यह आम अवधारणा है कि किसी भी कलाकार के कृतित्व का सही मूल्यांकन समय ही करता है। कितने ही जानेमाने कलाकार जो अपने जीवन पर्यन्त उचित पहचान के लिये हाशिये पर रहे एक अंतराल के उपरांत यकायक प्रसिद्धि की ऊंचाईयों पर स्थापित हो गए। यह सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव हो सका। किसी भी कलाकार के जीवन में इतनी विसंगतियां होती हैं कि उनके रहते उसके कृतित्व का सही विश्लेषणात्मक अध्ययन नहीं हो पाता है। लखनऊ निवासी ऐसे ही एक कलाकार स्व. रणबीर सिंह बिष्ट रहे है जिन्होंने अपने जीवनकाल में एक विशिष्ट पहचान बना ली थी जिसके लिये भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था। आज जब हम भारतीय आधुनिक कलापरिदृश्य की स्थिति का आकलन करते हैं तो एक प्रश्न उत्तरप्रदेश के कलाकारों की स्थिति को लेकर अवश्य उठता है।
प्रो. जय कृष्ण अग्रवाल
कहीं न कहीं यह लगता है कि जो पहचान हमारे शीर्षस्थ कलाकारों को मिलनी चाहिए थी वह उन्हें नहीं मिल सकी। वास्तव में इसके लिये हम स्वयं दोषी है और कहीं न कहीं उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी और उत्तर प्रदेश प्रसाशन का दायित्व है कि वह कलाकारों का और प्रादेशिक कलाजगत की गतिविधियों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार और प्रसार करे। यह अत्यंत दुखद है कि प्रोफेसर रणबीर सिंह बिष्ट जैसे कलाकारों के ऊपर मोनोग्राफ का प्रकाशन और उनकी कलायात्रा का साक्षात्कार कराती रिट्रास्पेक्टिव कला प्रदर्शनियों के अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन अभी तक नहीं किये जा सके है। स्पष्ट है कि जब स्वयं ही हम अपने कलाकारों का सम्मान नहीं करेंगे तो क्या अपेक्षा की जा सकती है।
प्रोफेसर रणबीर सिंह बिष्ट का आज जन्मदिन है। हमारे बीच से गए उन्हें लगभग छब्बीस वर्ष हो गए हैं किन्तु यह वास्तव में दुखद है कि उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी ने उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिये कोई ठोस प्रयास नहीं किया है। बड़ी प्रसन्नता हुई थी जब पिछले दिनों कला महाविद्यालय के छात्रावास का नामकरण रणबीर सिंह बिष्ट छात्रावास करदिया गया था। आज यदि हम कलाजगत में अपना स्थान सुनिश्चित करना चाहते हैं तो हमें अपने अग्रणी कलाकारों को आदर देना होगा। हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि आज हम जो भी है उन्हीं के प्रयासों का प्रतिफल है। वास्तव में उनका सम्मान ही हमारा सम्मान है।
आदरणीय बिष्ट जी के जन्मदिन पर उनकी स्मृतियों को नमन् करते हुये कला जगत से अनुरोध करता हूं कि अधिक नहीं तो कमसे कम वर्ष में एक बार हम हृदय से उनका स्मरण अवश्य कर लें यही हमारा उनके प्रति सच्चा सम्मान होगा