विजय सिंह : मूर्त-अमूर्त और अध्यात्म का समीकरण

अपने अजित दूबे जी की विशेष पहचान यूँ तो एक छापा कलाकार व प्राध्यापक की रही है, किन्तु यहाँ वे उपस्थित हैं अजितानन्द के रूप में। इस बदले हुए रूप में इन दिनों उनका कला लेखन सोशल मीडिया पर जारी है, हमारे विशेष अनुरोध पर उन्होंने आलेखन पेज के लिए नियमित तौर पर लिखते रहने की सहमति दी है। मेरी समझ से उनके लेखन के इस अंदाज़ में जहाँ बहुत कुछ नया है वहीँ आम पाठकों से लेकर कलाकारों और विशेषकर छात्र कलाकारों के लिए कलाकृतियों को देखने- समझने की एक नयी दृष्टि विकसित करने का प्रयास भी सम्मिलित है । अपनी कला की दुनिया में यूं तो कहने के लिए बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन क्या इस बहुत कुछ में वाकई कुछ नया भी है ? या सिर्फ अनुकरण और कहीं कहीं भोंडी नक़ल का लगातार दुहराव ही है। उम्मीद है कि हमारे सुधि पाठकों को कला आलोचना का उनका यह तेवर या ढंग भीड़ से अलग होने का अहसास दिला पायेगा।

 

Title: Chita bhumi (Funeral Land).  By: Vijay Singh
मूर्त और अमूर्त नदी के दो किनारे हैं। जिस में पानी नहीं होता और न ही कोई जमीन होती है। यहाँ शून्य होता है। और इस शून्य का अपना वेग, अपनी रफ्तार होती है, जो मूर्त को अमूर्त तक पहुँचा सके। मूर्त को छोड़ कर ऐसा कोई भी रास्ता नहीं बना जिसके द्वारा अमूर्त तक पहुँचा जा सके। एक ही रास्ता है, एक ही विकल्प है दूसरा कोई नहीं। इसलिए मूर्त की सीढ़ी पर हमें चढ़ना होगा। चाहे वह ध्यान हो,सोच हो, भाव हो या रेखा हो। इन सबों में मूर्त किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है, चाहे उसकी मात्रा कुछ भी हो। जब मूर्त की यात्रा प्रारंभ होती है तो न जाने कितनी बार मूर्त अपना स्वरूप बदलते, अमूर्त में प्रवेश करते हुए शून्य हो जाता है। जिसे हम देख नहीं सकते। लेकिन कलाकार एक ऐसा प्राणी है जो देखता है। अमूर्त के हर पड़ाव को कलाकार स्वयम देखता है और दिखलाता भी है। ऐसे ही एक कलाकार बनारस की गलियों में, वहाँ के घाट और सड़कों पर एक जमाने से घूम रहा है, खोज रहा है, अमूर्त का वह पड़ाव, अमूर्त का वह स्वरूप जो बनारस की आत्मा है।

Title: “Spirit of banaras”   Year: 2004, By: Vijay Singh
ये कलाकार हैं श्री विजय सिंह। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, BHU वाले। फाइन आर्ट्स फैकल्टी में एक छोटा सा कमरा, एक टेबल, एक कुर्सी और साथ में रंगों का ढेर, ब्रशों का जमावड़ा और सामने छोटे-बड़े कागज-कैनवास का फैलाव, जहाँ से बनारस की आत्मा अमूर्त चित्रण के रूप में बाहर निकलती है। ताकि हम देख सकें बनारस की एक ऐसी छबि जिसमें मूर्त-अमूर्त और अध्यात्म (आस्था) तीनों का समावेश हो। विजय सिंह की कला यात्रा यही से प्रारम्भ होती है, जिसमें हम देखते हैं बनारस का वह अमूर्त रूप जिसे किसी ने चित्रित नहीं किया।

यूरोपियन चित्रकारों द्वारा बनाये गए चित्रों में, मूर्त से अमूर्त के बहुत सारे उदाहरण हैं। पॉल सेजां ने माउन्ट सेंट विक्टर के अनगिनत चित्र बनाये। इन चित्रों में पहली बार अमूर्त और क्यूबिज़्म के तत्व दिखलाई पड़ते हैं। कहा जाय तो पॉल सेजां ही अमूर्त और घनवाद (Cubism) के पितामह थे। वस्सिली कैंडिंस्की (Wassily kandinsky ) के द्वारा 1911 में बनाई गई जलरंग पेंटिंग कम्पोज़िशन - 5 ("Composition-v") को दुनिया की पहली अमूर्त कलाकृति मानी जाती है। इसके पहले भी 1906, स्वीडिश कलाकार हिल्मा ऍफ़ क्लिंट (Hilma af Klint) के चित्र स्पिरिचुअल फोर्सेस (Spiritual Forces) में अमूर्त के प्रारंभिक तत्व मिलते हैं।

Title: “Banaras through my eyes ” Year: 2018 By: Vijay Singh
लेकिन विजय सिंह ने मूर्त-अमूर्त के साथ अध्यात्म तीनों को एक साथ दर्शाया है। तीनों को हम देख सकते हैं, उन्हें अलग कर सकते हैं। अध्यात्म और आस्था दोनों एक दूसरों से जुड़े हैं। एक के बाद दूसरा आता है, पहले आस्था फिर अध्यात्म। आस्था में प्रकाश का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रकाश और रंग ही आस्था के भाव को उत्पन्न करते हैं, जो अध्यात्म की ओर जाता है, और यही विजय सिंह के चित्रों में तरंग के रूप में चित्रित है। इनके अधिकांश चित्र Vertical - खड़ी अवस्था में बने हैं। जिस पर दृष्टि नीचे से ऊपर की ओर जाती है, अर्थात उर्ध्वगामी है। इनके चित्रों में गाढ़ा रंगों का प्रयोग कर रंगों के घनत्व को बढ़ाया गया है, ताकि प्रकाश के सूक्ष्म रूप को दिखलाया जा सके। कुछ चित्रों को छोड़ कर इनके अधिकांश चित्रों में रुचि का केन्द्र विंदु सतह पर है, धरातल पर है जो एक अदृश्य त्रिकोण की रचना करती है। यदि हम काल्पनिक त्रिकोण को देखें तो इनकी तीनों भुजाएं ऊपर की ओर एक विंदु पर मिलती है, जो अध्यात्म की ऊँचाई है, अमूर्त की ऊँचाई है और यही से ब्रह्माण्ड की यात्रा प्रारम्भ होती है, जिसे हम अनुभव कर सकते हैं, देख नहीं सकते। विजय सिंह की कलाकृति में त्रिकोण का यही रहस्य है।

Title: Chita bhumi (Funeral Land).Year: 2006,By: Vijay Singh
इस त्रिकोण का अच्छा उदाहरण इनकी पेंटिंग "चिता भूमि (Funeral Land)" में देख सकते हैं। यहाँ पर पिकटोरिअल स्पेस (पेंटिंग) का केन्द्र विंदु - रुचि का केंद्र सतह पर नीचे की ओर है और यही पर अदृश्य त्रिकोण की रचना होती है, जो हमारी दृष्टि को ऊपर की ओर ले जाती है। इस चित्र में विषयवस्तु "चिता" है जिससे निकलती हुई ज्वाला उर्ध्वगामी है। इस चित्र में पिकटोरिअल स्पेस को सक्रिय बनाने के लिए तीन तरफ से गाढ़े (काला) रंग का प्रयोग किया गया है ताकि हमारी आँखे विषयवस्तु के आस-पास घूमती रहे।

यदि देखा जाय तो विजय सिंह की पेंटिंग में तीनों रूप (मूर्त-अमूर्त, अध्यात्म), और तीनों की उपस्थिति का संगम है, जो बनारस की आत्मा है।

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