डॉ. सुनील विश्वकर्मा : रामलला के दिव्य – स्वरूप के परिकल्पक

  • डॉ. सुनील विश्वकर्मा ने रामलला के दिव्य स्वरूप की जिस कल्पना को रेखाओं में व्यक्त किया था उसी को अरुण योगीराज ने मूर्तरूप दिया था।‌
पिछले दिनों डॉ. सुनील विश्वकर्मा से सागर में भेंट हुई। वे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में ललित कला विभाग के अध्यक्ष हैं और साथ ही उत्तरप्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी तीन वर्ष के लिए उन्हें दी गई है। हमने सुनील जी से जानना चाहा कि उन्हें इतना महत्वपूर्ण अवसर किस तरह मिला। सुनील जी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के मेम्बर सेक्रेटरी डॉ सच्चिदानन्द जोशी की भूमिका को प्रेरणादायी मानते हैं । समिति में अयोध्या राज परिवार के सदस्य व कला – संगीत मर्मज्ञ यतीन्द्र मिश्र, राम मंदिर न्यास के गोविन्ददेव गिरि भी थे।
Jayant Singh Tomar
पिछले वर्ष जब रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का महोत्सव हुआ उससे डेढ़ साल पहले रामलला के विग्रह निर्माण के लिए कलाकारों से रेखाचित्र मंगाये जाने लगे थे। ८२ चित्र आये थे जिनमें अधिकांश दक्षिण भारत से थे। डॉ. सुनील विश्वकर्मा बताते हैं –
‘ मैं ने भी अपनी कल्पना के अनुसार चित्र भेजा था। अपेक्षा की गई थी कि साढ़े पांच वर्ष के प्रभु श्रीराम के बाल्यकाल का स्वरूप ऐसा हो जिसमें वे अजानबाहु दिखें, जनेऊ न हो, तुणीर न हो, उनमें नेतृत्व का गुण दिखाई दे और मर्यादा पुरुषोत्तम का भाव प्रकट हो।’
‘ आश्चर्य की बात यह थी कि मैंने जब रामलला का चित्र बनाया तो डेढ़ दो घंटे में एक ही बार में वह स्वरूप कागज पर रेखाओं में उभर आया। रबर को छूना भी नहीं पड़ा। ऐसा लगा जैसे कोई मेरा हाथ पकड़ कर बनवा रहा हो। ‘
‘ एक दिन अचानक नृपेन्द्र मिश्र जी का फोन आया था जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान सचिव व राम मंदिर न्यास के अध्यक्ष की भूमिका निभाते रहे हैं । उन्होंने दिल्ली आने के लिए कहा। दिल्ली में और भी कुछ कलाकारों को आमंत्रित किया गया था । समिति ने सबके चित्र देखने के बाद मुझे अगले दिन भी रुकने के लिए कहा। यहीं से स्पष्ट हुआ कि मेरे द्वारा प्रस्तुत स्वरूप समिति की कल्पना के सर्वाधिक निकट है। ‘
‘ विग्रह को साकार रूप देने के लिए मुख्य रूप से कर्नाटक के कलाकार अरुण योगीराज को चयनित किया गया था जिन्होंने कुछ ही समय पहले दिल्ली में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा भी बनाई थी। श्री गणेश भट्ट, सत्यनारायण पांडेय , अरुण देव, सुदर्शन स्थपति का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
‘सबको निर्देशित किया गया कि विग्रह पूरा होने तक सभी अयोध्या में ही रहेंगे। किस पत्थर में रामलला के ५१ इंच के विग्रह को उत्कीर्ण किया जाये इसे लेकर भी विचार किया गया। विग्रह के चारों ओर पत्थर का चौखट यह सोचकर बनाया गया कि स्नान कराते समय कलश टकराने से विग्रह को आघात न पहुंचे।’
डॉ. सुनील विश्वकर्मा कम और मीठा बोलते हैं। उत्तरप्रदेश के मऊ से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से चित्रकला की पढ़ाई की। वहां के अध्यापक प्रणाम सिंह के निर्देशन में पीएचडी की। पंद्रह साल पहले महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में पढ़ाना शुरू कर दिया था। अब वहीं प्रोफ़ेसर मंजुला चतुर्वेदी जी के अवकाश ग्रहण करने के बाद ललित कला विभाग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्हाल रहे हैं। कुछ समय के लिए चीन जाकर वहां की कला का अध्ययन किया व चीनी भाषा सीखी।
उत्तरप्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष के रूप में क्या योजना और चुनौतियां हैं?
इस प्रश्न के उत्तर में सुनील जी बताते हैं उत्तरप्रदेश सरकार ने प्रदेश भर में चौराहों पर देश के नायकों की मूर्तियां लगाने का दायित्व भी अकादमी को सौंपा हुआ है। ९८ करोड़ की मूर्तियां लगनी हैं इसके कारण वार्षिक कार्यक्रम बंद थे। मूर्ति बनाने के काम से समय मिलने पर ही अकादमी कोई और मौलिक काम हाथ में ले सकती है। फिर भी बहुत कम समय में आमंत्रित कलाकारों के रेट्रोस्पेक्टिव ( पुनरावलोकी प्रदर्शनी) , कला शिविर व बाबा योगेन्द्र सम्मान से गतिविधियों को प्रारंभ किया है। वरिष्ठ कलाकार श्याम शर्मा जी को अधिसदस्यता सम्मान के लिए आमंत्रित किया, स्लाइड शो किया, मोनोग्राफ बनवाया। क्षेत्रीय प्रदर्शनी की अवार्ड सेरेमनी कुम्भ में आयोजित की। बाबा योगेन्द्र सम्मान राज्यपाल के हाथों दिलाया गया। निश्चित किया है कि ये गतिविधियां तो हर साल करायेंगे।
-जयंत सिंह तोमर 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *