माना जाता है कि बिहार में कहीं भी अगर आप जमीन की खुदाई करें तो पुरातत्व महत्व की चीज़ों का मिलना लगभग तय है। आप किसी भी ग्रामीण इलाके में चले जाईये स्थानीय मंदिरों और उसके आसपास पुरातात्विक महत्व की प्रतिमाएं आपको मिल ही जाएँगी। हालाँकि इसके बावजूद यह दुर्भाग्य है कि स्थानीय लोगों से लेकर सरकार तक इसके प्रति गंभीर नज़र नहीं आती है। लगभग दो वर्ष पूर्व आयोजित एक कार्यक्रम में लेखक अरुण सिंह ने इन मुद्दों पर अपनी राय रखी, उनसे बातचीत की थी युवा रंगकर्मी जयप्रकाश ने । अनीश अंकुर की रिपोर्ट…
पटना, 5 अप्रैल 2019।
‘रंगविकल्प ‘ और ‘ बिहार म्यूजियम’ द्वारा आयोजित मूर्तिकला प्रदर्शनी के दौरान आज ‘ ‘बिहार में मूर्तियों की चोरी व तस्करी’ विषय पर बातचीत हुई। आज के अतिथि थे पत्रकार व लेखक अरुण सिंह। उनसे बातचीत की जाने माने रंगकर्मी जयप्रकाश। जयप्रकाश के इस सवाल कि मूर्तियों की इतनी तस्करी आखिर बिहार में क्यों होती रही है ?
अरुण सिंह ने कहा ” हमें अंग्रेजों को धन्यवाद देना चाहिए की उन्होंने यहां की मूर्तियों के खुदाई करवाई और उसके महत्व से परिचित कराया। लेकिन साथ साथ उन बहुमूल्य मूर्तियों को वे देश से बाहर ले जाकर तस्करी भी किया करते थे। आज़ादी के पहले उन मूर्तियों को आसानी से ले जाया करते थे आज़ादी के बाद वे यहां के लोगों को उकसा कर मूर्तियां ले जाते थे। कई बार मंदिर के पुजारियों को घूस देकर, प्रलोभन, तो कई बार उनकी हत्या कर मन्दिर की मूर्तियों को किसी प्रकार बाहर ले जाते थे। देश भर में जितनी मूर्तियां चोरी हुई हैं उसमें तीस प्रतिशत हिस्सा सिर्फ बिहार का है।”
अरुण सिंह ने आगे कहा ” अभी तेल्हाड़ा की खुदाई नीतीश कुमार के शासन में शुरू हुई। इससे काफी पहले आए वहां के लोगों को मूर्तियां मिलती रही है। उसमें कितनी मूर्तियां गायब हो गई कोई नहीं बता सकता। साथ ही लोगों के मन मे जागरूकता का भी अभाव रहा है। जब गाँवो आदि में मूर्तियां मिलती है तो लोगों को लगता है भगवान मिल गए हैं। जबकि उनका पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व रहा है। ”
अरुण सिंह ने यह भी बताया ” राहुल गैलरी से तारा की मूर्ति चोरी हुई, राजेन्द्र बाबू की गैलरी से चोरी हुई, दरभंगा महाराज के कलेक्शन से हाथी दांत की चोरी हुई जो संभवतः आजतक नहीं मिल पाई है। बिहार में इतनी चोरी हुई है कि अनुमान लगाना संभव नहीं है। यहां की मूर्तियां दुनिया भर के बड़े बड़े संग्रहालयों में है। ”
जयप्रकाश राय के भरतपुरा लाईब्रेरी की चोरी के बारे में पूछने पर अरुण सिंह ने बताया ” भरतपुरा दरअसल जमींदारों का घराना था। वहां इतनी कीमती चीजें थी कि उनके परिवार वालों को ही अहसास न था। बहुमूल्य पांडुलिपियां ऐसे ही लाल कपड़े में टेबल पर रखा रहता था। ” भरतपुरा लाइब्रेरी से फिरदौसी शाहनामा, जिसमें ईरान के राजा की सचित्र जीवनी थी, की प्रति सत्तर के दशक में चोरी चले जाने की घटना का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि कैसे प्रशासन, आर्ट डीलर, तस्कर आदि का गैंग ऑपरेट करता है, कैसे सी.बी.आई की जांच हुई, संसद में सवाल उठे, इंटरपोल के हस्तक्षेप के बाद भी नहीं मिल पाया। इसके लिए कानून भी बना लेकिन इसे ठीक से लागू नहीं किया जाता। ”
अरुण सिंह ने बराबर, मनेर, आदि का उदाहरण देकर बताया ” हमलोग अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति कतई चिंतित नहीं हैं वरना ऐसे जगहों पर लोग अपना या अपनी प्रेमिकाओं के नाम उकेर कर छेड़छाड़ करते हैं। ये अपनी महान विरासत के प्रति हमारी उदासीनता का परिचायक है।”
इस दिलचस्प बातचीत में शहर के कवि, साहित्यकार, मूर्तिकार व चित्रकार शामिल थे।