भारतीय कला आलोचना: परंपरा, संक्रमण और समकालीन विमर्श

भारतीय कला आलोचना का इतिहास एक जटिल, बहुआयामी और विचारशील यात्रा है, जो शास्त्रीय युग की सूक्ष्म सौंदर्य दृष्टियों से लेकर समकालीन समाज-सांस्कृतिक विमर्शों तक …

कलाकारों, माध्यम ने तुम्हें नहीं चुना है। खुद को इतने दिव्य मत समझो!

अपने इस आलेख में वरिष्ठ कला समीक्षक/ इतिहासकार जोनी एमएल चर्चा  कर रहे हैं, जाने-अनजाने में कुछ कलाकारों द्वारा किये जाने वाले बेतुके दावों में …

पुस्तकें पढ़कर पूरी करनी चाहिए या नहीं – मेरी पहली सीख

पुस्तकों को पढ़कर पूरी करनी चाहिए या नहीं – इस प्रश्न पर मेरी पहली सीख मुझे एम. कृष्णन नायर से मिली थी। वे एक ऐसे …

क्या क्यूरेटर कलाकृतियों के स्वामित्व के अधिकारी होते हैं?

समकालीन कला की दुनिया में हाल के वर्षों में “क्यूरेटर” एक महत्त्वपूर्ण भूमिका के रूप में उभरा है। आज जब कोई सुधि दर्शक किसी प्रमुख …

बीरेश्वर भट्टाचार्य: परंपरा, प्रयोग और प्रतिरोध की त्रयी में संलग्न एक कलाकार

“ कला एवं  शिल्प महाविद्यालय, पटना के कलागुरु बीरेश्वर भट्टाचार्य जी को चैटजीपीटी (chatgpt) जिस रूप में प्रस्तुत करता है, वह कुछ यूं है I …

जे. स्वामीनाथन: एक कलाकार, उनका विश्वास तथा विरोधाभास

प्रस्तुत है कला समीक्षक/ कला इतिहासकार जोनी एमएल के उस लेख का हिंदी अनुवाद, जो उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर साझा किया है I अपने …