कलागुरु मदन लाल नागर : एक संस्मरण

आचार्य मदनलाल नागर जी की जन्मशती के अवसर पर, प्रस्तुत है उनके शिष्य एवं सहकर्मी रहे प्रो. जयकृष्ण अग्रवाल सर की कलम से …

Prof. Jaikrishna Agarwal
  • उत्तर प्रदेश में आधुनिक कला के प्रणेता, भारतीय कला परिदृश्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर और अपने गुरु प्रो. मदन लाल नागर की जन्मशती पर उनकी स्मृतियों को शत-शत नमन्
  • एक चितेरा जिसने हाथ में जब ब्रुश पकड़ा अंतसमय तक थामे ही रहा। ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व आचार्य मदन लाल नागर जी से मेरी पहली भेंट

वर्ष 1956 -57, प्रयागराज (इलाहाबाद)।

 

मैं अपने मामा बाबू राधा कृष्ण अग्रवाल जो उनदिनों लोक सेवा आयोग के सदस्य थे, उनके साथ प्रयागराज में रहकर पढ़ रहा था। मैं विज्ञान का छात्र था किन्तु कला में मेरी रुचि सर्वविदित थी। एक दिन मामा के पीए मिस्टर चैट्री ने कहा कि आज आयोग में बड़े-बड़े कलाकार आ रहे हैं। उन्हें देखने की मैंने इच्छा वयक्त की तो मिस्टर चैट्री ने तुरंत समाधान भी निकाल दिया और मुझे अपने साथ आयोग ले गये। उस दिन लखनऊ के राजकीय कला एवं शिल्प महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिये साक्षात्कार होना था।अभ्यर्थियों में मदनलाल नागर जी भी थे और महाविद्यालय के प्रधानाचार्य श्री सुधीर रंजन ख़ास्तगीर टैकनीकल एक्सपर्ट के रूप में आये थे। मै साक्षात्कार की कार्यवाही पीए के कक्ष से झांक कर देख रहा था। अधिक तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था किन्तु लम्बे कद और आकर्षक व्यक्तित्व के नागर जी की छवि ने अवश्य प्रभावित किया था। एक हल्की सी झलक उनके चित्रों पर भी पड़ी थी जो वह साक्षात्कार के लिये लाए थे। यह उनके कैरियर का अंतिम साक्षात्कार था इसके बाद नागर जी ने किसी भी पद के लिये कभी आवेदन नहीं किया यहां तक कि लखनऊ कला महाविद्यालय के प्रधानाचार्य पद के लिये भी जिसके वह वास्तव में हकदार थे।

लखनऊ : कला स्रोत फाउंडेशन द्वारा प्रोफेसर मदन लाल नागर जी की जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित उनकी कृतियों की प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर वरिष्ठ कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल, जयकृष्ण अग्रवाल एवं अन्य। प्रदर्शनी दर्शकों के लिए 15 जून, 2023 तक नित्य 2.00 बजे से सायंकाल 8.00 बजे तक खुली रहेगी।

जीवन में कोई कोई दिन बड़ा विशेष होता है। मेरे लिये तो वह दिन अविस्मरणीय रहा। उसी दिन शाम की चाय पर मामा जी खास्तगीर साहब को घर ले आये थे। यह एक विचित्र संयोग ही था कि भविष्य में होनेवाले अपने दोनों गुरुओं के दर्शनों का मुझे लाभ मिला। खास्तगीर साहब के निकट बैठ कर अपने आधे अधूरे प्रयासों को दिखा पाने की तो कल्पना भी नहीं कर सकता था। इसके तुरंत बाद स्थितियों में अप्रत्याशित बदलाव आया जिससे लखनऊ कला मंहाविद्यालय में प्रवेश लेना मेरे लिये आसान हो गया जो उस समय तक असम्भव था। मेरे अभिभावक मुझे मैडिकल कालेज में प्रवेश दिलवाने का निर्णय जो ले चुके थे।

कला महाविद्यालय में प्रवेश लेने के उपरांत आचार्य नागर जी के सीधे सम्पर्क में आना मेरे लिये अत्यंत सौभाग्य की बात थी। पहले छात्र और बाद में उन्हीं के अधीनस्थ रहकर अध्यापन करने के सुअवसर ने मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी। उनके निकट सानिध्य का लाभ एक लम्बे अरसे तक मिला। उनसे जुड़ी इतनी अधिक स्मृतियाँ हैं कि एकबार में दुहराई नहीं जा सकतीं। समय-समय पर बहुत कुछ फेसबुक पर साझा करता रहा हूं और शायद यह क्रम बना ही रहेगा।

आचार्य मदन लाल नागर जी Photo: Jaikrishna Agarwal

एक समर्पित कलाकार और अध्यापक होने के साथ नागर जी का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि वह तो जैसे सिर्फ देने के लिये ही बने थे। जीवनपर्यन्त वह देते ही रहे। कहते है कि कुछ पाना है तो हाथ तो फैलाना ही पड़ेगा। किन्तु जिस हाथ ने सदैव पेन्ट ब्रुश पकड़े रखा वह कुछ पाने के लिये आगे कैसे बड़ता। यह तो प्रसाशन, समाज और कलाजगत का दायित्व था कि उन्हें अधिक नहीं तो कमसे कम वह मान सम्मान तो देते जिसके वह वास्तविक हकदार थे।

आज नागर जी की जन्मशती के अवसर पर उनकी स्मृतियों को नमन् करते हुये मैं भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि आचार्य मदनलाल नागर के कलाजगत में अतुल्य योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें मरणोपरांत पद्म पुरस्कार प्रदान करे जो वास्तव में उन्हें बहुत पहले अपने जीवनकाल में ही मिल जाना चाहिए था।

मदन लाल नागर जी की एक कलाकृति

मैं उत्तर प्रदेश सरकार से भी अनुरोध करूँगा कि सदी के श्रेष्ठ कलाकार, कला गुरु और उत्तर प्रदेश के कला जगत के उन्नयन के लिये समर्पित आचार्य मदनलाल नागर की स्मृतियों को संरक्षित करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाए जिससे आगे आने वाली पीढियाँ प्रेरणा ले सकें।

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