मेहर अफरोज़ : लखनऊ आर्ट कालेज की एक ज़हीन छात्रा

बात चाहे सिंधु घाटी सभ्यता की करें या वैदिक सभ्यता की, जिस भूभाग पर यह पनपी और पली उसे आज हम भारत और पाकिस्तान नामक दो अलग अलग देश के तौर पर जानते हैं। निःसंदेह पिछली सदी में घटित राजनैतिक घटनाक्रमों की यह देन आज का यथार्थ है। किन्तु उससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इसने हमारी कला एवं संस्कृति को भी क्षति पहुंचाई। कतिपय इन्हीं कारणों से हम अपने उन कलाकारों से भी आज परिचित नहीं हैं जिनकी कला शिक्षा वर्तमान हिंदुस्तान के कला संस्थानों में हुयी। जिसका कारण सिर्फ यह रहा कि पारिवारिक कारणों से वे वर्तमान पाकिस्तान चली गयीं। अपने इस आलेख में कला गुरु जयकृष्ण अग्रवाल याद कर रहे हैं लखनऊ कला महाविद्यालय की पूर्व छात्रा मेहर अफ़रोज़ को….

Prof. Jaikrishna Agarwal

लखनऊ के गलियारों और मेहराबों के बीच से गुज़रता हुआ बचपन जवानी की दहलीज़ पर क्या पहुंचा जमीन से नाता ही टूट गया। मेहर अफरोज़ को लखनऊ और नहीं रोक सका बस लखनऊ के गवर्नमेंट कॉलेज आफ आर्ट एंड क्राफ्ट से अपनी पढाई पूरी कर चली गई सरहद के पार एक नए कैनवास की तलाश में। उन दिनों कराची का माडर्न आर्ट मूवमेंट जोर पकड़ रहा था। जल्दी ही मेहर उसमें मशगूल हो गई पर जब जब कोरे चिट्टे सफेद कैनवास से उनका सामना होता लखनऊ की यादें उभरने लगतीं। अकसर उसे लगता कि वह बहुत कुछ पीछे छोड़ आई है। आज पचास साल बाद भी मेहर के कैनवास से लखनऊ की मिट्टी की महक आती है जो उन्हें कराची के माहौल में एक अलग पहचान देती है।

मेहर अफरोज़

सन् 1971 बैच की मेहर अफरोज़ गवर्नमेंट कालेज आफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट, लखनऊ में पेटिंग सीखने आईं थीं उन दिनों प्रिंटमेकिंग सिखाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी। मेहर को इस मीडियम में काम करना बहुत भाया। शुरू से ही मेहर को कुछ नए की तलाश रहती थी और प्रिंटमेकिंग में उन्हें कुछ नया और कुछ अलग हटकर करने का मौका मिला। मुझे आज भी याद है उनके कोलोग्राफस् जिसकी कटआउट फार्म्स के साथ टैक्सचर का बखूबी इस्तेमाल किया गया था और कहीं न कहीं लखनऊ की पुरानी इमारतों पर चूने सुर्खी के मसाले (स्टको) की नक्काशी से प्रभावित नजर आते थे। मेहर ने पेटिंग और प्रिंट मेकिंग की सभी टैक्नीक्स में उम्दा काम किया था।

Artwork by Mehar Afroz

आज मेहर ने अपनी क्रियेटिविटी से वह मुकाम हासिल कर लिया है जिससे मुझे ही नहीं लखनऊ के आर्ट कालेज को भी फख्र है। वह हमेशा एक एक्सपेरिमेंटल आर्टिस्ट रहीं हैं। उन्होंने लगभग सभी मीडियमस् में कार्य किया है। खासतौर से उनकी महारत प्रिंट मेकिंग और पेटिंग में रही है किन्तु उन्होंने इंस्टालेशन आदि में भी बाखूबी अपना हाथ आजमाया। मेहर के कामों में इस्लामिक कैलीग्राफ़ी की भी झलक मिलती है जो कहीं न कहीं अमरोहा में पैदा हुए शायर कलाकार सादिकैन साहब की याद ताज़ा कर देती है। अपनी पचास साला क्रियेटिविटी के दौर में मेहर ने एक अलग और ख़ास पहचान बनाई है जिसके लिये उन्हें पाकिस्तान सरकार के प्राइड आफ परफॉर्मेंस एवार्ड के साथ बहुत से मौकों पर नेशनल और इन्टरनेशनल एवार्ड से नवाज़ा जा चुका है।

Artwork by Mehar Afroz

मेहर कराची में रहकर अपनी क्रियेटिव एक्टिविटीज़ में आज भी मशगूल हैं और अपनी कला से इनसानियत का चिराग रौशन कर रहीं हैं।

An Installation by Mehar Afroz

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