अनेक कलाकार जीवन भर कला साधना में अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं किन्तु उनके जाने के बाद रह जातीं है शेष केवल स्मृतियाँ।
उत्तर प्रदेश के आधुनिक कला परिदृश्य में अनेक सृजनशील कलाकार उभरे किन्तु धुनिक कला दीर्घा और आवश्यक अभिलेखीकरण के अभाव में उनके कृतित्व से आनेवाली पीढ़ी वंचित हो रही है। ऐसे ही एक कलाकार और कलागुरू स्व.नित्यानंद महापात्रा है। उनके जाने के उपरांत उनकी रचनाधर्मिता के प्रमाण उनकी कलाकृतियां भी लगता है कालकर्वित हो गईं हैं।
महापात्रा जी का जन्म सन् 1931 में ओडिशा की जगन्नाथ पुरी में हुआ था। उनकी कला शिक्षा उत्कल स्कूल आफ आर्ट, गवर्नमेंट स्कूल आफ आर्ट, कोलकाता और लखनऊ के कला महाविद्यालयों में हुई थी। सन् 1957 में राजकीय कला एवं शिल्प महाविद्यालय,लखनऊ में प्रवक्ता पद पर उनकी नियुक्त हो गई थी और यहीं से उनके निर्देशन में मेरी कला यात्रा का शुभारंभ भी हुआ था।
महापात्रा जी कला के लगभग सभी पक्षों के जानकार थे और यही कारण रहा था कि वह व्यवसायिक कला के छात्रों को इलस्ट्रेशन से लेकर ललित कला के छात्रों को पोर्ट्रेट, लाइफ ड्राइंग, लैडस्केप आदि सभी विषयों का प्रशिक्षण देने की क्षमता रखते थे। स्वयं एक सफल चित्रकार होने के साथ उन्होंने अपने कोलकता प्रवास में कुछ लीनोकट भी किये थे। उनदिनों प्रख्यात प्रिंटमेकर चित्तोप्रसाद के सानिध्य का लाभ उनको मिलता रहा था। उनका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था।
लखनऊ के कला मंहाविद्यालय में प्रिंटमेकिंग के प्रवक्ता पद पर मेरी नियुक्ति के बाद एक दिन महापात्र जी ने अपने कुछ लीनोकट मुझे प्रिंट करने के लिये दिये। बहुत पुराने हो जाने से वह सख्त होकर चटकने लगे थे। काम कठिन था किन्तु मुझे तो करना ही था मेरे गुरु का आदेश जो था। थोड़ा जतन करना पड़ा और सफलता भी मिली। उन्हीं प्रिंट्स में से यह तीन मेरे संग्रह में निकले। इनपर महापात्र जी के हस्ताक्षर नहीं हैं किन्तु एक कोने में N.M. उनके नाम नित्यानंद महापात्रा का संक्षिप्त हस्ताक्षर ही है। दुख इस बात का है कि उनके और कार्य उपलब्ध नहीं हैं। यदि महापात्र जी के कार्य आज की युवा पीढ़ी के अवलोकनार्थ उपलब्ध होते तो उनका मार्गदर्शन करने में सहायक होते।