भारतीय कला आलोचना: परंपरा, संक्रमण और समकालीन विमर्श

भारतीय कला आलोचना का इतिहास एक जटिल, बहुआयामी और विचारशील यात्रा है, जो शास्त्रीय युग की सूक्ष्म सौंदर्य दृष्टियों से लेकर समकालीन समाज-सांस्कृतिक विमर्शों तक …

पोस्ट-मॉडर्न की धारणा: क्लेमेंट ग्रीनबर्ग की दृष्टि में

क्लेमेंट ग्रीनबर्ग 20वीं शताब्दी के एक प्रभावशाली कला समीक्षक थे। उन्होंने आधुनिक कला (Modern Art) को समझने और उसकी सीमाओं को तय करने में महत्वपूर्ण …

पुस्तकें पढ़कर पूरी करनी चाहिए या नहीं – मेरी पहली सीख

पुस्तकों को पढ़कर पूरी करनी चाहिए या नहीं – इस प्रश्न पर मेरी पहली सीख मुझे एम. कृष्णन नायर से मिली थी। वे एक ऐसे …

“Art and Discontent” : आधुनिकता के बाद की कला की खोज

थॉमस मैकइविली की पुस्तक Art and Discontent: Theory at the Millennium छह गहन निबंधों का संग्रह है, जिसमें वे आधुनिकता की परंपरागत स्थापना—फ़ॉर्मलिज़्म—और उसके बाद …

कला में अमूर्तता : स्वाभाविक परिणति या सांस्कृतिक-राजनीतिक रणनीति?

आधुनिक कला इतिहास में अमूर्तता (Abstraction) का आगमन एक निर्णायक मोड़ था, जिसने दृश्य भाषा की पारंपरिक शैलियों को चुनौती दी और एक नई प्रकार …

डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर में राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

डॉ. हरिसिंह गौर सागर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रदर्शनकारी एवं ललित कला विभाग में शिवरात्रि के दिन से दो दिवसीय (26 -27 फ़रवरी 2025) राष्ट्रीय संगोष्ठी …

जैसी प्रीति कुटुम्ब की, तैसी गुरु सों होय..

मुझे यकीन है कि मूर्तिकार मदनलाल से आप भी परिचित होंगे। क्योंकि मदनलाल हमारे समय के एक महत्वपूर्ण मूर्तिकार हैं। वर्ष 1954 में आजमगढ जिले …