संस्मरण: ख़लीक अश्फाक खान

अब के हम बिछड़े तो शायद ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
– अहमद फ़राज़

Jai Krishna Agarwal

 

हाल ही में यासिर हमीद साहब ने एक काफीटेबिल बुक मुझे भेजी, बस वही लिये बैठा हूँ और दोहरा रहा हूं अहमद फ़राज़ साहब की गजल का मतला…
अब के हम बिछड़े तो शायद ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें…

किताब ‘ए जर्नी इन कलर्स’ मेरे लम्बे अरसे से बिछुड़े हुए साथी ख़लीक अश्फाक खान की कला और जीवनी पर तरू और यासिर हमीद ने लिखी थी। ख़लीक अश्फाक लखनऊ के कला महाविद्यालय में 1963 बैच के छात्र रहे थे। बेहद शान्त, संजीदा और अपने काम में हमेशा मशगूल रहने वाले खलीक और हम लोगों के बीच दुआ-सलाम के अलावा बहुत कम बात हो पाती थी। ख़लीक के पास अल्फाज़ों से अधिक रेखाएं थीं रंग थे आकार थे और कुदरत की खूबसूरती से रुबरू होने की सलाहियत थी। अपनी कला की शिक्षा पूरी कर वह लखनऊ छोड़ कर ऐसे गये कि एक लम्बे अरसे तक हमलोग एक दूसरे के ख्वाबों में ही रहे बस ख़लीक के गुलाब के फूलों के रंग मेरे जेहन की किताब में पैबस्त हो कर रह गए। फर्क सिर्फ इतना था कि मेरे जेहन की किताब के फूल तरोताज़गी से भरे रहे और एक दिन उनकी खुशबू ने मुझे अपने ख्वाबों से बाहर आने के लिये मजबूर कर दिया और मैने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की प्रो.बदर जहां को फोन मिला दिया। यह एक इत्तेफाक ही था की वह ख़लीक की शागिर्द निकलीं और मुझे उनकी ख़ैरियत के हाल के साथ फोन नम्बर भी मिल गया।

होली, वाटर कलर वाश – 1961

लगभग उनसठ (59) साल बाद मैं ख़लीक से सम्पर्क कर रहा था। कितने ही विचार मेरे जेहन में उभर रहे थे। पता नहीं ख़लीक मुझे पहचान भी पायेगा पर फोन मिलते ही मुझे लगा वख्त और दूरियों के बावजूद भी हमारे सम्बन्धों में कोई फर्क नहीं आया था। वही जानी पहचानी आवाज़ बस बढ़ती हुई उम्र से थोड़ा लहजा बदल गया था। लम्बे समय तक हम गुज़रे समय की यादें ताज़ा करते रहे और अब जल्दी मिलने का वादा कर इन्तजार कर रहा हूं सफर के लिये माफिक मौसम का,आखिर बूढ़ा तो मैं भी हो चला हूं।

सेल्फ पोर्ट्रेट, आयल आन कैनवास – 1969

ख़लीक का ताल्लुकु शाहजहांपुर के एक सभ्रांत परिवार से रहा है। लखनऊ के कला महाविद्यालय से सन् 1963 में फाइन आर्ट का पाठ्यक्रम पूर्ण कर कुछ साल यहीं आर्ट मास्टर्स ट्रेनिंग कोर्स में अध्यापन कार्य करने के बाद अलीगढ़ चले गये और एक लम्बे सृजन के दौर से गुजरते हुए 1995 में वूमेन्स कालेज, ए.एम.यू. के फाइन आर्ट विभाग से सेवानिवृत्त हो गये। खलीक अपनी सेहत से संघर्ष करते हुये आज भी सक्रिय हैं।

स्टिल लाइफ, आयल आन कैनवास- 1980

ख़लीक जब लखनऊ में रहे थे अपनी फूलों की तस्वीरें खासतौर से गुलाब के लिये जाने जाते रहे किन्तु वाटर कलर वाश, पोर्ट्रेट, और लैडस्केप आदि में भी उन्हें मसर्रत हासिल थी। ख़लीक और उनकी कलाकृतियों के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है किन्तु यहां उनका मुख्तसर सा परिचय ही दे पा रहा हूं। सच तो यह है कि किसी भी फनकार का परिचय उसकी मूल कलाकृतियां ही होती हैं। इन्तजार है उस वख्त का जब उत्तर प्रदेश में आधुनिक कला गैलरी की स्थापना होगी और ख़लीक अश्फाक जैसे कितने ही कलाकारों की कला से आम आदमी रुबरू हो सकेगा…

ग्लैमर इन स्कारलेट- 2011

All these images were lifted from the book ‘A Journey in Colours’ Khaleeq Ashfaq Khan by- Author Taru and Co-author Yasir Hameed.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *