- वर्तमान में लखनऊ में रहते हुए भारतीय कला जगत में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
- राजेन्द्र प्रसाद का आधुनिक कला जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान है।
- वाश शैली में आधुनिक प्रयोग के लिए चर्चित हैं राजेंद्र।
2 अक्टूबर 1958 गोरखपुर उत्तर प्रदेश में जन्मे राजेंद्र प्रसाद ने 1984 में ललित कला में स्नातक, 1995 में स्नातकोत्तर कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ से किया। इनके कला गुरु प्रसिद्ध वाश चित्रकार बद्री नाथ आर्य रहे। जिनके मार्गदर्शन में वाश जैसे महत्वपूर्ण शैली को ग्रहण किया और आज देश भर में इसे विस्तार दे रहे हैं। 1992-94 में राज्य संस्कृति फेलोशिप, उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा मिला। 1996 में उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी द्वारा शोध छात्रवृत्ति मिला। 1997-98,98-99 में नेशनल फेलोशिप मानव विकास संसाधन मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा मिला। उन्हें ललित कला अकादेमी, उत्तर प्रदेश द्वारा अखिल भारतीय और राज्य स्तरीय पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। वह अनेक राष्ट्रीय /अंतर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों में भाग ले चुके है, साथ ही अनेक महत्वपूर्ण कला शिविरों में भागीदारी निभायी है। राजेंद्र एक लोकप्रिय शिक्षक के रूप में जाने जाते है। कला एवं शिल्प महाविद्यालय और डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में एक प्रमुख कला अध्यापक के रूप में विख्यात रहे। उनके नेतृत्व में दोनों कला संस्थाओं के कला विभाग का चहुंमुखी विकास हुआ। लम्बे समय तक अनेक विषयों पर चित्र सृजन के उपरांत उन्होंने बुद्ध श्रंखला पर चित्र सृजन किया है।
वरिष्ठ चित्रकार राजेंद्र प्रसाद अपने कला गुरु बद्रीनाथ आर्य जी के बारे में कहते हैं कि वे कलाकार और शिक्षक के रूप में सदैव सर्वप्रिय रहे। उन्हें किसी भी छात्र को कहीं भी किसी समय किसी भी प्रकार से निर्देशित करने में कोई हिचक नहीं होती थी। वे रंगो के जादूगर थे। मैं आर्या साहब के संपर्क में अपने विद्यार्थी जीवन वर्ष 1981 से रहा। वे हमेशा मुझे अपनी शैली और पहचान बनाने के लिए प्रेरित करते रहे। वे हर विधा में पारंगत थे। वे एक चित्रकार के साथ साथ एक मूर्तिशिल्पकार भी थे, जिन्होंने अनेक मूर्ति शिल्प भी बनाये थे। वे किसी भी प्रकार के रंग को हमेशा बड़े ध्यान और तकनिकी बद्ध प्रयोग करते थे, जिसका प्रमाण यह है कि उनके ऑयल माध्यम में बनी कलाकृति को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। वे तैल रंग को भी वाश की तरह प्रयोग करते थे जो देखने वाले को आश्चर्य में डाल देता था। वे एक सच्चे मानवतावादी कलाकार थे। वे सभी के प्रिय कलाकार और शिक्षक रहे, जो अपना ज्यादातर समय अपने स्टूडियो और अपने चित्र सृजन में ही बिताते थे। वे महान प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे। मेरे और आर्या साहब के उम्र में बहुत फासला था लेकिन मेरे शिक्षक बनने के बाद वे मुझे एक मित्र के रूप में मानने लगे थे। यह उनका प्रेम ही था, लेकिन वे मेरे परम गुरु रहे इस बात का मैंने हमेशा ध्यान रखा। वे नरम दिल इंसान थे जिसका प्रभाव उनके चित्रों और रंगों में भी दिखता है।
उत्तर प्रदेश में वाश शैली- वाश चित्रण शैली में जहाँ बंगाल में अधिकतर पारंपरिक विषयों पर चित्रण हुए वही उत्तर प्रदेश के कलाकारों ने नवीन विषयों और रूपों का सृजन कर इस शैली में नवीन और असीमित प्रयोग किये है।उत्तर प्रदेश की कला में वाश शैली में चित्रण उसकी प्रमुख पहचान रही है। जिसका चलन आज कम हो गया है। स्वतंत्रता पूर्व जब असित कुमार हल्दार लखनऊ कला महाविद्यालय के प्राचार्य बने तब ही इस वाश चित्रण शैली की शुरुआत हो चुकी थी। बाद उनके शिष्य बद्रीनाथ आर्य और सुखवीर सिंह सिंघल ने इस वाश शैली का इतना विकास किया कि आज उनके चित्र उत्तर प्रदेश की चित्रकला का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन कलाकारों ने अधिकतर मानवीय आकृतियों के संयोजन निर्मित किये, क्योंकि अपनी पूर्ण विविधता में भारतीय यथार्थता को मानवीय आकृति के निरूपण द्वारा ही अभिव्यक्ति किया जा सकता है। सिंघल के अधिकांश चित्रों में भारतीय जनमानस के प्रति जुड़ाव और अनेकता में एकता का राष्ट्रीय बोध होता है। कम आकृतियों के साथ प्रमुख विषय को बनाने वाले वाश शैली में चित्रण करने वाले दूसरे कलाकार बद्रीनाथ आर्य रहे। जिन्होंने अपनी विशेष प्रतिभा और उत्कृष्ट चित्रण द्वारा वाश शैली को उत्तर प्रदेश की सीमाओं से निकाल कर राष्ट्रीय पहचान दी। उनके प्रारम्भिक विषय परंपरागत, धार्मिक, पौराणिक , सामाजिक जैसे “सांवरी”, “पी कहाँ”, “पेड़ की छांव”, “खेत की ओर” आदि में उत्कृष्ट रेखांकन द्वारा साधारण जीवन को अति माधुर्यता से दर्शाया है। बद्रीनाथ आर्य के शिष्यों में भैरोनाथ शुक्ल, राजेन्द्र प्रसाद, राजीव मिश्र प्रमुख है। वाश शैली में जन साधारण की अभिव्यक्ति करने वाले चित्रकारों में सनद चटर्जी, नित्यानंद महापात्रा, एस अजमत शाह, गोपाल मधुकर चतुर्वेदी और डी पी धुलिया भी हैं। इन सभी ने वाश शैली में पारंपरिक विषयो और रूपों को छोड़ कर समकालीन जीवन का चित्रण किया है। जो इनके चित्रों में रूपों की विविधता की वजह बन गयी।
– भूपेंद्र कुमार अस्थाना
2 अक्टूबर 2023 , लखनऊ