“लखनऊ स्पेक्ट्रम 2025: विविधता और संवेदना का उत्सव”

लखनऊ, 1 नवम्बर 2025: भारत की सांस्कृतिक राजधानी लखनऊ, जहाँ तहज़ीब और रचनात्मकता की परंपरा आज भी जीवंत है, वहीं फीनिक्स पलासियो के साउथ एट्रियम …

भारतीय लघुचित्र शैलियों में माँ दुर्गा के रूप-स्वरूप का चित्रण

आदरणीय नर्मदा प्रसाद उपाध्याय भारतीय कला इतिहास के प्रमुख विद्वानों में से हैं, जिन्होंने विशेष रूप से लघुचित्र शैली पर गहन शोध किया है। वे …

चोला नटराज और आनंद कुमारस्वामी का विश्लेषण

भारतीय शिल्पकला में चोल वंश द्वारा निर्मित नटराज की कांस्य प्रतिमा न केवल एक मूर्तिकला है, बल्कि वह भारतीय दर्शन, भक्ति और लयात्मकता का मूर्त …

ब्लॉकबस्टर गोंड कला क्यों हर किसी को पसंद आ रहा है ?

वरिष्ठ कला समीक्षक/ कला इतिहासकार जोनी एमएल,अपने बेबाक लेखन के माध्यम से आलोचना के उन तमाम जोखिम को उठाते हैं I जिससे सामान्य तौर पर …

थॉमस मैकइवेली: ‘कला और अन्यता’ सांस्कृतिक पहचान का संकट

कला इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम आता है थॉमस मैकइवेली का, एक ऐसा कला आलोचक जिसने पश्चिम की श्रेष्ठता की अवधारणा के पाखंड को खंडित …

कला में अमूर्तता : स्वाभाविक परिणति या सांस्कृतिक-राजनीतिक रणनीति?

आधुनिक कला इतिहास में अमूर्तता (Abstraction) का आगमन एक निर्णायक मोड़ था, जिसने दृश्य भाषा की पारंपरिक शैलियों को चुनौती दी और एक नई प्रकार …