ए. रामचंद्रन (29 अगस्त, 1935 – 10 फरवरी, 2024)
12 फरवरी, नयी दिल्ली। आज वरिष्ठ कलाकार ए. रामचंद्रन को अंतिम विदाई देने के लिए त्रावणकोर हाउस, नयी दिल्ली परिसर में उनके चाहने वालों का जमावड़ा सुबह ग्यारह बजे से एक बजे दोपहर तक लगा रहा। जहाँ वेद नायर, जतिन दास, रामेश्वर ब्रूटा, अशोक भौमिक समेत अनेक कलाकारों ने अंतिम दर्शन कर पुष्पांजलि अर्पित की। केरल के राज्यपाल माननीय आरिफ मोहम्मद खान, सोनिया गाँधी, डी. राजा एवं सीताराम येचुरी समेत अन्य गणमान्य जनों ने भी श्रद्धा सुमन अर्पित कर परिजनों को ढाढस बंधाया।
अच्युतन रामचन्द्रन नायर यानी ए.रामचंद्रन का जन्म केरल के अटिंगल में 29 अगस्त, 1935 में हुआ था। 2002 में, उन्हें ललित कला अकादमी का फेलो चुना गया और 2005 में, राष्ट्र की उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 2013 में, उन्हें महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, केरल द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था। आपने शांतिनिकेतन से ललित कला और शिल्प में डिप्लोमा करने से पहले केरल विश्वविद्यालय से मलयालम साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
भारतीय शास्त्रीय कला और विशेष रूप से नंदलाल बोस से गहराई से प्रभावित, रामचंद्रन एक आधुनिकतावादी शैली में आदर्श भारतीय कल्पना और सामाजिक-राजनीतिक प्रतीकों को चित्रित करके भारतीय सौंदर्यशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। शांतिनिकेतन में कला भवन में एक छात्र के रूप में, आपने रामकिंकर बैज और बिनोद बिहारी मुखर्जी जैसे कला गुरुओं के मार्गदर्शन में कला का अध्ययन किया। 60 के दशक के मध्य तक, आप दिल्ली चले आये और 1965 में कला शिक्षा में व्याख्याता के रूप में जामिया मिलिया इस्लामिया से जुड़ गए। बाद में, आप उसी विभाग में प्रोफेसर बन गए और 1992 में अपनी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति तक विश्वविद्यालय से जुड़े रहे।
शांतिनिकेतन के सांस्कृतिक और बौद्धिक परिवेश ने आपको भारत और अन्य पूर्वी सभ्यताओं की कला परंपराओं के करीब ला दिया, और यहीं पर आपने केरल के मंदिरों की भित्ति चित्रकला परंपरा पर अपना आजीवन शोध शुरू किया। शुरुआत में आपने अभिव्यक्तिवादी शैली में रचनाएँ की, जिसमें शहरी जीवन की पीड़ा प्रतिबिंबित होती थी, विशेष रूप से वह पीड़ा जो आपने कोलकाता शहर का दौरा करते समय देखी थी, लेकिन 1980 के दशक तक आपकी शैली में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया। शहरी वास्तविकता से हटकर, आपने अपना ध्यान आदिवासी सामुदायिक जीवन, विशेष रूप से राजस्थान की जनजातियों की ओर स्थानांतरित कर दिया, जिनके जीवन और संस्कृति ने आपकी कल्पना को एक नया आयाम दिया। सजावटी तत्व, नाटकीय माहौल और मिथकों को अपने गतिमान रेखाओं और जीवंत रगों से रूप की बेहतर समझ के साथ जो प्रस्तुति दी, देखते -देखते भारतीय समकालीन कला जगत उसकी कान्ति से आलोकित हो उठा।
आप अपने किस्म के ऐसे अनोखे भारतीय चित्रकार थे। जिनकी कृतियों में सौंदर्यबोध की शास्त्रीयता और संयोजनों में भारतीयता का रंग दिखता रहा है। एक और जहाँ जलरंग और तैलरंग दोनों ही माध्यमों को आपने सफलता पूर्वक साधा, वहीँ अपने रेखांकनों से भारतीय ग्रामीण समाज का वह चेहरा सामने लाया। जो आधुनिकता की होड़ और महानगरीय कोलाहल के बीच कहीं गायब सा होता जा रहा था।
2005 में पद्म भूषण से सम्मानित होने के साथ-साथ आपके नाम कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार हैं, जिनमें 2003 में राजा रवि वर्मा पुरस्कार और 1973 और 1969 दोनों में पेंटिंग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं। देखा जाए तो रामचन्द्रन के चित्रों से गुज़रना भारतीय वांगमय से गुज़रने जैसा है। आपके चित्र भारतीयता, भारतीय सौंदर्य दृष्टि, समाज और हमारे समय का सिंहावलोकन है।आपकी कला, कला के निरर्थक मूल्यों को ख़ारिज करते हुए भारतीय कला मूल्यों को स्थापित करती हैं ।
आपकी कलाकृतियां ललित कला अकादमी, कोच्चि (2019) सहित महत्वपूर्ण संस्थानों में प्रदर्शित की गयीं हैं ; किरण नादर कला संग्रहालय, नई दिल्ली (2018); क्लीवलैंड म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट, यूएसए (2017); राष्ट्रीय आधुनिक और समकालीन कला संग्रहालय, सियोल (2013); सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी कला संग्रहालय (2008); सिंगापुर कला संग्रहालय (2007); राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा, नई दिल्ली (2004); आधुनिक कला संग्रहालय, टोक्यो (1970); और क्योटो नगर संग्रहालय (1970) एवं अन्य । अपने कई एकल प्रदर्शनियां भी आयोजित की, जिनमें वढेरा आर्ट गैलरी, नई दिल्ली (2015, 2013); ललित कला अकादेमी, नई दिल्ली और कोच्चि (2014); ग्रोसवेनर वढेरा, लंदन (2008); गिल्ड आर्ट गैलरी, मुंबई और न्यूयॉर्क (2007-08); और नामी द्वीप, कोरिया (2005), इनमें से कुछ नाम हैं। उनके काम की महत्वपूर्ण पूर्वव्यापी प्रदर्शनियाँ 2004 में वढेरा आर्ट गैलरी, साथ ही 2003 में नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए), नई दिल्ली द्वारा आयोजित की गई हैं; साथ ही 1983 में कुमार गैलरी, आर्ट हेरिटेज, नई दिल्ली और जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई।
बड़े पैमाने पर भित्तिचित्रों के साथ-साथ अंतरंग लघुचित्रों में भी आप उतने ही कुशल थे। यहाँ तक कि भारत में सार्वजनिक कला (पब्लिक आर्ट) में आपका सर्वाधिक योगदान माना जाता है। श्रीपेरुम्बथूर में आपकी रॉक मूर्तिकला संभवतः आधुनिक भारत में सार्वजनिक कला का सबसे बड़ा उदाहरण है। 1986 में टोक्यो में युवा लोगों के लिए पुस्तकों पर अंतर्राष्ट्रीय बोर्ड की 20वीं कांग्रेस और युवा लोगों के लिए पुस्तकों पर जापानी बोर्ड की अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी, ओइता में मुख्य वक्ताओं में से एक के रूप में जापान में आपको आमंत्रित किया गया था। 1996 में यूनेस्को के विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के हिस्से के रूप में आपने पापुआ न्यू गिनी में साक्षरता और चित्रण के लिए एक कार्यशाला में भाग लिया। आपने अनेक पुस्तकों के लिए रेखांकन भी किये जिनमें अन्य उल्लेखनीय प्रकाशनों के अलावा, मलयालम लेखकों द्वारा बच्चों के लिए लिखी गई चालीस पुस्तकें भी शामिल हैं।