भूतपूर्व छात्रा, कला एवं शिल्प महाविद्यालय,लखनऊ
कुछ संस्मरण…
राजकीय कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ में प्रशिक्षित अनेक कलाकारों ने अपनी सृजनात्मक उपलब्धियों से विशिष्ट पहचान बनाई। ऐसी ही एक कलाकार राबिया ज़ुबैरी भी रही थीं जिन्हेंने पाकिस्तान जा कर कला के क्षेत्र में जो विशिष्टता प्राप्त की उससे उन्हें पाकिस्तान की “क्वीन मदर ऑफ़ आर्ट” की पहचान से जाना गया।
सन् 1939 में भारत के कानपुर में जन्मीं राबिया ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से सन् 1959 में स्नातक पाठ्यक्रम पूर्ण कर लखनऊ के कला महाविद्यालय में प्रवेश लिया था। अलीगढ़ में वह लखनऊ कला महाविद्यालय के छात्र रहे प्रोफेसर अज़मत शाह के सम्पर्क में आईं। अज़मत साहब स्वयं पश्चिमी इम्प्रेशनिस्ट से प्रभावित रहे थे। राबिया के ऊपर भी इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। लखनऊ कला महाविद्यालय उनदिनों एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था। सन 1956 में आचार्य सुधीर रंजन ख़ास्तगीर के प्रधानाचार्य पद पर आसीन होने के उपरांत महाविद्यालय में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।
एक अरसे से चलती चली आ रही बंगाल वाश और पश्चिमी एकैडमिक स्कूल शिक्षा पद्धति का विस्तार करते हुए आधुनिक कला आंदोलन से जुड़ने के प्रयास किये जाने लगे। अनेक नई चेतना से ओत-प्रोत सृजनशील युवा कलाकारों की नियुक्तियां की गई। जिससे महाविद्यालय में एक नई सृजनात्मक ऊर्जा का संचार शुरू हुआ। जहां एक ओर परम्परागत शैली के पारंगत कलाकार आचार्य श्रीधर महापात्रा और रियलिस्ट मूर्तिकार मुहम्मद हनीफ साहब का सानिध्य मिल रहा था। वहीं आधुनिक चित्रकार मदनलाल नागर, रणबीर सिंह बिष्ट और प्रयोगवादी मूर्तिकार अवतार सिंह पवार, असद अली और एस.जी. श्रीखंडे नित नए प्रयोगों में तल्लीन थे। विशेष रूप से असद अली और श्रीखंडे के मुर्ति शिल्पों में बारबरा हेपवर्थ और हेनरीमूर का प्रभाव विशेष रूप से झलकने लगा था। इस परिवर्तन को धीरे-धीरे हर स्तरपर स्वीकृति मिलनी शुरू हो गई यहां तक कि छात्रों के प्रशिक्षण में भी नई प्रगतिवादी सोच को स्थान दिया जाने लगा।
सन् 1959 में लखनऊ के कला महाविद्यालय में राबिया ज़ुबैरी और उनकी छोटी बहन हाज़ारा मंसूर ने भी प्रवेश लिया था। उनदिनों मैं स्वयं भी वहां चित्रकला विभाग में छात्र था। बहुत नज़दीक से इन दोनों बहनों की कला यात्रा के प्रारम्भिक दिनों का साक्षी रहा। राबिया को मूर्ति कला में प्रारम्भ से ही रुचि रही थी। उनदिनों लखनऊ के कला महाविद्यालय में अति यथार्थवादी और अमूर्त प्रभाववादी कला दोनो ही के विकल्प उपलब्ध थे किन्तु राबिया का रुझान प्रयोगात्मक कार्य की ओर अधिक था। वास्तविक आकारों को त्रिआयामी स्थूल आकारों में गढ़ना उन्हें प्रारम्भ से ही भाता रहा था जो उनके कराची पहुंचने पर एक विशिष्ट पहचान लेकर सामने आया और उन्हें सफलता की जिन उचाईयों पर ले गया वह निसंदेह प्रशंसनीय हैं।
राबिया ने सन् 1964 में कराची पहुंच कर कराची स्कूल ऑफ़ आर्ट की स्थापना की और पाकिस्तान की पहली महिला मूर्तिकार होने का सौभाग्य प्राप्त किया। एक सक्रिय कलाकार होने के साथ-साथ सामाजिक स्तरपर कला के उन्नयन में भी उनकी सक्रियता से उन्हें पाकिस्तान की कला परिषद के अध्यक्ष पद पर आसीन होने का अवसर भी प्राप्त हुआ। उनकी कलाकृतियाँ अनेक संग्रहों में संग्रहीत हैं और अनेक स्थलों पर स्थापित की गई हैं। उपलब्धियों से भरी उनकी कला यात्रा ने उन्हें पाकिस्तान के शीर्षस्थ कलाकारों की संज्ञा देते हुए सन् 2010 में प्राइड ऑफ़ परफार्मेंस सम्मान दिया गया जिसे कहीं न कहीं लखनऊ कला महाविद्यालय के गौरवशाली अतीत में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि की संज्ञा दिया जाना अतिशयोक्ति नहीं होगी …