इन दिनों अपने गृहराज्य में हूं, परिजनों से मिलना जुलना जारी है। 2 तारीख को जब सहरसा से बेगूसराय के लिए निकला तो पता चला प्रवीण भाई भी बेगूसराय में हैं। विदित हो कि प्रवीण गुंजन इन दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, वाराणसी के निदेशक हैं और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली से स्नातक रहे हैं। ऐसे में तय हुआ कि स्टेशन पर उनसे मुलाकात होगी। मेरी ईच्छा थी उनके फैक्ट रंगमंडल कार्यालय को देखने की।
तय समय पर वे स्टेशन पर मिल गए, 2 तारीख की रात में ही उनको बनारस के लिए निकलना था। फिर भी उनके आवास सह कार्यालय पर कुछ देर बिताया। बातचीत में जानकारी मिली कि प्रवीण जी से पहले भी कुछ स्थानीय कलाकारों ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पढ़ाई तो की, लेकिन उसके बाद अपना कार्यक्षेत्र दिल्ली या मुंबई ही रखा। इसके उलट प्रवीण जी ने जोखिम उठाकर बेगूसराय को ही अपना कर्मक्षेत्र बनाए रखा। कई वर्षों तक लागतार राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव शहर में आयोजित करते रहे। इन आयोजनों में देश के तमाम ख्यात रंगकर्मी और रंग आलोचकों की भागीदारी होती रही। स्थानीय स्तर पर उनके द्वारा रंगमंच को बढ़ावा देने का परिणाम यह निकला कि आज इस शहर के कई युवा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में शिक्षा ले रहे हैं या ले चुके हैं।

हालाँकि पिछले दिनों डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में हमारी मुलाकात हो चुकी थी I लेकिन वहां हमारी बातचीत राष्ट्रीय कला एवं रंगमंच परिदृश्य पर ही केन्द्रित रही I अपने शहर और उससे जुडी ज्यादा बातें नहीं हो सकी थी I
अपनी उम्र के इस दौर में मैं यह महसूस करता हूं कि भले ही दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में स्थान बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ता हो, लेकिन उससे कहीं ज्यादा कठिन है राजधानियों से दूर किसी गांव कस्बे या शहर में रंगकर्म को जारी रख पाना या माहौल तैयार कर पाना। प्रवीण भाई ने न केवल यह जोखिम उठाया, उसे साकार भी किया। बातचीत में प्रवीण स्वीकारते हैं कि स्थानीय स्तर पर अशोक कुमार अमर, प्राचार्य, चमथा महाविद्यालय, राजकिशोर सिंह, डायरेक्टर, विकास विद्यालय, डुमरी और स्थानीय विधायक राजकुमार सिंह के साथ साथ स्थानीय प्रबुद्ध जनों का भरपूर सहयोग मिला। वैसे बात जब बेगूसराय के रंगकर्म की आती है तो हम जैसों के ज़ेहन में आदरणीय डॉ. पी. गुप्ता जी एवं वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल पतंग जी का नाम आता है। पिछली सदी के सातवें आठवें दशक के हम जैसे युवाओं को तो यही नाम याद आते हैं।
बहरहाल यहां संलग्न है इस स्नेहिल मुलाकात के दौरान प्रवीण जी द्वारा आत्मीय स्वागत की यह तस्वीर। वैसे यहां यह बताना भी आवश्यक है कि प्रवीण जी से पहला परिचय लगभग चार दशक पुराने मित्र कला, रंगमंच, फिल्म और साहित्य में समान अधिकार रखने वाले रवींद्र त्रिपाठी जी के सौजन्य से हुई थी। धन्यवाद सहित शुभकामनाएं