आया देखा. बहुत देर तक तो वे उसे नज़रंदाज़ करते रहे, फिर उसके पास गए और उन्होंने उससे कहा – “मैडम, आप शायद गलत जगह आ गईं हैं। अंतर्वस्त्रों की दुकान सामनेवाली बिल्डिंग में है।”